खाना बर्बाद करने से पहले दोबारा सोचें, आपकी थाली में बचा यह खाना किसी जरूरतमंद का पेट भर सकता है; फोटो: आईस्टॉक 
खान-पान

भोजन की बर्बादी कम करने से भर सकता है 15 करोड़ से ज्यादा लोगों का पेट, उत्सर्जन में भी आएगी चार फीसदी की गिरावट

ओईसीडी-एफएओ एग्रीकल्चरल आउटलुक 2024-2033 रिपोर्ट के मुताबिक भोजन की बर्बादी को आधा करने से कृषि क्षेत्र से हो रहे उत्सर्जन में गिरावट आ सकती है

Lalit Maurya

इससे ज्यादा बड़ी विडम्बना क्या होगी जहां एक तरफ करोड़ों लोग खाने की कमी से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ खाना बर्बाद किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नई रिपोर्ट में भी पुष्टि की है कि दुनिया भर में भोजन की बर्बादी और नुकसान को आधा करने से 15.3 करोड़ लोगों का पेट भरा जा सकता है।

इतना ही नहीं इससे बढ़ते उत्सर्जन में भी गिरावट आएगी, जो पर्यावरण और जलवायु की सेहत के लिए भी फायदेमंद होगा। खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक दुनिया भर में इंसानों के लिए पैदा किया जा रहा करीब एक तिहाई भोजन बर्बाद या नष्ट हो रहा है। नतीजन जहां जरूरतमंद लोगों को भोजन नहीं पहुंच पाता। वहीं बिना किसी मतलब के ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु में आते बदलावों की वजह बन रहा है।

हमें समझना होगा कि हम संसाधनों को यूं जाया नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे द्वारा बर्बाद हर निवाला किसी दूसरे का पेट भरने में मदद कर सकता है। ओईसीडी-एफएओ एग्रीकल्चरल आउटलुक 2024-2033 रिपोर्ट के मुताबिक इस बर्बादी को आधा करने से कृषि क्षेत्र से हो रहे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में चार फीसदी की गिरावट आ सकती है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई है।

रिपोर्ट में यह भी चेताया है कि 2033 में खेतों से निकलकर घरों, दुकानों तक पहुंचने से पहले नष्ट होने वाली कैलोरी, कमजोर देशों में हर साल उपभोग की जाने वाली कैलोरी के दोगुनी से भी अधिक हो सकती है। इसका बढ़ते उत्सर्जन पर भी गहरा असर पड़ रहा है। यह मामला कितना संजीदा है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों का जो उत्सर्जन होता है उसके पांचवे हिस्से के लिए कृषि, वानिकी और भूमि उपयोग जिम्मेवार हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक 2021 से 2023 के बीच बर्बाद और नष्ट हुए भोजन में करीब आधा हिस्सा फल और सब्जियों का था, क्योंकि वे बहुत जल्द खराब हो जाते हैं और उनकी शेल्फ लाइफ बेहद कम होती है। इस बर्बाद और नष्ट हुए भोजन में करीब एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा अनाज का था। भारत में भी घरों में इस तरह की फल सब्जियों का खराब होना बेहद आम है, जिसे आप रोजमर्रा की जिंदगी में भी अनुभव कर सकते हैं, हालांकि हम बड़ी सहजता से इस बर्बादी को नजरअंदाज कर देते हैं।

बर्बादी में कमी से घटेंगी कीमते, आम लोगों को भी मिलेगा पोषण युक्त आहार

लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि दुनिया में ऐसे हजारों लोग हैं जो इस खाने की कमी से हर दिन दम तोड़ रहे हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन का अनुमान है कि 2030 में करीब 60 करोड़ लोग भुखमरी का सामना करने को मजबूर होंगें।

रिपोर्ट का कहना है कि खाद्य पदार्थों की होती बर्बादी और नुकसान को कम करने से वैश्विक स्तर पर कहीं ज्यादा लोगों के लिए भोजन उपलब्ध होगा। इससे खाद्य उपलब्धता बढ़ेगी और कीमतों में गिरावट आएगी। नतीजन समाज के कमजोर तबके तक भी पोषण युक्त आहार की पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि 2030 तक खाद्य पदार्थों के होने वाले इस नुकसान और बर्बादी को आधा करने से कमजोर देशों में आम लोगों के पास 10 फीसदी अधिक भोजन उपलब्ध होगा। इसी तरह निम्न और मध्यम आय वाले देशों में छह फीसदी और उच्च मध्यम आय वाले देशों में भी लोगों के पास पहले से चार फीसदी अधिक भोजन होगा।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास के लक्ष्यों के तहत 2030 तक प्रति व्यक्ति बर्बाद हो रहे खाद्य पदार्थों में 50 फीसदी की कटौती करने का लक्ष्य तय किया है, हालांकि इस दौरान उत्पादन-आपूर्ति श्रृंखला के दौरान खाद्य पदार्थों के होते नुकसान को कम करने के लिए कोई वैश्विक लक्ष्य निर्धारित नहीं है।

रिपोर्ट का कहना है कि, भोजन की बर्बादी में कटौती का यह लक्ष्य बेहद महत्वाकांक्षी है और इसके लिए उपभोक्ता और उत्पादक दोनों की ओर से बड़े बदलाव की आवश्यकता है। देखा जाए तो यह समस्या हम सबकी है और इससे हम सबको मिलकर निपटना होगा।