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जंगल

दुनिया के सबसे बड़े वर्षावन को जलते देखना कितना दुश्वार, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

Anil Ashwani Sharma

"मुझे कुछ साल पहले पता चला कि अमेजन का जंगल कार्बन उत्सर्जन का स्रोत बन रहा है तो मैं यह जानकर बहुत परेशान हो गई। यह एक बहुत अप्रिय घटना है।" अमेजन में आग के प्रभावों का अध्ययन करने वाली शोधकर्ता एरिका बेरेंगुए इससे खासी चिंतित हैं। उनकी तरह साओ जोस डॉस कैंपोस में ब्राजील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च की जलवायु वैज्ञानिक लुसियाना गैटी भी कहती हैं, "अमेजन अब उसी रफ्तार से कार्बन सिंक नहींं कर रहे हैं, जितना पहले करते थे। सब कुछ खत्म होते जा रहा है।"

इन वैज्ञानिकों की इस निराशा को द गार्जियन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में शामिल किया गया है। द गार्जियन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के 380 प्रमुख लेखकों में से केवल छह प्रतिशत का मानना है कि 2015 के पेरिस जलवायु समझौते द्वारा निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की सीमा को प्राप्त किया जा सकता है।

नेचर में छपी एक रिपोर्ट में इस सर्वेक्षण का हवाला दिया गया है। सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश ने कहा कि वे इस बात से परेशान और हताश हैं कि दुनिया भर में जलवायु संकट से कैसे निपटा जा रहा है। सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में स्थित मनोचिकित्सकों और मानसिक-स्वास्थ्य पेशेवरों के एक स्वतंत्र समूह क्लाइमेट साइकियाट्री अलायंस की संचालन समिति के सदस्य रॉबिन कूपर कहते हैं कि जलवायु शोधकर्ता हर दिन महत्वपूर्ण जानकारी के साथ जूझ रहे हैं और अगर वे खुद को उन भावनाओं को सहन करने की अनुमति देते हैं, जिनसे वे गुजर रहे हैं तो उन्हें अपने विज्ञान द्वारा दिखाए जा रहे प्रभावों को प्रबंधित करने की आवश्यकता होगी। यह एक बहुत बड़ा तनाव है।

कूपर कहते हैं कि जलवायु तनाव और मनुष्यों द्वारा अनुभव किए जाने वाले अन्य तनावों की तुलना में अधिक स्थायी होता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पारिस्थितिकी तंत्र की शोधकर्ता एरिका बेरेंगुएर ने इस तनाव के परिणामों को महसूस किया है। वह अमेजन में पेड़ों पर आग के प्रभावों का अध्ययन करती हैं और वर्षावन की गिरावट को देखना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है।

वह कहती हैं कि पहली बार मुझे गहरी उदासी 2015 में महसूस हुई थी, जब लगभग दस लाख हेक्टेयर जंगल आग से नष्ट हो गया था। हालांकि वह कहती हैं कि समस्या से भागना कोई विकल्प नहीं है। वैज्ञानिकों को पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान का गवाह बनना होगा, विनाश और प्राकृतिक पुनर्प्राप्ति के प्रभाव को मापना होगा।

बेरेंगुएर ने नोट किया कि शोधकर्ता फील्ड में जाने से पहले जो जोखिम-मूल्यांकन फार्म भरते हैं, वे केवल शारीरिक खतरों को कवर करते हैं, मानसिक स्वास्थ्य को नहीं। आखिरकार वह पूछती हैं कि दुनिया के सबसे बड़े वर्षावन को जलते हुए देखने से हमें कौन बचाएगा ?

हर चिकित्सक यह नहीं जानता कि जलवायु चिंता से निपटने का सबसे अच्छा तरीका क्या है। कूपर का कहना है कि इस कमी को पूरा करने के लिए क्लाइमेट साइकियाट्री अलायंस ने चिकित्सकों के लिए जलवायु-जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने के लिए क्लाइमेट साइकोलॉजी अलायंस नॉर्थ अमेरिका के साथ मिलकर काम शुरू किया है।

