खान-पान

बढ़ती कीमतों ने लोगों के साथ-साथ किसानों की भी बढ़ाई चिंताएं, रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा खाद्य आयात बिल

एफएओ का यह नया पूर्वानुमान, खाद्य आयात बिल में आए अब तक के उच्चतम स्तर को दर्शाता है, जोकि 2021 के रिकॉर्ड स्तर से भी 10 फीसदी ज्यादा है

Lalit Maurya

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी नई ‘फ़ूड आउटलुक’ रिपोर्ट से पता चला है कि 2022 में वैश्विक खाद्य आयात बढ़कर 156 लाख करोड़ रुपए यानी 1.94 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच जाएगा। खाद्य आयात बिल में यह वृद्धि पिछले अनुमान से भी कहीं ज्यादा है।

एफएओ का यह नया पूर्वानुमान, खाद्य आयात बिल में अब तक के आए उच्चतम स्तर को दर्शाता है, जोकि 2021 के रिकॉर्ड स्तर से भी 10 फीसदी ज्यादा है।

हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आयात बिल में आने वाली वृद्धि की यह गति उच्च खाद्य कीमतों और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं में आई गिरावट के परिणामस्वरूप धीमी हो जाने की सम्भावना है। देखा जाए तो बढ़ती खाद्य कीमतों और अन्य मुद्राओं के मजबूत होने से आयात करने वाले देशों की खरीदने की क्षमता और आयातित खाद्य वस्तुओं की मात्रा पर असर पड़ता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल में दो बार प्रकाशित होने वाली इस रिपोर्ट में बाजार आपूर्ति के साथ अनाज, तेल, चीनी, मीट, डेयरी उत्पाद के उपयोग सम्बन्धी रुझानों पर जानकारी साझा की जाती है। रिपोर्ट से पता चला है कि वैश्विक खाद्य आयात बिल में ज्यादातर वृद्धि, उच्च-आय वाले देशों की वजह से होगी, मुख्य रूप से इसके लिए खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतें एक बड़ी वजह हैं।

पता चला है कि इन खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों से आर्थिक रूप से कमजोर देशों पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। इसकी वजह से निम्न आय वाले देशों के कुल खाद्य आयात बिल में ज्यादा अंतर नहीं आएगा, लेकिन इसकी वजह से आयात किए जा रहे खाद्य पदार्थों की मात्रा में 10 फीसदी की कमी आने की सम्भावना है।

रिपोर्ट ने यह भी आगाह किया है कि मौजूदा असमानताएं आने वाले दिनों में कहीं ज्यादा गहरा सकती हैं। जहां उच्च-आय वाले देश हर प्रकार के खाद्य उत्पादों का आयात करना जारी रखेंगे, जबकि विकासशील देशों को सबसे ज्यादा उपयोग होने वाली खाद्य सामग्री पर ही अपना ध्यान केंद्रित करना होगा।

गौरतलब है कि पिछले महीने, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने एक नई फ़ूड शॉक विंडो को स्वीकृति दी थी, जिसके जरिए सबसे पिछड़े देशों को आपात वित्त प्रदान किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने इस नए कदम का स्वागत किया है और आयात की बढ़ती कीमतों को देखते हुए इस इस दिशा में एक सराहनीय कदम बताया है।

ऊर्जा और उर्वरकों की बढ़ती कीमतें किसानों के लिए पैदा कर सकती हैं मुश्किलें

एफएओ रिपोर्ट में आयात की गई कृषि सामग्री पर होने वाले खर्च का भी आंकलन किया गया है। पता चला है कि इस वर्ष इसके वैश्विक बिल में 50 फीसदी वृद्धि आई है जिसके बाद इसके 34.1 लाख करोड़ रुपए (42,400 करोड़ डॉलर) पर पहुंचने की आशंका है।

देखा जाए तो इसके लिए काफी हद तक आयात की जा रही ऊर्जा और उर्वरकों की ऊंची कीमतें जिम्मेवार हैं। ऐसे में एफएओ का मानना है कि वैश्विक कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा में इसके नकारात्मक प्रभाव अगले साल भी जारी रह सकते हैं।

रिपोर्ट ने माना है कि फिलहाल आपूर्ति अपने रिकॉर्ड स्तर पर है, मगर ऐसे अनेक कारक हैं, जिनसे आने वाले दिनों में बाजार की परिस्थितियां कठिन हो सकती हैं। जैसे कि अगले वर्ष में गेहूं उत्पादन 78.4 करोड़ टन तक पहुंच सकता है।

इसे कनाडा, और रूस में पैदावार से मजबूती मिली है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर गेहूं भण्डारण रिकॉर्ड स्तर पर होना चाहिए, लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि इसके मूलतः चीन और रूस में केंद्रित होने की सम्भावना है। वहीं बाकी दुनिया में भण्डारण के स्तर में आठ फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।

रिपोर्ट के अनुसार यदि खाद्य सुरक्षा के लिहाज से देखें तो यह यह चिंताजनक संकेत हैं। जो दर्शाते हैं कि आयातकों के लिये बढ़ती अन्तरराष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप वित्तीय प्रबंध कठिन हो रहा है।

ऐसे में ऊंची अंतराष्ट्रीय कीमतों के प्रति उनकी सहनक्षमता का अंत संभवतः नजदीक आ रहा है। देखा जाए तो रूस-यूक्रेन संघर्ष के के बाद से दुनिया भर में खाद्य कीमतों में उछाल दर्ज किया गया है, मगर अब कुछ हद तक इसमें कमी आई है।

एक डॉलर = 80.5 भारतीय रुपए