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जानिए, क्या है वैश्विक भूख सूचकांक और क्यों पिछड़ रहा है भारत?

भारत में भूख के चिंताजनक पहलू पर रोशनी डालते वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) पर दस सवाल...

Bhagirath

वैश्विक भूख सूचकांक (डब्ल्यूएचआई) क्या है?

यह वैश्विक स्तर पर भूख का आकलन करने वाली रिपोर्ट है जो आयरलैंड की गैर लाभकारी संस्था कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की वेल्थुंरहिल्फे द्वारा हर साल संयुक्त रूप से प्रकाशित की जाती है। यह रिपोर्ट इस साल 15 अक्टूबर को जारी की गई है। इस सूचकांक में इस साल 117 देश शामिल किए गए हैं।

सूचकांक में भारत की क्या स्थिति है?

यह सूचकांक भारत के लिए चिंताजनक है क्योंकि इसमें वह 102वें पायदान पर खड़ा है। भारत भूख के मामले में अफ्रीकी देशों के समकक्ष है। रैंकिंग के मामले में भारत की स्थिति अपने पड़ोसी देशों-बांग्लादेश (88), श्रीलंका (66), पाकिस्तान (94), नेपाल (73) और म्यांमार (69) से भी बदतर है। सूचकांक में कहा गया है कि भारत में अब भी लोग खुले में शौच कर रहे हैं। इससे लोगों को स्वास्थ्य प्रभावित होने के साथ ही बच्चों के विकास पर बुरा असर पड़ता है और उनके पोषण तत्वों को सोखने की क्षमता कम होती है।

रिपोर्ट में अंकों के क्या मायने हैं?

भारत 30.3 अंकों के साथ भूख के गंभीर स्तर पर है। रिपोर्ट में अंकों के आधार पर पांच श्रेणियां हैं। अधिक अंक खराब प्रदर्शन को दर्शाते हैं। जिन देशों के अंक 9.9 से कम हैं, वहां भूख का स्तर निम्न है। 10 से 19.9 अंक हासिल करने वाले देशों में भूख का स्तर औसत है जबकि 20 से 34.9 अंक हासिल करने वाले गंभीर और 35 से 49.9 अंक हासिल करने वाले देश खतरनाक श्रेणी में आते हैं। जिन देशों के अंक 50 से अधिक हैं, वहां भूख का स्तर बेहद खतरनाक है।

कितने देशों में भूख का स्तर बेहद खतरनाक, खतरनाक और गंभीर है?

मध्य अफ्रीका गणराज्य ऐसा देश है जहां भूख का स्तर बेहद खतरनाक पाया गया है। वहीं चार देशों- जांबिया, चाड़, यमन और मेडागास्कर में भूख का स्तर खतरनाक है। भारत सहित 43 देशों में यह स्तर गंभीर बना हुआ है। इस स्तर पर अधिक अफ्रीकी देश हैं।

किन देशों में भूख की स्थिति बेहतर है?

सूचकांक में शामिल 46 देशों में भूख का स्तर निम्न है और 23 देशों में भूख का स्तर सामान्य है। इन देशों में स्थिति बेहतर कही जा सकती है।

डब्ल्यूएचआई किन मापदंडों पर आधारित है?

यह सूचकांक चार मापदंडों पर आधारित है और पांच साल तक के बच्चों के स्वास्थ्य का मूल्यांकन करता है। ये मापदंड हैं, अल्प पोषण, वेस्टिंग (उम्र के अनुसार वजन में कमी), स्टंटिंग (उम्र के लिहाज से लंबाई में कमी) और शिशु मृत्युदर।

इन मापदंडों पर भारतीय बच्चों की क्या स्थिति है?

सूचकांक के अनुसार, भारत में 14.5 प्रतिशत बच्चे अल्प पोषित, 20.8 प्रतिशत बच्चों का वजन उम्र के लिहाज से कम, 37.9 प्रतिशत बच्चों की लंबाई उम्र के लिहाज से कम है और यहां शिशु मृत्यु दर 3.9 प्रतिशत है।

इन मापदंडों पर भारत में बच्चों के कुपोषण की स्थिति पहले के मुकाबले सुधरी है या और खराब हुई है?

केवल वेस्टिंग को छोड़कर शेष तीन मापदंडों में सुधार हुआ है। स्टंटिंग की दर साल 2000 में 54.2 प्रतिशत थी, जो 2005 में 47.8 प्रतिशत, 2010 में 42 प्रतिशत हो गई थी। इसी तरह अल्प पोषित बच्चे साल 2000 में 18.2 प्रतिशत थे, 2005 में यह बढ़कर 22.2 प्रतिशत हो गए लेकिन 2010 में घटकर 17.5 प्रतिशत हो गए। शिशु मृत्यु दर जो साल 2000 में 9.2 प्रतिशत थी, वह 2005 में घटकर 7.5 प्रतिशत हो गई। 2010 में इसमें और गिरावट आई और यह 5.8 प्रतिशत पर पहुंच गई। वेस्टिंग की बात करें तो साल 2000 में यह 17.1 प्रतिशत, 2005 में 20 प्रतिशत और 2010 में 16.5 पर आ गया था लेकिन इस साल यह 20.8 प्रतिशत पर पहुंच गया। वेस्टिंग की यह दर सभी देशों से अधिक है और भारत के लिए यह सबसे चिंताजनक पहलू है।

अंकों और रैंकिंग के आधार पर क्या भारत पहले से बेहतर स्थिति में है?

भारत ने 2018 के मुकाबले इस साल अपनी रैंकिंग और अंकों में मामूली सुधार किया है। पिछले साल 119 देशों में भारत की रैंकिंग 103 थी। 2017 में भारत 100वें, 2016 में 97वें, 2015 में 93वंें स्थान पर था। कुल मिलाकर पिछले कुछ सालों से भारत की रैंकिंग लगातार गिर रही है। लेकिन अंकों में सुधार देखने को मिला है। 2018 में भारत को 31.1 अंक मिले थे जो इस साल से बेहतर स्थिति को प्रदर्शित करते हैं। साल 2000 और 2005 में भारत के 38.8 अंक थे। 2010 में भारत ने 32.2 अंकों के साथ अपनी स्थिति में सुधार किया। हालांकि इस स्थिति को संतोषजनक नहीं कहा जा रहा है और सुधार की दर बेहद धीमी है।

जलवायु परिवर्तन का भूख से क्या संबंध है?

जलवायु परिवर्तन और भूख के बीच प्रत्यक्ष और गहरा संबंध है। सूचकांक के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण गरीब देशों में खाद्य असुरक्षा बढ़ती जा रही है। इस कारण कुपोषितों की संख्या बढ़ रही है। 2015 में भूखे लोगों की संख्या 78.5 करोड़ थी जो 2018 में बढ़कर 82.2 हो गई है। चूंकि जलवायु परिवर्तन की मार गरीब और विकासशील देशों पर सबसे अधिक पड़ती है, लिहाजा ये देश ही भूख के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन और खाद्य असुरक्षा के लिए उठाए जा रहे कदम अपर्याप्त हैं।

प्रस्तुति: भागीरथ