जनवरी के अंत में बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस पूजा में विद्या की देवी सरस्वती को एक विशेष फल का भोग लगाया जाता है। यह फल दरअसल एक कंद के रूप में होता है जिसे हिंदी में मिश्रीकंद के नाम से जाना जाता है। मिश्रीकंद का आकार शंख की तरह होता है इसलिए इसे बांग्ला में शंखालु अर्थात शंख के आकार का आलू भी कहा जाता है। एक मिश्रीकंद का अधिकतम वजन 20 किलो तक हो सकता है। वर्ष 2010 में अब तक का सबसे बड़ा मिश्रीकंद फिलिपींस में पाया गया था, जिसका वजन 23 किलो था।
मिश्रीकंद का वैज्ञानिक नाम पचिराइजस इरोसस है। इसे अंग्रेजी में जिकामा कहा जाता है। यह मुख्यतः एक मीठा कंद है, जिसे सामान्यतया कच्चा ही खाया जाता है। हालांकि कई देशों में इसके अलग-अलग प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं। मिश्रीकंद लंबे समय तक खराब नहीं होता, इसलिए इसे संरक्षित करने के लिए कोई विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है। मिश्रीकंद के फूल नीले या सफेद होते हैं और इसकी फली को यमबीन कहते हैं। भारत में यह लोकप्रिय फल है और इसे पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है।
पुरातत्वविदों का मानना है कि माया सभ्यता के लोग इस स्टार्चयुक्त फल के सेब के समान स्वाद के कायल थे। उस दौरान मक्के की फसल के साथ इसे एक सहयोगी फसल के रूप में उगाया जाता था। जब स्पेनिश लोगों ने अमेरिका को अपना उपनिवेश बनाया, तो उन्होंने छिले हुए मिश्रिकंद को अपने आहार में शामिल कर लिया। इस फल ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि 17वीं शताब्दी में कुछ स्पेनिश अन्वेषक इसे फिलिपींस ले गए। यहीं से मिश्रीकंद भारत सहित अन्य एशियाई देशों में पहुंचा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी देशों में 21वीं शताब्दी में खानपान के प्रति सजगता के वातावरण ने कम कैलोरी और अधिक प्रोटीन वाले इस तरह के खाद्य पदार्थों के महत्व को रेखांकित किया। साथ ही मिश्रीकंद की बढ़ती लोकप्रियता ने इसके बाजार को भी गति प्रदान की, खासकर उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में, जहां मिश्रीकंद सलाद का एक मुख्य हिस्सा बन गया है। कनाडा भी मिश्रीकंद का प्रमुख आयातक है।
मेक्सिको में हर साल एक नवंबर को एक त्योहार मनाया जाता है जिसे ‘फेस्टिवल ऑफ डेथ’ के नाम से जाना जाता है। इस महोत्सव में गन्ना, कीनू और मूंगफली के साथ ही मिश्रीकंद की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस महोत्सव में कागज के टुकड़ों से गुड़िया बनाई जाती है जिसे ‘जिकामा डाल्स’ नाम दिया जाता है। इस दौरान मिश्रीकंद के कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं।
फिजी में स्थानीय मछुआरे पानी में मिश्रीकंद के परिपक्व पीले, भूरे या लाल रंग के बीज गिरा देते हैं। मछिलयां इसे खाकर अचेत हो जाती हैं और आसानी से पकड़ में आ जाती हैं। मछुआरे मछली पकड़ने का जाल बनाने के लिए भी मिश्रीकंद के स्टेम फाइबर का इस्तेमाल करते हैं। मिश्रीकंद के स्टेम फाइबर का उपयोग टोकरीसाजी और चटाई बनाने में भी किया जाता है।
इंडोनेशिया में मिश्रीकंद को बेंगकुआंग के नाम से जाना जाता है। इस फल को जावा और सुमात्रा में कच्चा या एक प्रकार के मसालेदार सलाद, जिसे रोजक कहा जाता है, के रूप में खाया जाता है। पश्चिम सुमात्रा के एक शहर पदांग को बेंगकुआंग का शहर कहा जाता है। स्थानीय लोगों ने सोचा भी नहीं होगा कि बेंगकुआंग पदांग की स्वदेशी फसल है। बेंगकुआंग इस शहर में हर जगह उगाया जाता है और अब यह उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
मिश्रीकंद °के बीज का इस्तेमाल कीटनाशकों के रूप में भी क्या जाता है। केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान केंद्र और कंद फसलों के केंद्रों, विशेष रूप से राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, ढोली ने अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत देशभर के विभिन्न हिस्सों से मिश्रीकंद के साठ से भी अधिक जर्मप्लाज्म एकत्र किए हैं, जिससे कि इसका लाक्षणिक विश्लेषण किया जा सके।
मिश्रीकंद की मुख्य विशेषता यह है कि यह अनेक प्रकार की जलवायु और मिट्टी के प्रति आसानी से अनुकूल हो जाता है। साथ ही प्रोटीन/स्टार्च सामग्री की संतुलित और पौष्टिक संरचना, भंडारण की सुविधा भी इसे विशिष्ट फल की श्रेणी में ला खड़ा करता है। मिश्रीकंद एक गर्म आर्द्र जलवायु की फसल है और यह गर्म समशीतोष्ण क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।
मिश्रीकंद की जड़ के विपरीत, इसके पौधे के अन्य हिस्से जहरीला होते हैं। लेकिन इससे प्राप्त रसायनों का इस्तेमाल कुछ बाह्य परजीवियों के खिलाफ बेहद कारगर साबित हुआ है।
व्यंजन
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