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शांत लक्षद्वीप में क्यों मचा है बवाल

नए प्रशासनिक और भूमि सुधारों ने लक्षद्वीप में बाहरी खतरों की आशंका पैदा कर दी है, जिसका इस शांत द्वीप पर रहने वाले लोग विरोध कर रहे हैं

Jinoy Jose P, Shagun

लक्षद्वीप का माहौल इन दिनों गर्म है। देश के सबसे छोटे केंद्र शासित प्रदेश में इस साल जनवरी से अप्रैल के बीच प्रशासन द्वारा लाए गए चार अधिनियमों ने इस शांत द्वीप में विरोध की चिंगारी सुलगा दी है। यह बहस भी छिड़ गई है कि नए नियम-कानून कहीं लक्षद्वीप की अनूठी संस्कृति और पारिस्थितिकी को नष्ट न कर दें। इन सारे अधिनियमों को अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय की स्वीकृति की इंतजार है लेकिन लक्षद्वीप प्रशासन ने इन अधिनियमों के कुछ हिस्सों को दो अध्यादेशों के जरिए लागू भी कर दिया है। इन बदलावों का विरोध कर रहे 70 नागरिक संगठनों के समूह विकल्प संगम ने 11 जून को अपने बयान में कहा, “ये अधिनियम इस द्वीप के समृद्ध और नाजुक पारिस्थतिक तंत्र की सामाजिकी और संस्कृति पर प्रतिकूल असर डालेंगे।” आगे बढ़ने से पहले यह उपयुक्त होगा कि हम इन चारों अधिनियमों और अध्यादेश पर एक गहरी नजर डाल लें।

गैर-सामाजिक गतिविधियों को रोकने का अधिनियम 2021

यह नए चार अधिनियमों में पहला है, जिसे 28 जनवरी को पेश किया गया था। इसका मकसद द्वीप में आपराधिक गतिविधियों पर लगाम लगाना है। इसके सेक्शन-3 के तहत प्रशासन को यह अधिकार होगा कि वह किसी व्यक्ति को सिर्फ इस आधार पर हिरासत में रखे क्योंकि प्रशासन को शक है कि वह व्यक्ति काननू- व्यवस्था को खराब कर सकता है। सेक्शन-13 के तहत उसकी हिरासत का सार्वजनिक तौर पर खुलासा किए बगैर उसे एक साल तक हिरासत में रखा जा सकेगा। इसके सेक्शन-8 के तहत प्रशासन एक सप्ताह के अंदर उस व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने की वजहों के बारे में स्थिति स्प्ष्ट करेगा लेकिन वह उन तथ्यों को सामने नहीं लाएगा, जिन्हें छिपाना वह जरूरी समझता है।

इस अधिनियम की सबसे खराब बात यह है कि इसके सेक्शन 3 के तहत एक बार संबंधित व्यक्ति की हिरासत खत्म होने या उसके बीच में रिहा किए जाने के बाद उसे फिर से हिरासत में लिया जा सकता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता और लक्ष़द्वीप से सांसद मोहम्मद फैजल पीपी ने डाउन टू अर्थ से कहा, “इस तरह के नियम वहां लागू करने का क्या मकसद है, जहां अपराध की दर देश में सबसे कम है।” वह आगे कहते हैं कि इस तरह के नियमों का न सिर्फ दुरूपयोग होगा बल्कि इनसे असहमति की आवाज को भी दबाया जा सकेगा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में लक्ष़़द्वीप में हत्या, अपहरण, लूट, बलात्कार या डकैती का एक भी केस दर्ज नहीं किया गया था।

लक्ष़़द्वीप पशु संरक्षण अधिनियम 2021

25 फरवरी को पेश इस अधिनियम के मुताबिक, “गोमांस और उसके उत्पादों के खरीदने और बेचने” पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। किसी व्यक्ति को इसका दोषी पाया जाने पर उसे अधिकतम दस साल की और कम से कम सात साल की सजा हो सकेगी। साथ ही उसे कम से कम एक लाख और अधिकतम पांच लाख रुपए का जुर्माना भी देना पड़ेगा। इसी तरह प्रशासन ने 23 फरवरी को एक अध्यादेश जारी कर यहां शराब पर लगा प्रतिबंध हटा दिया। लक्षद्वीप बचाओ फोरम के संचालक यूसीके थंगल के मुताबिक, “यह अनायास नहीं है कि ऐसी जगह पर गाय का मांस बेचने और उसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है, जहां की 95 फीसद आबादी मुस्लिम है।” 2011 की जनगणना के मुताबिक, लक्ष़़द्वीप की 96.58 फीसद आबादी मुस्लिम है। लक्षद्वीप बचाओ फोरम, उन समूहों का एक मंच है, जिसे मई में इस द्वीप को बचाने के लिए तैयार किया गया है।

