खान-पान

आहार संस्‍कृति: कांटों में छिपा स्वाद

वैसे तो औैषध ि के रूप में नागफनी के पौधे के हर हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसके तना, फूल और जड़ों का विशेष महत्व है

Chaitanya Chandan

हाल ही में अपनी ऋषिकेश यात्रा के दौरान मैंने एक अजीब सा फल सड़क के किनारे ठेले पर बिकते देखा। लाल, बैंगनी रंग और छोटे नाशपाती के आकार के इस फल को वहां के लोग रामफल कहते हैं। फल पर छोटे-छोटे कांटों के निशान थे और ऊपरी भाग थोड़ा दबा हुआ था। विक्रेता ने फल को दो भागों में काटकर उसपर पिसी हुई चीनी छिड़ककर मुझे चखने को दिया। उस अजीब से फल का स्वाद खट्टा-मीठा था और उसमें छोटे-छोटे खूब सारे बीज थे। मैंने वह फल आधा किलो खरीद लिया।

जब मैं वहां से लौटकर आया तो मुझे इस फल के बारे में जानने की उत्सुकता हुई। मुझे पता चला कि वह दरअसल एक कैक्टस नागफनी का फल है जिसका वैज्ञानिक नाम ओपुंशिया डिलेनि है। इसकी उत्पत्ति मूल रूप से दक्षिण अमेरिका में हुई थी। हालांकि इस फल के बारे में चर्चा हिंदू पौराणिक कथाओं में भी मिलती है। एक मान्यता के अनुसार जब भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया तो ब्रह्महत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए वह ऋषिकेश चले गए थे। उस दौरान भगवान राम ने इसका सेवन किया। तभी से इस फल को रामफल के नाम से जाना जाने लगा।

रामफल, जिसे अंग्रेजी में प्रिकलि पेयर कहा जाता है, अन्य देशों में भी लोकप्रिय है। मैक्सिको की सरकार अपने सरकारी दस्तावेजों में प्रतीक के रूप में इसका उपयोग करती है। इस प्रतीक में एक मैक्सिकन सुनहरी चील को एक नागफनी के पौधे पर बैठकर सांप को खाते हुए दर्शाया गया है। मेक्सिको के एक शहर टेनोचटिटलान के लोगों के लिए इस फल का धार्मिक अर्थ है। यूरोपियाई लोग इस फल की व्याख्या बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में करते हैं। सत्रहवीं शताब्दी में मेक्सिको से स्पेन निर्यात होने वाला यह दूसरा सबसे मूल्यवान फल था। यह फल नागफनी के मांसल कांटेदार पत्तियों के किनारे लगता है। नागफनी के पौधे शुष्क स्थानों में पाये जाते हैं।

विपरीत परिस्थितियों से बचने के लिए अनुकूलित होने के स्वभाव के कारण यह दुनिया के विभिन्न भागों में बहुतायत में पाया जाता है। यह अर्द्ध शुष्क, उप उष्णकटिबंधीय, उष्णकटिबंधीय के साथ-साथ गर्म समशीतोष्ण क्षेत्रों जिसमें अमेरिका और मेक्सिको से भारत और अफ्रीका तक शामिल है, में उग सकते हैं। यह खुले जंगलों, घास के मैदानों, चारागाहों, तटीय क्षेत्रों, उद्यानों और बंजर भूमि पर पाया जाता है। इससे कई प्रकार के व्यंजन बनाए जा सकते हैं।

मध्य अफ्रीका में, नागफनी के पत्तों से निकले रस का इस्तेमाल लंबे समय तक मच्छर से बचाने वाली एक प्रभावी क्रीम के रूप किया जाता है। यह काचनील (डक्टिलोपियस कोकस) नाम के एक कीट को भी आकर्षित करता है, जिसका इस्तेमाल प्राकृतिक लाल डाई बनाने के लिए किया जाता है। इंका और माया सभ्यताओं में महिलाएं इस डाई का इस्तेमाल हाथ और स्तनों को पेंट करने के लिए करती थीं। ये कीट कर्मिनिक एसिड पैदा करते हैं, जिसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों और लिप्स्टिक में इस्तेमाल होने वाले रंग के तौर पर किया जाता है।

