प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
जंगल

अभी भी अतिक्रमण का शिकार है दिल्ली के दक्षिणी रिज का 307.46 हेक्टेयर हिस्सा: रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक पांच अप्रैल 2019 तक 398.61 हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण की पहचान हुई है। तब से अब तक इसमें से 91.15 हेक्टेयर भूमि को अतिक्रमण मुक्त कर दिया गया है

Susan Chacko, Lalit Maurya

दिल्ली के वन एवं वन्यजीव विभाग ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। अपनी इस रिपोर्ट में वन विभाग ने दिल्ली के दक्षिणी रिज में आरक्षित वन भूमि से अतिक्रमण को हटाने की राह में हुई प्रगति के बारे में जानकारी दी है।

रिपोर्ट के मुताबिक पांच अप्रैल 2019 तक कुल 398.61 हेक्टेयर वन भूमि पर हुए अतिक्रमण की पहचान हुई थी। तब से अब तक इसमें से 91.15 हेक्टेयर भूमि को अतिक्रमण मुक्त कर दिया गया है। हालांकि 307.46 हेक्टेयर भूमि पर अभी भी अतिक्रमण है।

21 जनवरी 2025 को सबमिट इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मैदानगढ़ी गांव में खसरा नंबर 690/574 दक्षिणी रिज, मॉर्फोलॉजिकल रिज और असोला भाटी अभयारण्य के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र का हिस्सा है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली में वनावरण लगातार बढ़ रहा है। इसमें वन विभाग और अन्य एजेंसियों की अहम भूमिका रही है। फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) ने अपनी इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) में भी इसकी पुष्टि की है।

जहां तक ​​दिल्ली में वृक्षों और वनों के संरक्षण का सवाल है, यह क्षेत्र को चार प्रादेशिक वन प्रभागों में विभाजित करके किया जा रहा है। इसमें से प्रत्येक प्रभाग का नेतृत्व एक उप वन संरक्षक करता है। इन प्रभागों को आगे वन रेंजों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें फिर छोटे वन बीटों में विभाजित किया जाता है।

इन वन प्रभागों, रेंजों और बीटों द्वारा कवर किए जाने वाले क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। डीसीएफ, रेंज अधिकारी, डिप्टी रेंज अधिकारी, वनपाल और वन रक्षकों को दिल्ली के जंगलों और पेड़ों की सुरक्षा और संरक्षण का काम सौंपा गया है। वे वन प्रबंधन, वृक्षारोपण और वन्यजीव संरक्षण जैसे कार्य भी संभालते हैं।

हिंगोनिया बांध के आसपास अतिक्रमण की जांच के लिए एनजीटी ने संयक्त समिति के गठन के दिए आदेश

21 जनवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेन्ट्रल बेंच ने हिंगोनिया बांध के आसपास अतिक्रमण की जांच के लिए चार सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया है। मामला राजस्थान का है।

इस संयुक्त समिति में जल संसाधन विभाग, शहरी विकास एवं आवास, सीपीसीबी और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक-एक प्रतिनिधि शामिल होंगे। अदालत ने समिति से साइट का दौरा करने के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया है। इस रिपोर्ट में आवश्यक जानकारी के साथ-साथ की गई कार्रवाई का विवरण होना चाहिए। मामले में अगली सुनवाई पांच मार्च, 2025 को होगी।

आवेदन में ऐतिहासिक हिंगोनिया बांध से जुड़े मुद्दे को उठाया गया है, जिसमें स्थानीय लोगों द्वारा किए जा रहे अतिक्रमण से बचाने के बारे में चिंता जताई गई है। यह पर्यावरण नियमों के उल्लंघन के साथ-साथ जल निकाय के क्षेत्र को भी नुकसान पहुंचा रहा है।

दावा है कि हिंगोनिया बांध के जलग्रहण क्षेत्र को पानी देने वाली धारा को अवरुद्ध कर दिया गया है। इस मामले में कई नोटिस जारी करने और स्थानीय ग्रामीणों द्वारा किए विरोध के बावजूद अधिकारियों ने अतिक्रमण को संबोधित नहीं किया है। यह भी आरोप है कि वहां हो रहे व्यावसायिक अतिक्रमण, कचरे की डंपिंग और वनों के विनाश से जल आपूर्ति बाधित हो रही है। इससे पर्यावरण और पारिस्थितिकी को गंभीर नुकसान हो रहा है।

लोगों ने अवैध रूप से हिंगोनिया बांध जलग्रहण क्षेत्र और बांदी नदी क्षेत्र को होटल, सोसायटी और कार शोरूम जैसे व्यावसायिक स्थानों में बदल दिया है। इससे पर्यावरण नियमों का उल्लंघन हो रहा है और जल निकायों को नुकसान पहुंच रहा है। इतना ही नहीं व्यावसायिक कचरा, सड़क निर्माण, और खराब अपशिष्ट प्रबंधन स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करने के साथ-साथ जल प्रवाह को भी अवरुद्ध कर रहे हैं।

याचिका में अतिक्रमित भूमि को बहाल करने, अवैध निर्माण को रोकने, बांधों और सड़कों को हटाने और हिंगोनिया बांध जलग्रहण क्षेत्र और बांदी नदी क्षेत्रों में मिट्टी को अनावश्यक रूप से समतल किए जाने को पहले की तरह करने का आदेश देने का अनुरोध किया है। साथ ही इसमें बांध और आसपास के क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले प्रदूषण को दूर करने के लिए कार्रवाई करने की भी मांग की गई है।