जंगल

ओबरा-सी परियोजना के लिए काटे गए 5,347 पेड़ों के बदले लगाए गए हैं 15,096 पेड़

Susan Chacko, Lalit Maurya

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम (यूपीआरवीयूएनएल) ने सोनभद्र में ओबरा-सी परियोजना के लिए काटे गए 5,347 पेड़ों के बदले 15,096 पेड़ लगाए थे।

ओबरा वन विभाग द्वारा साझा की गई जानकारी के मुताबिक इनमें से 11,680 वृक्ष जीवित हैं, जोकि मानकों के अनुरूप हैं। यह रिपोर्ट 30 अगस्त, 2024 को एनजीटी में सौंपी गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक ओबरा-डी थर्मल परियोजना के प्रभावों और प्रभावित पेड़ों का आकलन करने के लिए संयुक्त निरीक्षण जारी है। इसके अलावा ओबरा वन प्रभाग ने अभी तक ओबरा डी परियोजना के लिए पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दी है। मामला सोनभद्र, उत्तर प्रदेश का है।

संयुक्त समिति ने सिफारिश की है कि उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम को लगाए गए पेड़ों के चारों ओर बाड़ लगानी चाहिए। साथ ही उन्हें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वन विभाग द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप पेड़ बचे रहें।

समिति ने यह भी सलाह दी कि ओबरा वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ओबरा-डी परियोजना के निर्माण के लिए पेड़ों को कानून के दायरे में रहकर काटा जाए।

संयुक्त समिति ने लुधियाना में बेवजह मौजूद कंक्रीट को हटाकर पेड़ लगाने का दिया सुझाव

लुधियाना के हरे-भरे क्षेत्रों की सुरक्षा और सुधार के लिए, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) एक संयुक्त समिति का गठन किया है। इस समिति ने शहर में अनावश्यक कंक्रीट को हटाकर उन क्षेत्रों को पेड़ों, झाड़ियों और घास सहित हरियाली से बदलने की सिफारिश की है। इससे शहरी वातावरण को बेहतर बनाया जा सकेगा।

रिपोर्ट के मुताबिक शेरनूर चौक से जगरांव ब्रिज तक पुराना जीटी रोड एनएच 44 से शहर में प्रवेश करने का मुख्य मार्ग है। इसकी सुंदरता और पर्यावरण गुणवत्ता को बनाए रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन इस सड़क के दोनों ओर मौजूदा हरित क्षेत्र काफी नहीं हैं। ऐसे में समिति ने हरियाली को बढ़ाने और तेजी से वृक्षारोपण अभियान चलाने का सुझाव दिया है। इससे वायु गुणवत्ता में सुधार होगा और यह हरित क्षेत्र यातायात के शोर के खिलाफ एक प्राकृतिक ध्वनि अवरोधक के रूप में कार्य करेगा।

समिति के मुताबिक हरित क्षेत्रों को अतिक्रमण से बचाने के लुधियाना नगर निगम को उनके किनारे बाड़ लगाने की आवश्यकता है। साथ ही इस क्षेत्र को किसी भी क्षति या अवैध अतिक्रमण से बचाने के लिए दंड या जुर्माना लगाने जैसे कानूनी प्रावधान पेश किए जा सकते हैं।

संयुक्त समिति की यह रिपोर्ट 30 अगस्त, 2024 को एनजीटी की साइट पर अपलोड की गई है। गौरतलब है कि इस मामले में लुधियाना स्थित एसोसिएशन काउंसिल ऑफ इंजीनियर्स ने एनजीटी में एक आवेदन दायर कर शहर में ग्रीन बेल्ट पर हो रहे अतिक्रमण का आरोप लगाया था।

क्या ढेंकनाल में औद्योगिक उद्देश्यों के लिए वन भूमि का किया जा रहा है उपयोग

ओडिशा के मुख्य सचिव ने 28 अगस्त, 2024 को एनजीटी में एक हलफनामा दायर कर कहा है कि ढेंकनाल में ओडिशा इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (आईडीसीओ) को पट्टे पर दी गई भूमि वन भूमि के रूप में वर्गीकृत नहीं है। यह भूमि सारदा-III, सारदा-II और पतिता श्रेणी में है, जो गैर-वन भूमि के प्रकार हैं।

ओडिशा के मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) के साथ साझा की गई जानकारी से पता चला है कि कपिलाश वन्यजीव अभयारण्य प्रस्तावित साइट से करीब 13.82 किलोमीटर दूर है। 12 सितंबर, 2023 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हाथी और अन्य जंगली जानवर इस साइट के आस-पास देखे गए हैं। परियोजना के लिए जो रेल कॉरिडोर बनाया जाना है वो वन क्षेत्र के 4.519 हेक्टेयर भूमि से होकर गुजरेगा। इस क्षेत्र में झाड़ियां उगी हैं और वहां एक पुराना काजू का बागान है, जो हाथियों के लिए एक नियमित मार्ग है।

गौरतलब है कि यह पूरा मामला आईडीसीओ द्वारा वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के नियमों का पालन किए बिना, अवैध रूप से वन भूमि का औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने से जुड़ा है।