यह वाशिंगटन डीसी में स्थित अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के सदस्यों के बीच जलवायु चिंता के बारे में जागरूकता भी बढ़ा रहा है। कूपर का कहना है कि एक दृष्टिकोण जो विशेष रूप से वैज्ञानिकों को लाभ पहुंचा सकता है, वह है सामूहिक चर्चा, जो उन्हें अपने विचारों और भावनाओं को साझा करने में सुरक्षित महसूस करने में सक्षम बनाती है और उन्हें यह एहसास कराने में मदद कर सकती है कि वे अकेले नहीं हैं। वह आगे कहते हैं कि वैज्ञानिकों की संस्कृति सामूहिकता की ओर नहीं झुकती है और उन्हें यह साझा करने के लिए जगह नहीं देती है कि वे क्या अनुभव कर रहे हैं।

न्यू हैम्पशायर के कीन में एंटिओक यूनिवर्सिटी न्यू इंग्लैंड में पर्यावरण अध्ययन की एक शोध विद्वान सुजैन मोजर कहती हैं कि जब वैज्ञानिकों की मदद करने की बात आती है तो भावनाओं के प्रति खुलेपन का यह दृष्टिकोण बहुत क्षमता रखता है।

वह कहती हैं कि वैज्ञानिक अपने निजी जीवन में भावनाओं को व्यक्त करने में संकोच नहीं कर सकते हैं, लेकिन जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है तो कभी-कभी वे अपनी भावनाओं से निपटने के लिए अपने पेशे का उपयोग एक कवच के रूप में कर सकते हैं। वह आगे कहती हैं कि सिर्फ इसलिए कि उनके पास एक भावना है इसका मतलब यह नहीं है कि वे अब किसी समस्या के बारे में विश्लेषणात्मक या व्यवस्थित रूप से नहीं सोच सकते हैं।”

कैनबरा में ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में विज्ञान संचार में पीएचडी के छात्र जो डुग्गन अपने विज्ञान-जागरूकता प्रोजेक्ट (यह आपको कैसा लगता है) के माध्यम से एक संदेश देना चाहते हैं। उन्होंने 2014 में विश्वविद्यालय में मास्टर के छात्र के रूप में इसे अकादमिक क्षेत्र के बाहर के लोगों को जलवायु परिवर्तन अनुसंधान के मानवीय चेहरे से जोड़ने के लिए बनाया था।

उन्होंने वैज्ञानिकों से जलवायु परिवर्तन आपको कैसा महसूस कराता है, प्रश्न का उत्तर हस्तलिखित पत्रों में देने को कहा था। इसके पीछे विचार यह था कि वैज्ञानिकों को उनके कंप्यूटर, दिनचर्या और शब्दजाल से दूर खींचकर अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए प्रेरित किया जाए।

इस पर कई प्रमुख वैज्ञानिकों ने प्रतिक्रियाएं दी थीं। जिनमें जर्मनी में पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के जोहान रॉकस्ट्रॉम और फिलाडेल्फिया में पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के माइकल मान शामिल थे। वह कहते हैं कि दो तरह की उम्मीदें हैं। एक तो एक इच्छाधारी उम्मीद है और दूसरी ज्यादा तार्किक उम्मीद है, जो कि जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग और व्यवस्थागत बदलाव के लिए खड़े होकर लड़ने वाले लोगों की कहानियों पर टिकी होती है।

इस सवाल का जवाब देने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार पर्यावरण-चिंता और जलवायु संकट के कारण होने वाली मानसिक-स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए अनुसंधान संस्थानों को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। लेकिन कुछ जगहों पर इस क्षेत्र में काम शुरू हो चुका है। जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में शोधकर्ता मुख्य रूप से स्वास्थ्य और पर्यावरण क्षेत्रों से स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों के लिए एक लचीला पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए एक साथ आए हैं।

सैन डिएगो में एक मनोचिकित्सा शोधकर्ता ज्योति मिश्रा इस पाठ्यक्रम की सह-निदेशक हैं। मिश्रा जंगल की आग के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करती हैं और जब उनकी सहकर्मी एलिसा एपेल, यूसी सैन फ्रांसिस्को में मनोचिकित्सा शोधकर्ता ने इसे प्रस्तावित किया, तो उन्होंने इस कोर्स के विचार को पूरी तरह से अपनाया। मिश्रा कहती हैं कि मुझे कैलिफोर्निया में जंगल की आग से प्रभावित हमारे समुदायों द्वारा किए जा रहे कार्यों से बहुत प्रेरणा मिली है। आग से प्रभावित लोग समाधान, कार्रवाई और आपदा की तैयारी के साथ सामने आते हैं।