खान-पान

बच्चों को फूड मार्केटिंग से बचाने के लिए कानूनी सुरक्षा का अभाव

एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार, सख्त कानून बनाकर मां के दूध का विकल्प बन रहे मार्केटिंग उत्पादों को नियंत्रित करने की जरूरत है

Bhagirath

देश और विदेश की बहुत सी कंपनियों के खाद्य सप्लीमेंट बाजार में बेधड़क बिक रहे हैं। कंपनियां दावा करती हैं कि इन खाद्य उत्पादों से बच्चों की पोषण की जरूरतें पूरी होती हैं। बच्चे और उनके अभिभावक आसानी से इन कंपनियों के झांसे में आकर कंपनियों की खाद्य मार्केटिंग का शिकार हो जाते हैं और कंपनी के दावों को सच मान लेते हैं। यही वजह है कि बहुत से अभिभावक मां के दूध से अधिक अहमियत इन खाद्य उत्पादों को देने लगते हैं।

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की ताजा रिपोर्ट “द स्टेट ऑफ फूड सिक्युरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2021” में कहा गया है कि शिशुओं व बच्चों को खाद्य मार्केटिंग के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए दुनिया के किसी देश ने अब तक संपूर्ण कानूनी सुरक्षा लागू नहीं की है। रिपोर्ट के अनुसार, सभी आयु वर्ग के बच्चों को खाद्य मार्केटिंग के दुष्प्रभावों से बचाना एक जरूरी कार्रवाई है और यह मानवाधिकार का अहम पहलू है। सख्त कानून बनाकर मां के दूध का विकल्प बन रहे इन मार्केटिंग उत्पादों को नियंत्रित करने की जरूरत है।

भारतीय कानून की सराहना

हालांकि रिपोर्ट में इस दिशा में उठाए गए भारत सहित कुछ देशों के कदमों की सराहना भी की गई है। रिपोर्ट कहती है कि कुपोषण के बहुत सारे कारण होते हैं। ऐसे में केवल एक नीतिगत उपाय से इस चुनौती से निपटना बहुत मुश्किल है। लेकिन भारत और चिली के आंकड़े बताते हैं कि कानून बहुत अच्छे से काम कर रहा है। यही कारण है कि भारत में शिशुओं के फूड सप्लीमेंट की बिक्री 2002 से 2008 के बीच स्थिर रही है, जबकि चीन में यह तीन गुणा से अधिक बढ़ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के बेहतर कानून की बदौलत शिशुओं के स्तनपान में वृद्धि हुई है। भारत में 1992 में 46 प्रतिशत स्तनपान कराया जाता था जो 2015 में बढ़कर 55 प्रतिशत तक हो गया है। स्तनपान के प्रति जागरुकता और शिशुओं के खाद्य उत्पादों पर सख्त कानूनी नियंत्रण के कारण यह सफलता मिली है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मजबूत निगरानी तंत्र है जो उपभोक्ताओं को कानून के उल्लंघन पर शिकायत की सुविधा देता है। इन शिकायतों पर कार्रवाई करना कानूनी बाध्यता है।

रिपोर्ट में चिली के प्रयासों की भी सराहना की गई है। चिली के फूड लेबलिंग और विज्ञापन से संबंधित सख्त कानून की बदौलत इन खाद्य उत्पादों की बिक्री तेजी से गिरी है। इस देश में उच्च शुगर, नमक, कैलोरी और सेचुरेटेड वसा वाले खाद्य और पेय पदार्थों की बिक्री कानून लागू होने के बाद 24 फीसदी कम हो गई है।

हावी स्वार्थ के कारण नहीं लागू होते कानून 

रिपोर्ट के अनुसार, बहुत से देश सख्त फूड मार्केटिंग कानून इसलिए नहीं लागू कर पाते क्योंकि उन्हें ताकतवर लोगों का विरोध झेलना पड़ता है। ये लोग निजी स्वार्थ के कारण कानून लागू करने में अड़चनें डालते हैं। ये निजी स्वार्थ कंपनियों के भी हो सकते हैं और व्यक्तिगत भी। सीमा पार से होने वाली मार्केटिंग रोकने भी कई देश असमर्थ होते हैं और डिजिटल मार्केटिंग की निगरानी में भी उन्हें परेशानी होती है, इसलिए भी सख्त कानून लागू नहीं हो पाते।  

खाद्य उत्पादों के व्यापार के फायदे भी, नुकसान भी

रिपोर्ट के अनुसार, व्यापार के द्वारा पोषण तत्वों से युक्त भोजन की उपलब्धता और विविधता तो बढ़ती है लेकिन इससे अत्यधिक प्रसंस्कृत भोजन की भी भरमार हो जाती है। यह प्रसंस्कृत भोजन उच्च वसायुक्त, उच्च सुगरयुक्त और उच्च नमक वाला होता है। इसे देखते हुए नीति निर्माताओं ने दूसरे इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑॅन न्यूट्रिशन के फ्रेमवर्क के तहत व्यापार और पोषण के बीच सामंजस्य स्थापित करके विभिन्न उपाय किए हैं।