लक्षद्वीप पंचायत अधिनियम, 2021

25 फरवरी को पेश इस अधिनियम के प्रस्ताव के मुताबिक, दो बच्चों से ज्यादा वाला कोई व्यक्ति यहां ग्राम पंचायत चुनावों में भाग नहीं ले सकेगा। लक्षद्वीप में केवल एक जिला पंचायत और दस ग्राम पंचायतें हैं। यहां आबादी के बढ़ने की दर तेजी से कम हो रही है। 2001 में यह दर 17.19 थी, जो 2011 में घटकर 6.1 रह गई थी। 2011 की जनगणना के मुताबिक, लक्षद्वीप की कुल आबादी 64,473 थी। आंकड़े जो दर्शा रहे हैं, उसके हिसाब से देखें तो यहां इस तरह के अधिनियम को कोई जरूरत नहीं है। अगर इसके बावजूद अधिनियम को लागू करना जरूरी है, तो यह भी जानना होगा कि प्रशासन पहले ही पंचायतों के अधिकारों में कटौती कर चुका है। 2012 में केंद्र सरकार ने जनता से सीधे जुड़े पांच विभागों- शिक्षा, पशुपालन, कृषि, मछलीपालन और स्वास्थ्य की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों को सौंप दी थी। एसएस मीनाक्षी की अध्यक्षता वाली एक समिति ने इन निकायों को और अधिकार दिए जाने की सिफारिश की थी। हालांकि प्रशासन ने 5 मई 2021 को एक अध्यादेश के जरिए जिला पंचायतों से ये अधिकार वापस ले लिए। यह जानकारी विकल्प संगम ने 11 जून को अपने वक्तव्य में दी है।

लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण अधिनियम, 2021

इसे लक्षद्वीप टाउन एंड कंट्री प्लानिंग अधिनियम भी कहा जाता है, जिसे 28 अप्रैल को पेश किया गया था। यह अधिनियम विकास प्राधिकरण को शहरी विकास योजनाओं के लिए जमीन और पानी के इस्तेमाल की अथाह शक्ति देता है। इसके मुताबिक, “प्राधिकरण को जमीन का विस्तार करने, जमीन के इस्तेमाल पर नियंत्रण और जमीन पर कब्जे” का अधिकार होगा। अधिनियम के सेक्शन 2 के सब-सेक्शन 9 के तहत विकास का मतलब इमारतें तैयार करना, खनन डिजाइन और अन्य ऑपरेशनों से होगा। इसमें प्राधिकरण को किसी पहाड़ी को या उसके किसी हिस्से को काटने, किसी भूमि पर इमारत बनाने या पुरानी इमारतों में बदलाव का अधिकार भी शामिल है। अधिनियम की यह उपधारा, प्रशासन को विकास के नाम पर लक्ष़़द्वीप में पहले से बसे किसी भी हिस्से को उजाड़ने का हक देती है, भले ही स्थानीय लोग इसके लिए सहमत न हों।

28 मई को मीडिया से बातचीत में लक्ष़़द्वीप के जिला कलेक्टर एस आस्कर अली ने लक्ष़द्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल द्वारा पेश इस अधिनियम का बचाव किया। उन्होंने कहा कि इससे लक्ष़द्वीप भी पड़ोसी द्वीप मालदीव की तरह पर्यटन का वैश्विक केंद्र बनकर लोगों को आकर्षित कर सकेगा। उन्होंने कहा कि प्रशासन पहले ही लक्ष़द्वीप के चार द्वीपों पर विकास की गतिविधियां शुरू कर चुका है। नाम न जाहिर करने की अपील पर एक सूत्र ने बताया कि सुहेली और चेरियम में, जहां आमतौर पर लोग रहते नहीं बल्कि जिनका मछुआरे मौसम के हिसाब से इस्तेमाल करते हैं, वहां उनके लिए बने शेड गिरा दिए गए हैं और जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। जबकि मिनिकॉय और कठमठ में जहां आबादी रहती है, योजना अपनी गति पर है। गौरतलब है कि लक्ष़द्वीप के 36 में से 10 द्वीपों पर ही आबादी रहती है।

