हम वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट में सुबह के बाजार का जायजा लेते हुए टहल रहे थे, तभी कानों में एक मां और बेटी की बातचीत सुनने को मिली। दोनों एक दुकानदार से त्योहारों में उपवास के दौरान खाने वाले अनाजों, विशेषकर “तिन्नी” चावल के बारे में बात कर रही थीं। सुबह के समय सजने वाला यह बाजार सदियों से लग रहा है। इस बाजार में सड़क के दोनो छोर पर लगी दुकानों में जंगलों से एकत्रित कई प्रकार की जड़ी-बूटियों के अलावा सामान्य और कई दुर्लभ किस्म की सब्जियां बिकती हैं। ज्यादातर दुकानदार बुजुर्ग महिलाएं ही होती हैं जो सामान बेचने के साथ इन वन्य उत्पादों को पकाने की विधि भी बताती हैं।
हमारे समाज में व्रत के दौरान खाए जाने वाले खाने का काफी अधिक महत्व है। पोषण से भरपूर और अंधाधुंध अनुवांशिक छेड़खानी से अछूते भोजन, विशेषकर तिन्नी चावल की कटाई अधिकतर समाज के वंचित समूह के लोग ही करते हैं। दुकानदार उपवास के दौरान खाए जाने वाले अनाजों, स्टार्च वाले अनाज, मोटे अनाज और आटे को बेचते हैं। अगर जंगल के उपजाए जाने वाले खाद्य पदार्थों का वजूद बाजार में उपलब्ध डिब्बाबंद खाने और किसानों द्वारा उपजाए जाने वाले उपजाऊ फसलों के बीच भी बचा है तो इसमें हमारे पर्व-त्योहारों के अनुष्ठान और विधि-विधानों का बड़ा योगदान है।
तिन्नी बिहार के तराई इलाकों, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में काफी प्रसिद्ध है। यह एक अकेला अनाज है जिसे उपवास के दौरान भी खाया जाता है। इस दौरान खाए जाने वाले दूसरे अनाज या तो मोटे अनाज हैं या दूसरे स्टार्च युक्त अनाज। मुझे तिन्नी का चावल बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से सटे एक बड़े बाजार में भी मिला।
बिहार में लोग चार दिवसीय अनुष्ठान छठ के दौरान सूर्य की पूजा करते हैं। इस त्योहार में गन्ने के रस या गुड़ से एक प्रकार का प्रसाद तैयार किया जाता है जिसे “रसिया” कहते हैं। परंपरागत रूप से रसिया तिन्नी के चावल से बनाया जाता रहा है, लेकिन छठ पूजा की प्रसिद्धी देशभर में होने के साथ इसे अब दूसरे प्रकार के चावल में भी बनाया जाने लगा है।
तिन्नी का चावल हर महीने की एकादशी को और वर्ष में दो बार आने वाली नवरात्रि में भी खाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऋषि पंचमी, जो गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद आती है, के दौरान होने वाले उपवास में पानी में होने वाले करेमुआ के साग के साथ तिन्नी का चावल खाया जाता है।
अलग-अलग वातावरण के हिसाब से पतला और मोटा तिन्नी का चावल उगाया जाता है। ताजे चावल में मीठापन होता है और पकाने के बाद इसमें चिपचिपापन भी आता है, लेकिन जब चावल कुछ पुराना हो जाए तो यह स्वाद चला जाता है। परंपरागत विधि से चावल निकालने की वजह से यह चावल चमकीला नहीं होता और मशीन से निकले चावल की तुलना में कुछ ही वर्षों में पुराना भी हो जाता है। चावल नर्म और चिपचिपा बन सके, इसलिए इसे तीन बार पानी में पकाया जाना जरूरी होता है। इसका स्वाद साधारण दाल, दही और साग के साथ अच्छा होता है जो खाने में एकदम देहाती और संतुष्टि प्रदान करने वाला है। मेरी दादी तिन्नी का चावल खाने की काफी शौकीन थी और एकादशी के व्रत में खाने के लिए इसका इंतजाम कर लेती थी।
मैंने जब शोध किया तो पाया कि तिन्नी का चावल या ओरिजा रूफिपोगोन को एक समुदाय के द्वारा उगाया जाता है जिसे “भार” के नाम से जानते हैं। आर्थिक रूप से पिछड़े इन लोगों की आय का मुख्य स्त्रोत खेतिहर मजदूरी और जंगल के उत्पाद जमा करना है। यहां मुझे एक सामाजिक विसंगति भी दिखती है कि जहां व्रत के खाने को पवित्र माना जाता है, वहीं उसे इकट्ठा करने वाले समुदाय, भार को समाज में नीचा स्थान मिला हुआ है। हालांकि उच्च जाति के लोगों को भार समुदाय के लोगों के द्वारा इकट्ठा किए चावल को खाने से कोई ऐतराज नहीं है। यहां तक कि वे इसे उपवास के दौरान भी खाते हैं।
जंगली चावल की किस्मों में मूल अनुवांशिक गुणें को बरकरार रखने की वजह से तिन्नी, चावल की खेती के लिए कई किस्मों का आधार बना हुआ है। इन किस्मों को बचाकर रखना जरूरी है। इसके अलावा, यह चावल अत्यधिक विपरीत मौसम में या फिर बंजर जमीन पर भी उग सकता है। यह असामान्य मौसम के दौरान हमारे लिए खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकता है।
तिन्नी के चावल को काटकर तैयार करने की प्रक्रिया काफी मुश्किल और थका देने वाली है इसलिए इसे अब तक व्यवसायिक खेती के रूप में उपजाना शुरू नहीं किया गया है। लोग जंगली चावल के पौधों के बीज को जमा करने के लिए पौधों में पॉलीथिन या कपड़े बांध देते हैं।
ऑस्ट्रेलिया के जर्नल ऑफ क्रॉप साइंस में वर्ष 2012 में प्रकाशित एक शोध बताता है कि जंगली चावल सामान्य खाने वाले चावल की तुलना में कहीं अधिक पौष्टिक होते हैं। दिखने में खराब होने के बावजूद इसमें अधिक पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं। एंटीऑक्सीडेंट संबंधी गतिविधि होने की वजह से इन पौधों में टोकोक्रॉमनल की अधिक मात्रा होती है जिससे चावल की पौष्टिकता बढ़ती है। मैंने वर्ष 2017 में एक किलो चावल 80 रुपए में खरीदा था।
अब इसकी कीमत 130 रुपए प्रति किलो है। पारंपरिक बाजारों में भार समुदाय के लोग खुद ही अपना उत्पाद बेचने आते हैं। इस उत्पाद में थोक बाजार का दखल नहीं है। तिन्नी का चावल एक महत्वपूर्ण जर्मप्लाज्म है। यह विशिष्ट जरूरी गुणों और अत्यधिक अनुवांशिक विविधताओं से भरा है और इसे संरक्षित करने की जरूरत है। पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) की जानकारी और अनौपचारिक सांस्कृतिक संस्थाएं जैसे, भार समुदाय की महिलाओं का ज्ञान तिन्नी के चावल को वर्षों से संरक्षित रखने में काफी सहायक रहा है।
व्यंजन
तिन्नी की खिचड़ीसामग्री
रसियासामग्री
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