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झारखंड में लॉकडाउन: सरकार की राहत योजनाओं में हैं गंभीर खामियां: सर्वेक्षण

Lalit Maurya

लॉकडाउन के दौरान झारखण्ड सरकार द्वारा चलायी जा रही राहत योजनाओं में गंभीर खामियां हैं। यह जानकारी भोजन का अधिकार अभियान नामक संगठन द्वारा किये सर्वेक्षण में सामने आयी हैं। हाल ही में अप्रैल के पहले सप्ताह में भोजन का अधिकार अभियान, झारखण्ड के सदस्यों ने ग्रामीण क्षेत्रों में दी जा रही सुविधाओं को जानने के लिए सर्वेक्षण किया था।

यह सर्वेक्षण राज्य के 19 जिलों 50 प्रखंडों में किया गया। इसके अंतर्गत उन्होंने राशन की दुकान, दाल भात केंद्र, आंगनवाड़ी, आदि द्वारा लॉकडाउन के समय दी जारी राहत सेवाओं का जायजा लिया था। सर्वे के अनुसार झारखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बहुत गंभीर है। बात चाहे आंगनवाड़ियों की हो या स्वास्थ्य या दाल-भात केन्द्रों की लोगों को जरुरी सहायता नहीं मिल पा रही है।

ग्रामीण झारखण्ड में चिंताजनक है स्थिति

सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति काफी चिंताजनक है। 50 प्रेक्षकों में से 21 ने बताया कि उनके क्षेत्र के बहुत से राशनकार्ड धारक अभी भी अप्रैल के राशन का इन्तजार कर रहे हैं। जबकि 4 प्रेक्षकों ने बताया कि उनके क्षेत्र में मार्च का राशन भी वितरित नहीं हुआ है। जबकि केवल 15 ने माना कि उनके प्रखंड में अप्रैल में दुगना राशन वितरित हुआ है।

सर्वे के अनुसार यह भी शिकायत सामने आई है कि लोगों को उनके हक से कम राशन दिया जा रहा है, पर रिकॉर्ड में पूरी मात्रा चढ़ाई जाती है।मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं है और वो उसका आवेदन कर चुके हैं उन परिवारों को भी 10 किलो राशन दिया जाएगा। लेकिन बहुत कम ही ऐसे परिवारों को अनाज मिला है। इसके लिए अभी तक कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं की गयी है। केवल मुखियाओं को 10,000 रुपए के राहत कोष से जरूरतमंदों को राशन देने की बात कही गयी है। लेकिन इतनी राशि से केवल कुछ लोगों को ही राशन मिल सकता है।

लॉकडाउन के दौरान आंगनवाड़ी बंद हैं। 50 में से केवल 18 प्रेक्षकों ने बताया कि आंगनवाड़ी में सूखे राशन का वितरण किया गया था। जबकि ज्यादातर जगह राशन का वितरण नहीं हुआ है। 50 में केवल 33 प्रेक्षकों ने बताया कि प्राथमिक विद्यालयों में मिडडे मील कि जगह राशन वितरित किया गया है। जबकि कुछ विद्यालयों ने राशन के मूल्य के बराबर पैसे भी बांटे थे। लेकिन यह सहायता भी उन बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही है, जो विद्यालयों से दूर रहते हैं।

बहुत सी जगह ग्राम पंचायत आकस्मिक राहत कोष का सही तरह से इस्तेमाल नहीं हो रहा है। सर्वे के अनुसार 18 प्रखंडों में कम से कम कुछ ग्राम पंचायतों के मुखिया आकस्मिक कोष का उपयोग नहीं कर रहे हैं। जबकि कुछ इसका उपयोग जरूरतमंद परिवारों की मदद के लिए ने करके पंचायत भवन में आइसोलेशन वार्ड बनाने के लिए कर रहे हैं।

हालांकि 50 में से 42 प्रखंडों में दाल भात केंद्र चालू थे। पर अपर्याप्त जानकारी, जरुरी जगहों से दूर होने के कारण सभी को इनसे मदद नहीं मिल रही है। जबकि लॉकडाउन के चलते लोग उन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इन 42 केंद्रों में से 9 केंद्र अभी भी भोजन के लिए 5 रूपये शुल्क ले रहे हैं। जबकि कई केंद्र अभी भी दूरी के नियम का पालन नहीं कर रहे है। ऐसे में संक्रमण के फैलने का खतरा कहीं ज्यादा है। जबकि कुछ से शिकायत आयी है, कि उन्हें सरकार द्वारा दी जा रही राशि अपर्याप्त है। जिस कारण खाद्य सामग्री खरीदने के लिए उन्हें अपने पास से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।

सर्वेक्षण के अनुसार ज्यादातर सभी प्रखंडों में उप-स्वास्थ्य केंद्र चालू हैं। जबकि 9 में, एक भी प्रखंड-स्तरीय प्राइमरी हेल्थ सेंटर और कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में ओपीडी चालू नही है। ज्यादातर जगह पर बैंक से पैसे निकलने में हो रही दिक्कतों कि बात सामने आयी है। करीब 8 प्रखंडों में अपर्याप्त कैश के कारण पैसा नहीं मिल पा रहा है। 50 में से 29 प्रखंडों में प्रज्ञा केंद्र खुले हुए हैं पर वो उंगलियों को प्रमाणीकरण के लिए अभी भी उपयोग कर रहे हैं, जिससे संक्रमण के फैलने का खतरा है।

आदिवासियों और गरीबों पर सबसे ज्यादा बुरा असर

50 में से 15 प्रखंडों के प्रेक्षकों ने बताया कि गरीब तबके के लोगों और आदिवासियों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। उनके बीच भुखमरी जैसे हालात हैं। इन सबके बीच 50 में से 13 प्रखंडों में पुलिसिया ज्यादती की भी खबरे सामने आयी हैं। लावालोंग, मनिका और छतरपुर में पुलिस वालों ने गांव के तालाब से मछली पकड़ रहे और अपने जानवरों को चरा रहे लोगों पर भी बल प्रयोग किया है।

पुलिस वालों ने आवश्यक वस्तुओं के लिए बाहर जा रहे लोगों, जैसे दाल भात केंद्र और बैंक जा रहे लोगों पर भी बल प्रयोग किया है। जबकि यह पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है कि खाने पीने और अन्य जरुरी चीजों के लिए लॉकडाउन के समय में भी घर से बाहर केंद्रों तक जाने की छूट है।

भोजन का अधिकार अभियान, झारखण्ड ने की मांग है कि जितना जल्दी हो सके, सरकार तुरंत दुगने राशन का वितरण सुनिश्चित करे। जन वितरण प्रणाली से छूटे सभी परिवारों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम अंतर्गत जोड़ा जाए। प्रखंड और पंचायत स्तरों के दाल-भात केन्द्रों को सुदृढ़ कर उनका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए। विद्यालयों एवं आंगनवाड़ियों में बच्चों के लिए तुरंत ही अंडों सहित राशन का वितरण किया जाए। साथ ही गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को भी राशन की सुविधा दी जाए।

इसके साथ ही तुरंत विशेष शिकायत निवारण व्यवस्था लागू की जाए जिससे शिकायतों का जल्द से जल्द समाधान हो सके और भ्रष्ट डीलरों और सरकारी अधिकारीयों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई की जा सके।