लक्ष़द्वीप की राजधानी कवरत्ती के पंचायत सदस्य निजामुद्दीन केआई के मुताबिक, “प्रशासन उन चार द्वीपों पर मेगा प्रोजेक्ट की योजना बना रहा है, जहां आबादी रहती है। यह रवींद्रन पैनल की अनुशंसाओं के खिलाफ है।” रवींद्रन समिति का गठन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किया गया था जिसकी अनुशंसा पर 2015 में केंद्र सरकार ने इस द्वीप के विकास के लिए इंटीग्रेटेड आइलैंडस मैनेजमेंट प्लान यानी आईआईएमपी मंजूर किया था। निजामुद्दीन कहते हैं, “लक्षद्वीप का विकास आईआईएमपी की अनुशंसाओं के अनुरूप ही किया जाना चाहिए जबकि वर्तमान प्रशासक द्वारा प्रस्तावित अधिनियम उसके अनुकूल नहीं हैं। हम मालदीव की तरह नहीं हो सकते।”

वहीं विकल्प संगम का मानना है कि प्रशासक के कदमों से उनकी रणनीति के तीन पहलू उजागर होते हैं- पहला, बड़े कारोबारियों के लिए यहां के पर्यटन क्षेत्र को खुला छोड़ना, दूसरा सांस्कृतिक-धार्मिक आजादी को सीमित करना और तीसरा द्वीप का केरल से संपर्क तोड़ना।

लक्षद्वीप और मालदीव में काफी अंतर

वैज्ञानिक कहते हैं कि हालांकि लक्षद्वीप और मालदीव दोनों द्वीप-समूहों में कुछ हद तक समानता है लेकिन इसके बावजूद उनमें काफी अंतर है। मालदीव में अंगूठी के आकार जैसी चट्टानों के 26 द्वीप हैं, जिसे प्रवालद्वीप कहते हैं। एक प्रवालद्वीप में सैकड़ों द्वीप होते हैं। कुल मिलाकर मालदीव में एक हजार से ज्यादा द्वीप हैं जबकि लक्षद्वीप में केवल 36। निजामुद्दीन के मुताबिक, “मालदीव में पर्यटन की ज्यादातर गतिविधियां उन क्षेत्रों में हैं, जो पहले से गैर-आबाद हैं। अगर आप मान भी लेते हैं कि लक्षद्वीप इसके लिए तैयार है तो नई योजना स्थानीय इकॉनमी के लिए फायदेमंद नहीं होगी।” दक्षिण एशिया में पर्यटन पर निगाह रखनेवाले कोच्चि के एक पत्रकार के मुताबिक, “मालदीव में रिसोर्ट व टूरिज्म प्रोजेक्ट स्थानीय लोगों की बजाय बड़ी निजी कंपनियां चला रही हैं, जो लक्षद्वीप में संभव नहीं होगा। लगता है कि प्रफुल्ल पटेल बड़े कारपोरेट के हितों को देख रहे हैं।” लक्षद्वीप बचाओ फोरम का कहना है कि नए प्रोजेक्ट से यहां जमीन और खाड़ी के बीच का अनुपात बदल सकता है। खाड़ियां, चट्टानों को बचाए रखने के लिए जरूरी हैं।

नाजुक पारिस्थितिकी

नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंसेस के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक केवी थॉमस भी इससे सहमत हैं। वह कहते हैं, “लक्षद्वीप की पारिस्थितिकी काफी नाजुक है। यहां किसी विकास योजना से पहले इस बात को ध्यान रखना जरूरी है। नए प्रोजेक्ट ठीक से तैयार किए नहीं लगते।” थॉमस लक्षद्वीप के विकास के लिए गठित आईआईएमपी समूह का हिस्सा थे।

मैसूर के नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के समुद्री जीवविज्ञानी रोहन आर्थर कहते हैं, “लक्षद्वीप के लोगों का भविष्य समुद्री जीवन से जुड़ा हुआ है और यह बात उसे अलग बनाती है। लक्षद्वीप का भविष्य यहां की मूंगे के आकार वाली चट्टानों यानी शैल-भित्तियों पर निर्भर है और इस तरह यहां के द्वीप-समूहों और मानव समुदायों को भविष्य भी इसी पर निर्भर है। इसलिए शैल-भित्तियों की सुरक्षा करना और पहले से क्षीण हो रही यहां की प्राकृतिक संपदा को बचाना सबसे पहला काम होना चाहिए।”

