देश में जीएम खाद्य पदार्थों को विनियमित करने वाले सरकार के एक मसौदे पर नागरिक संगठनों के विरोध स्वर तेज हो गए हैं। संयुक्त नागरिक संगठनों का कहना है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) का यह मसौदा न सिर्फ लोगों की सेहत को जोखिम में डालेगा बल्कि यह व्यावसायिक हितों को साधने वाला है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की ओर से 15 नवंबर, 2021 को जीएम खाद्य पदार्थों के विनियमन का मसौदा जारी किया था। इस पर 15 जनवरी, 2022 तक आम लोगों की टिप्पणी और सुझाव मांगा गया है।
जीएम खाद्य पदार्थों का विरोध करने वाले संयुक्त नागरिक संगठन जीएम फ्री इंडिया ने 6 जनवरी, 2022 को इस मसौदे की कमियों को लेकर एक ऑनलाइन प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया। इसके तहत नागरिक संगठनों ने एफएसएसएआई के ताजा मसौदे पर सार्वजनिक आपत्तियों या सुझावों के लिए सीमित एवं पूर्व निर्धारित प्रारूप पर दी गई समय सीमा को बढ़ाने की मांग भी की है।
प्रेस कांफ्रेंस में जतन ट्रस्ट के कपिल शाह ने कहा कि “खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 की धारा 16 के तहत खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है आम लोगों को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना और प्रस्तावित विनियमन मसौदा इसकी अनदेखी करता है। जीएम खाद्य पदार्थों के प्रतिकूल प्रभावों पर पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं। इसके बावजूद इस मसौदे में कई तरह की कमियां और अस्पष्टता है।
शाह ने कहा कि इस मसौदे पर सार्वजनिक आपत्ति और सुझाव मांगने से पहले ही जीएम खाद्य पदार्थों का व्यावसायीकरण चाहने वाली कंपनियों से राय-मशविरा किया गया है। मसौदे से साफ है कि इसमें व्यावसायिक हितों की बात की जा रही है, जबकि आम लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े बिंदुओं की अनदेखी की गई है। सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि राज्य के विषय हैं लेकिन इसके बावजूद राज्यों से बिना किसी परामर्श और विचार के ही जीएम पदार्थों को विनियमित करने वाला एक मसौदा जारी कर दिया गया है।
जीएम खाद्य को लेकर एफएसएसएआई के मसौदे में कहा गया है कि वह सभी खाद्य उत्पाद जिनमें जेनेटिकल इंजीनियर्ड सामग्री एक फीसदी या उससे अधिक होगी उनपर जीएमओ के होने की लेबलिंग की जाएगी। जीएम फूड का विरोध करने वाले नागरिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह प्रस्तावित विनियमन जीएम फूड पर रोक के बजाए आयात को बढावा देगा।
नागरिक संगठनों का यह भी आरोप है कि मसौदे में जीएम चारे को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है, जबकि जीएम चारा पशु और निर्भर आबादी के लिए एक बड़ा संकट बन सकता है।
जीएम-फ्री भारत के लिए गठबंधन के सह-संयोजक एवं किसान राजेश कृष्णन ने कहा कि असल में अभी के लिए एफएसएसएआई को मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में अवैध जीएम खाद्य पदार्थ बेचने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई हो। साथ ही इस मसौदे को विभिन्न भारतीय भाषाओं में बनाया जाए जिससे सबकी समझ तैयार हो सके।
भारत में जीएम खाद्य पदार्थों के विनियमन का मुद्दा अप्रैल 2016 से ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाली एफएसएसएआई के बीच लटक रहा है।
सार्वजनिक दबाव में एफएसएसएआई ने 1 जनवरी 2021 से एक नयी व्यवस्था के तहत कुछ चुनिंदा फसलों (सेब, बैंगन, मक्का, गेहूं, खरबूजा, अनानास, पपीता, आलूबुखारा, आलू, चावल, सोयाबीन, चुकंदर , गन्ना, टमाटर, शिमला मिर्च, कुम्हड़ा, अलसी, बीनप्लम और कासनी) के सभी आयातकों के लिए एक “गैर जीएम मूल-एवं-जीएम-मुक्त” प्रमाणन अनिवार्य कर दिया था परन्तु यह व्यवस्था प्रसंस्कृत जीएम खाद्य पदार्थों पर लागू नहीं की गई है।
कपिल शाह ने कहा कि यह एक तरह से जीएम खाद्य पदार्थों के आसान प्रवेश का मार्ग खोलने की कोशिश है क्योंकि ट्रांसजेनिक प्रौद्योगिकी के आवेदकों को केवल मानकों और नियमों में ढील दे कर ही मंजूरी मिल सकती है। अब एफएसएसएआई आवेदकों के लिए एक अनुकूल राह खोलने में मदद कर रहा है।
शाह ने कहा कि बीटी बैंगन और जीएम एचटी सरसों के सन्दर्भ में हुई सार्वजनिक चर्चा एवं उपभोक्ता सर्वेक्षणों से यह स्पष्ट हो चुका है कि भारतीय नागरिक नहीं चाहते कि जीएम खाद्य पदार्थ उनके आहार में शामिल हों। ज्यादातर राज्य सरकारों ने भी भोजन एवं खेती में जीएम तकनीक को शामिल करने के खिलाफ नीति अपनाई है। इस मसौदे में ‘नाकाम बायोटेक इंडस्ट्री की चोर दरवाजे से जीएम खाद्य पदार्थों को घुसाने की कोशिश प्रस्तावित विनियमन प्रस्तावों से साफ़ झलकती है।’
जीएम फ्री इंडिया के लिए गठबंधन की कविता कुरुगंती ने कहा कि “ जब एफएसएसएआई द्वारा जीएम खाद्य पदार्थों पर वैज्ञानिक पैनल के पुनर्गठन में जैव सुरक्षा से जुड़े विशेषज्ञों के बजाए जीएम फसल विकसित करने वाले लोग भी आपत्ति के बावजूद शामिल रहे। वैज्ञानिक पैनल में विशेषज्ञों के चयन का कोई मापदंड सार्वजानिक नहीं किया गया। इसलिए नवंबर 2021 में अधिसूचित प्रस्तावित विनियम नागरिक हितों की अनदेखी और हमेशा की तरह खाद्य उद्योग के व्यवसाय को सुविधाजनक बनाए रखने का प्रयास है।"
“मसौदा विनियमों में इस बात का भी कोई उल्लेख नहीं है कि जीएम फूड पर रोक के लिए ‘प्राधिकरण’ अपने निर्णय कैसे लेगा, किस तरह की जैव सुरक्षा विशेषज्ञता के साथ लेगा, और न ही यह कि जीएम पदार्थों के दीर्घकालिक प्रभावों की स्वतंत्र पड़ताल के परिणामों की वह सार्वजानिक परीक्षण व्यवस्था क्या होगी जो निर्णय लेने में एफएसएसएआई का मार्गदर्शन करेगी।
इस मामले में नागरिक संगठनों की तरफ से इस आशय का एक पत्र आज एफएसएसएआई को भेजा गया है। संगठनों ने मांग की है कि एफएसएसएआई को सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने की समय सीमा को कम से 6 महीने बढ़ाना चाहिए एवं प्रस्तावित विनियमों को स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराना चाहिए। इस बीच विनियमन अधिसूचित न होने एवं एफएसएसएआई द्वारा कोई अनुमति नहीं होने के कारण भारत में बेचे जाने वाले किसी भी जीएम खाद्य पदार्थों को अवैध माना जाना चाहिए।