खान-पान

आहार संस्कृति: ताउम्र नहीं भूल पाएंगे ‘कुल’ का स्वाद

सड़क किनारे के ठेले वाले से लेकर होटलों तक, स्थानीय मोटे अनाज से बना यह पौष्टिक पेय और दलिया गर्मियों के दौरान तमिलनाडु में बहुतायत में देखने को मिलता है

Vibha Varshney

गर्मियों में अगर आप तमिलनाडु आते हैं, तो हर जगह “कुल” मिल जाएगा। स्थानीय रूप से उपलब्ध बाजरा और रागी से तैयार पेय उतना ही पौष्टिक है जितना यह लोकप्रिय है। यह पेय या दलिया के रूप में उपलब्ध है। इसे आप गर्म या ठंडा इस्तेमाल कर सकते हैं। अपने घर पर या सड़कों पर इसका लुत्फ उठा सकते हैं। यह किण्वित (फर्मेंटेड) भी होता है या सादा भी हो सकता है। इसे सिर्फ बाजरे से बना सकते हैं या कई मोटे अनाजों को मिलाकर भी बनाया जाता है। यह शाकाहारी और मांसाहारी भी हो सकता है। यानी आपके पास कुल के दर्जनों स्वाद में से अपने लिए एक शानदार विकल्प चुनने का मौका है।

किण्वित पेय लोकप्रिय संस्कृति में इतना मशहूर है कि सोशल मीडिया पर कुल पीने का चैलेंज देखना आम है। हालांकि कुल का सिर्फ एक गिलास या कटोरी किसी का पेट भरने के लिए काफी है, लेकिन युवा और बुजुर्ग ऑनलाइन उत्साही कुछ ही मिनटों में 8 लीटर तक पी जाते हैं। तमिलनाडु के शहरों में यह उपलब्ध सबसे सस्ते खाद्य पदार्थों में से एक है, जो इसे अनौपचारिक श्रमिकों, यात्रियों, मजदूरों, ट्रक ड्राइवरों और घरेलू कामगारों के लिए महत्वपूर्ण बनाता है। कुल राज्य में एक छोटे पैमाने का व्यवसाय है। विक्रेता इसे घर पर बनाते हैं। प्याज, धनिया, आम की चटनी, मिर्च, टर्की बेरी, तली हुई ग्वार बीन्स, तले पापड़, मछली, केकड़ा, अंडे जैसी सामग्री के साथ परोसने से पहले इसमें पानी और छाछ मिलाते हैं। इस पेय ने सभी वर्ग भेदों को पार कर लिया है।

यह आपको रोड पर भी मिल सकता है और साथ ही शानदार रेस्तरां और होटलों में भी बेचा जाता है। हालांकि आपको सड़क पर यह 10 रुपए में मिल सकता है, जबकि होटल में इसकी कीमत 500 रुपए हो सकती है।

बहरहाल, जैसा कि किण्वन प्रक्रिया में एक दिन लगता है और पूर्ण रूप से तैयार कुल ढूंढना ही एक समझदारी का कदम हो सकता है। नियमित उपभोक्ता ये भी जानते हैं कि बाजार में बिकने वाला उत्पाद घर पर बनने वाले उत्पाद की तुलना में अधिक स्वादिष्ट होता है। हालांकि, कुल में विक्रेताओं द्वारा दूषित पानी का उपयोग चिंता का विषय है। 2010 में एक एडवोकेसी ग्रुप एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन ने राज्य सरकार से सिफारिश की थी कि विक्रेताओं को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराया जाए और खाद्य प्रबंधन पर उन्हें सर्वोत्तम प्रशिक्षण दिया जाए।

मध्य जुलाई से मध्य अगस्त के बीच, तमिल कैलेंडर के चौथे महीने आदि (आषाढ़) के दौरान देवी मीनाक्षी और शक्ति के मंदिरों में बिना खमीर वाला कुल परोसा जाता है। यह महीना धार्मिक गतिविधियों के लिए शुभ माना जाता है लेकिन नए शुभ काम जैसे शादी या संपत्ति खरीदने के लिए अशुभ माना जाता है। बाजरे का आटा, काले चने, हरे चने और गुड़ से तैयार मीठा दलिया पहले देवी को चढ़ाया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। जबकि रागी (फिंगर बाजरा या एल्यूसिन कोरकाना), कुल और बाजरा/कंबू (पर्ल मिलेट या पेनिसेटम ग्लौकम) कुल के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

