किंतूर (बाराबंकी), झूसी (प्रयागराज) और सुल्तानपुर जैसे स्थानों पर पाए जाने वाले ये पेड़ करीब 800 साल पुराने हैं; फोटो: विकिपीडिया 
जंगल

उत्तर प्रदेश: विलुप्ति की कगार पर पारिजात के 800 साल पुराने पेड़, एनजीटी ने लिया संज्ञान

हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक इन पेड़ों पर जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक नमी में गिरावट और छाल, पत्तियों, फल और बीजों के जरुरत से ज्यादा दोहन का खतरा मंडरा रहा है

Susan Chacko, Lalit Maurya

उत्तर प्रदेश में पारिजात वृक्षों के विलुप्त होने के खतरे को गंभीरता से लेते हुए, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 23 जुलाई 2025 को संबंधित अधिकारियों को इस मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

अदालत ने इस मुद्दे पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, बाराबंकी और प्रयागराज के जिला मजिस्ट्रेट के साथ-साथ उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस कर उनसे जवाब दाखिल करने को कहा है।

गौरतलब है कि 17 जुलाई 2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के आधार पर इस मामले में अदालत ने स्वतः संज्ञान लिया है।

यह मामला उत्तर प्रदेश में पाए जाने वाले प्राचीन पारिजात वृक्षों के विलुप्त होने के बढ़ते खतरे से जुड़ा है। खबर के मुताबिक, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (बीएसआई) और बीरबल साहनी जीवाश्म विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इन सदियों पुराने वृक्षों के अस्तित्व को लेकर गंभीर चिंता जताई है।

संकट में 800 साल पुराने पेड़

रिपोर्ट के मुताबिक किंतूर (बाराबंकी), झूसी (प्रयागराज) और सुल्तानपुर जैसे स्थानों पर पाए जाने वाले ये पेड़ करीब 800 साल पुराने हैं। जिन पर जलवायु परिवर्तन, बारिश की कमी, प्राकृतिक नमी में गिरावट और छाल, पत्तियों, फल और बीजों के जरुरत से ज्यादा दोहन के कारण गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

खबर में यह भी कहा गया है कि वैज्ञानिकों ने इन वृक्षों का वनस्पतिक पुनर्वर्गीकरण करने का सुझाव दिया है, जिससे इन्हें बेहतर संरक्षण मिल सके। ये पेड़ न सिर्फ भारत में पाए जाने वाले सबसे पुराने अफ्रीकी मूल के पारिजात पेड़ हैं, बल्कि अफ्रीका के बाहर इस प्रजाति के सबसे प्राचीन पेड़ों में भी शामिल हैं।

खबर में यह भी कहा गया है कि पारिजात की लकड़ी में स्वाभाविक रूप से 79 फीसदी तक पानी होता है, जिससे पेड़ खड़े रहते हैं। लेकिन अब यह नमी झूसी में 45.2 फीसदी और किंतूर में महज 39.7 फीसदी रह गई है। इसका मतलब है कि पेड़ कमजोर और गिरने की कगार पर हैं।

हिंडन नदी के बाढ़ क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने पर एनजीटी सख्त

ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (जीएनआईडीए) और उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग ने हिंडन नदी के तटबंध क्षेत्र से अवैध कब्जा हटाने पर प्रगति रिपोर्ट देने के लिए समय मांगा, जिसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 23 जुलाई 2025 को स्वीकार कर लिया। अधिकारियों को चार सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया गया है। इस मामले में अगली सुनवाई 14 अक्टूबर 2025 को होगी।

इस मामले में 6 मई 2024 को हुई सुनवाई में एनजीटी ने संयुक्त समिति की रिपोर्ट पर ध्यान दिया था। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शिवम एन्क्लेव कॉलोनी, पुराना हैबतपुर, हिंडन नदी के डूब क्षेत्र में स्थित है और वहां न तो सीवेज नेटवर्क है, न ही सीवेज का उचित निपटान हो रहा है। कॉलोनी से निकलने वाला सीवेज सीधे हिंडन नदी में बहा दिया जाता है।

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में हिंडन नदी के बाढ़ क्षेत्र की सुरक्षा के साथ-साथ कॉलोनी से निकलने वाले सीवेज को नदी में गिरने से रोकने की सिफारिश की थी। वहीं उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग ने 22 जुलाई 2025 को दाखिल अपनी रिपोर्ट में बताया कि नदी के बाढ़ क्षेत्र से अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई की जा रही है।

जीएनआईडीए की ओर से अदालत में उपस्थित वकील ने बताया कि करीब 60 फीसदी अतिक्रमण हटा दिए गए हैं और 40 फीसदी अभी भी बचे हैं तथा सिंचाई विभाग, जीएनआईडीए और पुलिस के संयुक्त प्रयासों से यह अतिक्रमण हटाए जा रहे हैं।