देश के सभी राज्यों में साल 2017 में पांच साल तक के बच्चों की मौत का बड़ा कारण कुपोषण रहा और 68.2 फीसदी बच्चों की मौत का कारण कुपोषण पाया गया। कुपोषण, सभी उम्र के लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रेशन की ओर से 18 सितंबर को सभी राज्यों में कुपोषण पर एक रिसर्च रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में देश में कम वजन वाले बच्चों के जन्म की दर 21.4 फीसदी रही। जबकि जिन बच्चों का विकास नहीं हो रहा है, उनकी संख्या 39.3 फीसदी, जल्दी थक जाने वाले बच्चों की संख्या 15.7 फीसदी, कम वजनी बच्चों की संख्या 32.7 फीसदी, अनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या 59.7 फीसदी, 15 से 49 साल की अनीमिया पीड़ित महिलाओं की संख्या 59.7 फीसदी और अधिक वजनी बच्चों की संख्या 11.5 फीसदी पाई गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि 2017 जैसा प्रचलन जारी रहता है तो राष्ट्रीय पोषाहार मिशन 2022 के लक्ष्य के मुकाबले कम वजनी बच्चों की जन्म दर 8.6 फीसदी अधिक रह सकती है। इसी तरह जिन बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास रुक जाता है, ऐसे बच्चों की संख्या मिशन के तय लक्ष्य के मुकाबले 9.6 फीसदी, कम वजनी बच्चों का 4.8 फीसदी, बच्चों में अनीमिया
का 11.7 फीसदी और महिलाओं में अनीमिया के मामले 13.8 फीसदी अधिक दर्ज किए जा सकते हैं। यानी कि राष्ट्रीय पोषाहार मिशन का लक्ष्य हासिल करने में भारत पिछड़ सकता है। कुपोषण की वजह से बीमार रहने की दर (डेली) के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं, इसके बाद बिहार, असम और राजस्थान है।
हालांकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के कुल मामलों में 1990 के मुकाबले 2017 में कमी आई है। 1990 में यह दर 2336 प्रति एक लाख थी, जो 2017 में 801 पर पहुंच गई है, लेकिन कुपोषण से होने वाली मौतों के मामले में मामूली सा अंतर आया है। 1990 में यह दर 70.4 फीसदी थी, 2017 में जो 68.2 फीसदी ही पहुंच पाई। यह एक प्रमुख चिंता का विषय है, क्योंकि इससे पता चलता है कि कुपोषण का खतरा कम नहीं हुआ है।
इसी तरह सभी कारणों से डेली के मामलों में कमी आई है, लेकिन कुपोषण की वजह से डेली की दर में कुछ खास कमी नहीं आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में अनीमिया के मामले में भारी वृद्धि हुई, बच्चों में 60 फीसदी और महिलाओं में 57 फीसदी दर्ज की गई। हालांकि 2010-17 के दौरान इसमें मामूली गिरावट दर्ज की गई। वहीं, पिछले एक दशक में 2017 में अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या में 12 फीसदी की वृद्धि हुई है।
यह निष्कर्ष भारत में उन नीतियों पर सवाल खड़ा कर रहा है, जो 1990 में लागू की गई थी और इसके तहत कुपोषित बच्चों के लिए एकीकृत बाल विकास योजना शुरू की गई थी।
इस रिसर्च पेपर में कहा गया है कि एकीकृत पोषण नीति के तहत कई तरह के सुधार करने की जरूरत है, इनमें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना, खुले में शौच की दर को कम करना, महिलाओं की स्थिति में सुधार, कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाना, पोषण संवेदनशील कृषि को बढ़ावा देना, मंत्रालयों और क्षेत्रों में प्रयासों के सामंजस्य के साथ संयोजन, राजनीतिक इच्छाशक्ति और सुशासन, और रणनीतिक निवेश शामिल हैं।