औषधीय गुण

वैसे तो दवा के पारंपरिक रूप में नागफनी के पौधे के हर हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसके तना, फूल और जड़ों का विशेष महत्व है। रामफल पर किए गए शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह सूजन को कम करता है; यह एंटी ऑक्सिडेंट, तनाव रोधी, रक्तचाप को नियंत्रित रखता है; यकृत की गंभीर बीमारियों सहित क्षय रोग के उपचार में भी प्रभावी है। यह एक रोगाणुरोधी भी है। रामफल तंत्रिका कोशिकाओं की रक्षा करता है और अल्जाइमर, पार्किंसन और दिल की बीमारियों के इलाज के लिए उपयोगी है।

डायबिटीज केयर एंड आर्कायव्स ऑफ इन्वेस्टिगेटिव मेडिसिंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार 100-500 ग्राम नागफनी के पत्ते को पकाकर खाने से मधुमेह के उपचार में सहायता मिलती है। परिणाम बताते हैं कि नागफनी के पत्ते के सेवन से खून में शर्करा की मात्रा 8 से 31 प्रतिशत तक कम हो जाती है।

एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि रामफल आंतों में ग्लूकोज के अवशोषण को कम करके हाइपोग्लाइसीमिया को प्रेरित करता है। यह अध्ययन वर्ष 1996 में इंटर्नैशनल जर्नल ऑफ फार्माकोगनोसी में प्रकाशित हुआ था।

अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि रामफल में बड़ी मात्रा अमीनो एसिड होता है और कहा जाता है कि नागफनी में फाइबर, मैग्नीशियम और लोहा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह भी माना जाता है कि रामफल नशे के खुमार को दूर करने में भी कारगर है।

लेकिन चिकित्सक रामफल या नागफनी के पत्तों के इस्तेमाल में कुछ सावधानियां बरतने की भी सलाह देते हैं। इसका इस्तेमाल गर्भवती महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं है, और मधुमेह रोगी केवल चिकित्सक से परामर्श के बाद ही इसका उपभोग करे। महत्वपूर्ण बात यह है कि, रामफल खाने से पहले यह आवश्यक है कि इसके सभी कांटे निकालकर और छील कर ही इसका उपभोग किया जाए, जिससे कि रोयें के समान महीन कांटों से होंठ, मसूड़े और गले को कोई नुकसान नहीं पहुंचे।

इसके औषधीय मूल्य इस तथ्य से प्रमाणित होते हैं कि 18वीं सदी में यूरोपीय यात्री अक्सर अपनी लंबी यात्राओं के दौरान इस फल को अपने साथ रखते थे, क्योंकि यह विटामिन सी का प्रमुख स्रोत है और कुपोषित नाविकों को स्कर्वी नामक रोग से बचाने की क्षमता रखता है।

व्यंजन
 
रामफल जैम
सामग्री:
  • रामफल : 10 नग
  • चीनी : 21/2 कप
  • पानी : 1 कप
  • नींबू : 1 नग
विधि: रामफल को छीलकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। अब इसे एक कड़ाही/पैन में एक कप पानी में डालकर मध्यम आंच पर फल के नरम होने तक पकाएं। अब पके हुए रामफल को मिक्सर में डालकर पीस लें। इसके बाद तैयार घोल से बीजों को निकाल दें। इसके बाद इस घोल को फिर से स्टोव पर चढ़ाएं और धीमी आंच पर उबलने तक पकाएं। इसके बाद चीनी डालकर चम्मच से चलाते रहें। अब नींबू का रस डालकर मिश्रण को गाढ़ा होने तक पकाएं। पूरी तरह से कन्सिस्टेंट होने में करीब 40 मिनट का समय लगता है। अब आपका जैम तैयार है। इसे कांच के मर्तबान में रखें।
 
रामफल शरबत
सामग्री:
  • रामफल : 7-8 (छीला और कटा हुआ)
  • चीनी : 1/2 कप
  • पानी : 1/2 कप
  • नींबू का रस : 2 चम्मच
विधि: एक पैन में पानी और चीनी को डालकर चीनी के पूरी तरह से घुलने तक मध्यम आंच पर गरम करें। अब एक ब्लेंडर में रामफल को स्मूथ होने तक ब्लेंड करें। अब इसमें नींबू का रस और तैयार चाशनी को मिलाकर ब्लेंड करें। मिश्रण को चार घंटे तक ठंडा करें और परोसें।