आर्थर आगे कहते हैं, “लक्षद्वीप में जमीन का खरीदने और बेचने वाली संपत्ति के तौर पर इस्तेमाल सीमित होता है। जमीन के हर हिस्से का स्थानीय लोग अपने जीविकोपार्जन के लिए इस्तेमाल आबादी और गैर-आबादी वाले हिस्से के तौर पर करते हैं। इस जमीन का विकास के आधारभूत ढांचे के लिए इस्तेमाल केवल पारिस्थितकीय जटिलताएं बढ़ाएगा। खाड़ियों पर कब्जा कर अस्थायी निर्माण की अवधारणा केवल लोगों को भ्रमित करने के लिए है, खासकर तब जब इसे स्थानीय लोगों के जीवन और पर्यावरण के बदलाव के संदर्भ में देखा जाए। इनसे न केवल जमीन और जल का प्रदूषण बढ़ेगा बल्कि पर्यावरण के लिए दूसरी चुनौतियां भी पैदा होंगी।”

पहले से कमजोर हैं प्रवालद्वीप

नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के अध्ययनों से साबित हुआ है कि पिछले दो दशकों में पर्यावरण से जुड़े दुष्प्रभावों ने लक्षद्वीप के प्रवालद्वीपों को कमजोर किया है। इसने सवाल उठाया है कि ऐसी स्थिति में विकास का नया ढांचा स्थानीय आबादी के लिए नुकसानदायक साबित होगा। आर्थर आगे कहते हैं कि आधारभूत ढांचे और भारी विकास के नए प्रोजेक्ट नासमझी का नमूना है। यहां जमीन, खाड़ियों और शैल-भित्तियों पर किसी तरह का दबाव लक्षद्वीप में बड़े पर्यावरणीय असंतुलन को जन्म देगा, जिसकी भरपाई कर पाना बहुत मुश्किल होगा।

लक्षद्वीप के पूर्व सांसद और लक्षद्वीप बचाओ फोरम के संचालक पी पूकन्ही कोया के मुताबिक, “इसके अलावा कचरे के प्रबंधन की समस्या भी है। प्रशासन की योजना के हिसाब से अगर यहां बड़े पैमाने पर पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा तो कचरा भी बढ़ेगा। फिलहाल तो प्रोजेक्ट में इसके उपाय की कोई जानकारी नहीं दी गई है, उसमें केवल ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर जोर दिया गया है।” नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी कहते है, “सबसे बड़ी बात यह है कि आप विकास के नाम पर लोगों को उनके रहने की जगह से निकालकर बाहर नहीं फेंक सकते। स्थानीय लोग यहां सदियों से रह रहे हैं और अचानक आप आकर कहते हैं कि इस जगह का ले-आउट खराब है। यह इलाका पूरी तरह से ग्रामीण है और दुनिया में कहीं भी ऐसी जमीन पर भीमकाय इमारतों के निर्माण का प्रावधान नहीं है।”

एक्टिविस्ट भी यही कहते हैं कि हालांकि प्रशासन की दलील है कि विला प्रोजेक्ट की बोली लगाने में स्थानीय लोगों को भी मौका दिया जाएगा लेकिन हमें पता है कि बड़े कारपोरेट के आगे स्थानीय लोग टिक नहीं पाएंगे। एंड्राथ द्वीप के एक उद्यमी अपना नाम न छापने की अपील पर कहते हैं, “हम जानते हैं कि वे वैश्विक टेंडरों की योजना बना रहे हैं। 100-200 बड़े प्रोजेक्टस के लिए दुनिया के बड़े कारपोरेट आएंगे, जिनका हम मुकाबला नहीं कर पाएंगे। जाहिर तौर पर यह उनके लिए ही है।” एक्टिविस्टों का कहना है कि यह अजीब और दुखद है कि स्थानीय लोगों को भरोसे में लिए बगैर प्रशासन एकपक्षीय योजनाएं बना रहा है, जिनका लोगों के विकास से कोई मतलब नहीं है। वे कहते हैं, “हम आदिवासी समुदाय के हैं और संविधान हमें कुछ अधिकारों की गारंटी देता है। हम केवल संवैधानिक मूल्यों को लागू रखने की मांग कर रहे हैं। क्या ऐसा करना गुनाह है?”

कोया कहते हैं, “हम ऐसे सतत विकास के खिलाफ नहीं हैं, जो स्थानीय इकॉनमी के साथ पर्यावरण में भी सकारात्मक बदलाव लाए। प्रशासन अपने प्रोजेक्ट के लिए गैर-आबादी वाली जगहों का चुनाव कर सकता है।”