ये मोटे अनाज दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे गर्म और शुष्क क्षेत्रों में आसानी से उगते हैं और कम कीमत पर उपलब्ध हैं। यह कुल को लोकप्रिय और किफायती बनाता है। कंबू कुल रागी की तुलना में थोड़ा अधिक महंगा है। इसका उल्लेख संगम साहित्य में किया गया है, जो तमिल में सबसे शुरुआती लेखन है। एक स्वस्थ पारंपरिक नाश्ते या दोपहर के भोजन के रूप में इसका उल्लेख है।

हाल के वर्षों में बाजरा की लोकप्रियता में वृद्धि देखी गई है। ये फाइबर, आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स और अन्य आवश्यक पोषक तत्व से भरपूर है। नतीजतन, उन्हें भारत के सबसे प्रचलित गैर-संचारी रोगों में से एक मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए एकदम सही माना जाता है। प्रोबायोटिक के रूप में यह पेट के लिए अच्छा माना जाता है। कुछ लोग कुल का सेवन इस विश्वास के साथ भी करते हैं कि यह शराब के दुष्प्रभाव को कम करने में मदद करता है।

किण्वित बाजरा अधिक पौष्टिक होते हैं, क्योंकि लाभकारी बैक्टेरिया जैसे लैक्टोबैसिलस फेरमेंटम, वीसेला पैरामेसेंटरोइड्स और यीस्ट स्टार्च को शर्करा और अमीनो एसिड में तोड़ देते हैं। अक्टूबर 2010 में प्रोबायोटिक्स और एंटीमाइक्रोबियल प्रोटीन पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि किण्वन एंजाइम ट्रिप्सिन और एमाइलेज के अवरोधकों को भी कम करता है और अंतिम उत्पाद को पचाने में आसान बनाता है। कुल किण्वित होकर खट्ठा हो जाता है और लंबे समय उपयोग किया जा सकता है।

2020 की एक पुस्तक में प्रकाशित लेख “एथनिक फर्मेंटेड फूड्स एंड वेवरेजेज ऑफ इंडिया: साइंस हिस्ट्री एंड कल्चर” में भी इस तथ्य को दर्शाया गया है। कुल को कभी-कभी दोहरे किण्वन द्वारा तैयार किया जाता है, विशेष रूप से ठंडे मौसम में। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी कुल जैसा पेय है, जिसे अंबली कहा जाता है, जो रागी के आटे से तैयार किया जाता है। इसके लिए पके हुए चावल का पानी, जिसे गंजी कहा जाता है, रात भर किण्वित किया जाता है और रागी के आटे को पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह भी मुंह में पानी लाने वाला स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।

व्यंजन कम्बू कुल/ खिचड़ी
सामग्री:
  • बाजरा (दरदरा पिसा हुआ): 100 ग्राम
  • छाछ : 1 कप
  • नमक : स्वादानुसार
  • पानी : आवश्यकता अनुसार पकाने के लिए या दलिया को पतला करने के लिए
  • कटा हुआ प्याज, हरी मिर्च और कच्चा आम
विधि: दरदरे पिसे बाजरे को दो कप पानी में दो से तीन घंटे के लिए भिगो दीजिये। एक मोटे तले वाले पैन में, दो और कप पानी गरम करें। धीरे-धीरे भिगोया हुआ बाजरा मिलाएं। नमक डाल कर तब तक पकायें जब तक दाना नरम न हो जाए। जरूरत हो तो और पानी डालें। पके बाजरे को ठंडा कीजिये और फिर दलिया जैसा दिखने तक पानी डालें। पैन को ढंककर रात भर रख दें। सुबह अच्छी तरह मिला लें और इसमें छाछ डालें। प्याज, मिर्च और आम मिलाएं। स्वादिष्ट कुल खाने के लिए तैयार है।

पुस्तक
फॉर थिंक बिफोर यू ईट एंड वेराइटी डिशेज ऑफ मिलेट्स
लेखक: चंद्रशेखर बाले प्रकाशक: कृषि भारत प्रकाशन मूल्य: 80 रुपए
इस पुस्तक में स्वस्थ जीवनशैली के लिए विभिन्न प्रकार के मिलेट्स की उपयोगिता के बारे में विस्तार से बताया गया है, साथ ही मिलेट्स से बनने वाले स्वादिष्ट व्यंजनों की विधियों का भी इस पुस्तक में समावेश किया गया है।