खान-पान

भारत सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रहने वाले 180 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है पोषक आहार

Lalit Maurya

पोषक आहार एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रहने वाले 180 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है। पिछले 12 महीनों के दौरान उनकी संख्या में करीब 15 करोड़ का इजाफा हुआ था। यह जानकारी कल खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) और यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए कहीं हद तक स्वस्थ और पोषक आहार की बढ़ी हुई कीमतें, गरीबी और आय में व्याप्त असमानता जिम्मेवार है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2020 में इस क्षेत्र में रहने वाले 37.5 करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी का शिकार थे। 2019 में यह आंकड़ा 32.1 करोड़ था, जिसका मतलब है कि कोविड-19 महामारी के फैलने के बाद से भुखमरी से ग्रस्त लोगों की इस संख्या में 5.4 करोड़ का इजाफा हुआ है। जो कहीं हद तक इस महामारी का ही नतीजा है। वहीं इस क्षेत्र में रहने वाले करीब 110 करोड़ लोगों को दो वक्त का भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है। 

इससे पहले एफएओ द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट 'द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2021' में सामने आया था कि दुनिया की 42 फीसदी आबादी अपने बच्चों के लिए पोषक आहार खरीदने में असमर्थ है, जिसका आंकड़ा 300 करोड़ से ज्यादा है। वहीं ऑक्सफेम द्वारा जारी रिपोर्ट ‘द हंगर वायरस मल्टीप्लाइज’ से भी पता चला है कि दुनिया भर में भूख के चलते हर मिनट 11 लोग दम तोड़ रहे हैं। जिसके लिए कोविड-19, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार है।

कुपोषण का शिकार थे भारत के 20.8 करोड़ लोग

2018-20 के लिए एफएओ द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग कुपोषण का शिकार थे। जिसका मतलब है कि करीब 15.3 फीसदी आबादी पोषण की कमी से जूझ रही थी। वहीं पांच वर्ष से कम उम्र के करीब एक तिहाई बच्चों का विकास ठीक से नहीं हो रहा है।

देखा जाए तो हाल के वर्षों में कुपोषण को रोकने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में ठहराव आ गया है। वहीं पोषण से जुड़े कुछ प्रमुख संकेतकों जैसे पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग के मामले पहले ही चिंताजनक थे। लेकिन इस महामारी के बाद से अब हालात और भी ज्यादा बदतर हो गए हैं। 

देश में कुपोषण की क्या स्थिति है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 2020 के दौरान देश में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 31 फीसदी बच्चे स्टंटिंग का शिकार थे। वहीं इसी आयु वर्ग के 1.9 फीसदी बच्चों का वजन सामान्य से ज्यादा था। इतना ही नहीं देश में 15 से 49 वर्ष की करीब 53 फीसदी महिलाएं खून की कमी से ग्रस्त हैं।   

रिपोर्ट के अनुसार महामारी को रोकने के लिए जिस तरह से लॉकडाउन समेत अन्य उपाय अपने गए थे उसके चलते न केवल इस क्षेत्र में बल्कि दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियों पर असर डाला था, जिसका सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ा था। इतना है नहीं खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में आए व्यवधान के चलते भी इस समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया था।

हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि सरकारें सही समय पर जरुरी कदम न उठाती और महामारी के दौरान प्रभावी सामाजिक संरक्षा उपायों के अभाव में खाद्य सुरक्षा की स्थिति और भी बदतर हो सकती थी। ऐसे में भविष्य में खाद्य सुरक्षा की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए रिपोर्ट में कृषि और खाद्य प्रणालियों की मदद से उत्पादन, पोषण, पर्यावरण और जीवन को बेहतर बनाने पर बल दिया गया है।

इसके लिए छोटे, पारिवारिक किसानों और आदिवासियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उठाए गए कदमों की अहमियत को रेखांकित किया है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में खाद्य प्रणालियों की मदद से महिलाओं और बच्चों सहित कमजोर तबके की आहार सम्बन्धी जरूरतों को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।