खान-पान

युवाओं में भी बढ़ रहा है कुपोषण का खतरा, जलवायु परिवर्तन है वजह

Lalit Maurya

ग्लोबल वार्मिंग फसलों की उत्पादकता को कम कर देती है जिसके चलते कुपोषितों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। पर क्या तापमान में होने वाली वृद्धि सीधे तौर पर कुपोषण की दर को प्रभावित कर सकती है, यह अब तक ज्ञात नहीं था। ओपन एक्सेस जर्नल प्लॉस मेडिसिन में छपे अध्ययन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के चलते कुपोषण और उससे होने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जिसके अनुसार गर्म मौसम के दौरान, दैनिक तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि, अस्पताल में कुपोषण के कारण भर्ती मरीजों की संख्या में 2.5 फीसदी की वृद्धि कर देती है।

यह अध्ययन युवाओं और बुजुर्गों को गर्मी के जोखिम से बचाने के लिए बेहतर रणनीतियां बनाने की भी बात करता है। ऑस्ट्रेलिया में मोनाश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 2000 से 2015 के बीच ब्राजील के लगभग 80 फीसदी आबादी के दैनिक अस्पताल में भर्ती के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने कुपोषण के कारण अस्पतालों में भर्ती मरीजों और दैनिक औसत तापमान के बीच की कड़ी का अध्ययन किया है।

शोधकर्ताओं के अनुसार अध्ययन के दौरान कुपोषण के कारण अस्पताल में भर्ती 15.6 फीसदी मरीजों के लिए अत्यधिक गर्मी जिम्मेदार पायी गयी। इस अवधि के दौरान औसत तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई थी। विश्लेषण के अनुसार अन्य आयु वर्गोंकी तुलना में 5 से 19 साल के युवाओं और 80 से अधिक आयु के बुजुर्गों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिला। शोधकर्ताओं ने बताया कि तापमान के बढ़ने से ऐसी कई कई समस्याएं घेर सकती हैं जो कुपोषण के लिए जिम्मेदार होती हैं जैसे - कम भूखलगना, अधिक मात्रा में शराब की तलब लगना, पाचन सम्बन्धी विकार, खाना पकाने और खरीदने से बचना और पहले से ही कुपोषण से जूझ रहे लोगों के स्वस्थ्य को और खराब कर देना । अध्ययन के अनुसार विकासशील देशों में जलवायु संकट, भुखमरी और कुपोषण को और बढ़ा रहा है।

शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक खाद्य उपलब्धता में 3.2 फीसदी की कमी आ जाएगी और इस इसके चलते 2050 तक कम वजन वाले लगभग 30,000 लोगों की मौत हो जाएगी।" शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि हालांकि यह भविष्य में कुपोषण से संबंधित बीमारी और मृत्यु पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले वास्तविक प्रभाव की सही तस्वीर नहीं है क्योंकि यह तापमान में हो रही वृद्धि के प्रत्यक्ष और अल्पकालिक प्रभावों को ही दिखाता है, इसमें अप्रत्यक्ष प्रभावों को सम्मिलित नहीं किया गया है । शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन न केवल दुनिया के सबसे अधिक कुपोषण प्रभावित क्षेत्रों में इसकी दर को बढ़ा रहा है, बल्कि साथ ही लोगों में बढ़ते तापमान को झेलने की क्षमता को भी कम कर रहा है।