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साल 2023 में 59 देशों के 28 करोड़ से अधिक लोगों ने किया भीषण भूख का सामना: रिपोर्ट

ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस में कहा गया है कि देशों के बीच हिंसक संघर्षों और जलवायु आपदाओं के कारण दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है

Raju Sajwan

59 देशों के लगभग 28.2 करोड़ लोगों ने साल 2023 में भीषण भूख का सामना किया, जो साल 2022 के मुकाबले 2.4 करोड़ अधिक थे। यह खुलासा ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस में किया गया है।

यह रिपोर्ट फूड सिक्योरिटी इंफ्रॉमेशन नेटवर्क द्वारा हर वर्ष तैयार की जाती है और ग्लोबल नेटवर्क अगेंस्ट फूड क्राइसिस द्वारा लॉन्च की जाती है। इस नेटवर्क में संयुक्त राष्ट्र संगठन, यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भूखे रहने वालों में बच्चे और महिलाएं सबसे अधिक हैं। दुनिया के 32 देशों में 5 साल से कम उम्र के 3.6 करोड़ से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। और 2023 में कुपोषण की स्थिति और बदतर हुई। इसकी दो वजह रहीं, पहली तो देशों के बीच युद्ध और दूसरी आपदाओं के कारण बढ़ रहा विस्थापन।

भूख के कारण
रिपोर्ट के मुताबिक हिंसक 20 देशों में भूख की मुख्य वजह हिंसक संघर्ष था। इन देशों में लगभग 13 करोड़ 50 लाख लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे, जो वैश्विक आबादी का लगभग आधा है। सूडान में हालात सबसे अधिक गंभीर रहे। यहां 2022 की तुलना में 86 लाख से अधिक लोगों को उच्च स्तर की गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा।

भूख का दूसरा बड़ा कारण मौसमी से संबंधित चरम स्तर की घटनाएं रहा। दुनिया के 18 देशों में मौसम संबंधी आपदाओं के कारण लगभग 7 करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों को उच्च स्तर की गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। जबकि इससे पहले 2022 में 12 देशों में 5.7 करोड़ लोगों को इस स्थिति का सामना करना पड़ा था।

रिपोर्ट बताती है कि 2023 में जलवायु संबंधी आपदाएं बढ़ने की वजह रिकॉर्ड स्तर की गर्मी भी रही। इस साल दुनिया ने सबसे गर्म वर्ष का सामना किया। इसके अलावा खाद्य असुरक्षा का कारण भारी बाढ़, तूफान, सूखा, जंगल की आग, कीटों का हमला और बीमारी का प्रकोप भी शामिल थे।

भूखमरी बढ़ने का एक और कारण आर्थिक संकट भी रहा। इसकी वजह से 21 देशों के लगभग 7.5 करोड़ लोगों ने भूख का सामना किया। यहां खाने पीने की चीजों की महंगाई, आयातित खाद्य वस्तुओं पर निर्भरता, उच्च ऋण स्तर आदि कारणों से खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा।

रिपोर्ट बताती है कि पिछले चार साल से लगातार खाद्य असुरक्षा बढ़ रही है। जो कोविड-19 से पहले की स्थिति से काफी अधिक है।