खान-पान

न बारिश न साधन, हर दिन जीवन के लिए संघर्ष कर रहे लाखों अफ्रीकी परिवार

भुखमरी का आलम यह है कि करीब 72 लाख इथियोपियन खाली पेट सोने को मजबूर हैं। इसी तरह सोमालिया की करीब 40 फीसदी आबादी तीव्र खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही

Lalit Maurya

बारिश के मौसम को शुरू हुए अफ्रीका में करीब एक महीना हो चुका है, इसके बावजूद हॉर्न ऑफ अफ्रीका (इथियोपिया, केन्या, सोमालिया) का यह क्षेत्र अब तक सूखे की मार और पानी की कमी से जूझ रहा है। नतीजन यहां रहने वाले लाखों परिवार हर दिन अपने जीवन के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि यदि परिस्थितियां जल्द न बदली तो यहां रहने वाले करीब 2 करोड़ लोगों के लिए पेट भरना नामुमकिन हो जाएगा।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लूएफपी) का कहना है कि समय तेजी से हमारे हाथों से निकला जा रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक तरफ जहां सोमालिया जो पहले ही भुखमरी से जूझ रहा है, वो अगले छह महीनों में आकाल का सामना करने को मजबूर हो जाएगा। एक तरफ जहां सूखे के कारण फसलें सूख रही हैं, वहीं घटती मानवीय सहायता के चलते भुखमरी से ग्रस्त लोगों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है।

भुखमरी का आलम यह है कि करीब 72 लाख इथियोपियन पहले ही खाली पेट सोने को मजबूर हैं। देखा जाए तो इथियोपिया 1981 के बाद से अपने सबसे गंभीर सूखे का सामना कर रहा है। इसी तरह केन्या में भी पांच लाख से ज्यादा लोग भुखमरी के भयावह स्तर से बस एक कदम दूर हैं।

देखा जाए तो दो वर्षों से भी कम समय में केन्या में ऐसे लोगों की संख्या चार गुना से ज्यादा बढ़ गई है, जिन्हें अपना जीवन चलाने के लिए सहायता की जरुरत है। छोटी अवधि के लिए जारी बारिश के विश्लेषण के अनुसार सूखे के कारण केन्या में 31 लाख लोग आने वाले वक्त में खाने की कमी का शिकार बन सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, लगातार तीन मौसमों में हुई औसत से कम बारिश ने भुखमरी की समस्या को और विकराल बना दिया है। ऐसे में उन परिवारों के लिए समय तेजी से निकलता जा रहा है, जो जीवित रहने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।

सोमालिया में भी करीब 60 लाख लोग या करीब 40 फीसदी आबादी तीव्र खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है। बारिश और मानवीय सहायता के आभाव में वहां आकाल पड़ सकता है। इसी तरह इथियोपिया में कुपोषण की दर आपातकाल की सीमा से काफी ऊपर जा चुकी है।

ऐसा नहीं है बारिश की कमी और सूखे ने केवल इंसानों को ही अपना निशाना बनाया है। पता चला है कि दक्षिणी इथियोपिया और केन्या के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में लगभग 30 लाख पशुओं की जान इस सूखे ने लील ली है।

वहीं 2021 के मध्य से सोमालिया में 30 फीसदी परिवारों के मवेशी इसका निवाला बन चुके हैं। इतना ही नहीं कई अफ्रीका देश संघर्ष की आग में जल रहे हैं, जबकि साथ ही खाद्य कीमतों की बढ़ते कीमते, आर्थिक असुरक्षा और टिड्डियों के हमले उनके परेशानियों को और बढ़ा रहे हैं। 

जरुरी है जल्द कार्रवाई

इस बारे में डब्ल्यूएफपी से जुड़े पूर्वी अफ्रीका के क्षेत्रीय निदेशक माइकल डनफोर्ड का कहना है कि, "हम पिछले अनुभव से जानते हैं कि मानवीय आपदा को रोकने के लिए जल्द कार्रवाई कितनी महत्वपूर्ण है, फिर भी प्रतिक्रिया शुरू करने की हमारी क्षमता सीमित है।"

उनके अनुसार पिछले साल से ही डब्ल्यूएफपी और अन्य एजेंसियां इस बारे में चेतावनी दे रही है कि अगर तुरंत कार्रवाई न की गई तो यह सूखा विनाशकारी रूप ले सकता है, लेकिन धन के आभाव में वो जरुरी कदम न उठा पाने के लिए मजबूर हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 में हॉर्न ऑफ अफ्रीका में ऐसा ही सूखा पड़ा था, लेकिन जल्द कार्रवाई ने तबाही को टाल दिया था। वहीं अब 2022 में संसाधनों की भारी कमी के चलते इस बात की आशंका कहीं ज्यादा बढ़ गई है कि आने वाले वक्त में इस आपदा को रोकना संभव नहीं होगा, जिसका परिणाम यहां रहने वाले लाखों परिवारों को भुगतना होगा। 

यूक्रेन में जारी संघर्ष ने बढ़ा दी हैं दिक्कतें

अंतराष्ट्रीय एजेंसी की मानें तो यूक्रेन में जारी संघर्ष के चलते हॉर्न ऑफ अफ्रीका की स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई है, क्योंकि इस युद्ध के चलते भोजन और ईंधन की लागत लगातार बढ़ रही है। ऐसे में डब्ल्यूएफपी का कहना है कि सूखा प्रभावित देशों के इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने की संभावना है।

अफ्रीका में विशेष रूप से इथियोपिया और सोमालिया में खाने की कीमतें आसमान छू रही हैं। गौरतलब है कि यह क्षेत्र काला सागर क्षेत्र के देशों से आने वाले गेहूं पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है। इसी तरह इस क्षेत्र से उर्वरकों की हो रही कम आपूर्ति भी चिंता का विषय है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि जब वो यूक्रेन युद्ध के पहलुओं पर विचार कर रहे हो तो उन्हें हॉर्न ऑफ अफ्रीका की जरूरतों के बारे में सोचना चाहिए।  

ऐसे में इस मानवीय आपदा से निपटने के लिए डब्ल्यूएफपी ने फरवरी 2022 में जरुरी फंडिंग की अपील वैश्विक समुदाय से की थी लेकिन उसे जरुरत का केवल 4 फीसदी ही मिल पाया था। ऐसे में स्थिति से निपटने के लिए अगले छह महीनों में डब्ल्यूएफपी को करीब 3,600 करोड़ रुपए की जरुरत है, जिसकी मदद से स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।