खान-पान

संसद में आज: भारतीय खाद्य निगम ने एथेनॉल के लिए आवंटित किया मक्का व चावल

सरकार ने आज, 17 दिसंबर, 2025 को संसद में विभिन्न मुद्दों जैसे - खाद्य सुरक्षा, जलवायु कार्रवाई, स्वच्छ ऊर्जा, पोषण सुधार और शिक्षा पर पूछे गए सवालों का जवाब दिया

Dayanidhi

  • जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से निपटने हेतु उपग्रह, सुपरकंप्यूटर और मिशन मौसम से पूर्वानुमान सटीक हुआ।

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत ग्रामीण 75 फीसदी और शहरी 50 फीसदी आबादी को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है।

  • एथेनॉल मिश्रण के लिए अतिरिक्त चावल और मक्का का उपयोग, पीडीएस और पशु आहार पर असर नहीं।

  • पीएम-कुसुम योजना से सौर पंपों का विस्तार, सिंचाई लागत घटी, किसानों की आय बढ़ी, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा।

  • शिक्षा, पोषण और आंगनवाड़ी सुधारों से ड्रॉपआउट दर और कुपोषण में उल्लेखनीय कमी दर्ज।

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे

भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव लगातार गंभीर होते जा रहे हैं। बढ़ता तापमान, अनियमित मानसून, सूखा, बाढ़, समुद्री जलस्तर में वृद्धि, मिट्टी का क्षरण और भूजल की कमी देश के लिए बड़ी चुनौती बन चुके हैं। इस स्थिति को देखते हुए भारत सरकार का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

लोकसभा में दिए गए उत्तर में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में बताया कि 20वीं सदी के मध्य से भारत में औसत तापमान में वृद्धि और चरम मौसम की घटनाओं में तेज इजाफा हुआ है।

सरकार ने मौसम पूर्वानुमान, आपदा चेतावनी और जलवायु आकलन को मजबूत करने के लिए आईएमदी, आईआई टीएम, इनकॉइस, एनसीएमआरडब्ल्यूएफ जैसे संस्थानों को सशक्त किया है।

आधुनिक रडार, उपग्रह, सुपरकंप्यूटर ‘अर्का’ और ‘अरुणिका’ तथा मिशन मौसम जैसी पहल से मौसम पूर्वानुमान की सटीकता 30 से 40 फीसदी तक बढ़ी है। इससे चक्रवात, बाढ़ और सूखे से होने वाले जान-माल के नुकसान में बड़ी कमी आई है।

भारत में खाद्य सुरक्षा

सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में आज, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्यमंत्री निमुबेन जयंतीभाई बंभाणिया ने लोकसभा में जानकारी देते हुए कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत ग्रामीण आबादी के 75 फीसदी और शहरी आबादी के 50 फीसदी लोगों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे देश में अधिकार-आधारित खाद्य सुरक्षा व्यवस्था स्थापित हुई है।

बंभाणिया ने कहा कि सरकार ने पोषण सुधार के लिए मोटे अनाज (मिलेट्स) को पीडीएस में शामिल करने की सलाह दी है। जलवायु परिवर्तन के असर को देखते हुए एनआईसीआरए परियोजना के तहत 651 जिलों का आकलन किया गया, जिनमें 310 जिले संवेदनशील पाए गए। इसके अलावा, 2014-2024 के बीच 2,900 से अधिक नई फसल किस्में विकसित की गई, जो जलवायु तनाव को सहन करने में सक्षम हैं।

एथेनॉल मिश्रण और खाद्य सुरक्षा

आज सदन में एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम के तहत खाद्यान्न उपयोग को लेकर उठ रहे सवालों पर उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने लोकसभा में स्पष्ट जानकारी दी है। इस पर राज्य मंत्री श्रीमती निमुबेन जयंतीभाई बंभाणिया ने कहा कि 2024-25 में 31.83 लाख मीट्रिक टन और 2025-26 में 4.58 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त एफसीआई चावल एथेनॉल उत्पादन के लिए उठाया गया। यह चावल पीडीएस के लिए आरक्षित नहीं था, बल्कि अतिरिक्त भंडार से लिया गया।

मक्का आधारित एथेनॉल उत्पादन के लिए लगभग 125 लाख मीट्रिक टन मक्का उपयोग में लाया गया, जबकि देश में कुल मक्का उत्पादन 434 लाख मीट्रिक टन रहा। सरकार ने दावा किया कि इससे पोल्ट्री और पशु आहार पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बफर स्टॉक की नियमित निगरानी की जाती है।

उपग्रह आधारित मौसम और आपदा पूर्वानुमान

देश में आपदा प्रबंधन को सशक्त बनाने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय उपग्रह आधारित मौसम पूर्वानुमान प्रणाली को लगातार उन्नत कर रहा है। इस पर राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि इनसेट-3डीआर और इनसेट-3डीएस उपग्रहों से हर 15 से 30 मिनट में मौसम के आंकड़े प्राप्त हो रहे हैं। आने वाले इनसेट-4जी उपग्रहों से ब्लॉक-स्तर तक सटीक पूर्वानुमान संभव होगा। सिंह ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में चक्रवात से होने वाली मौतों में भारी कमी आई है, 1999 के ओडिशा सुपर साइक्लोन में 7,000 मौतों की तुलना में हाल के वर्षों में यह संख्या 100 से कम रही।

आईएमडी द्वारा मौसम, मेघदूत और दामिनी ऐप के माध्यम से करोड़ों लोगों तक चेतावनी संदेश भेजे गए हैं। 2025 के मानसून में 6,274 सीएपी अलर्ट जारी किए गए।

सौर ऊर्जा आधारित कृषि पंप

संसद में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय में राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने लोकसभा में कहा कि किसानों की आय बढ़ाने और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा पीएम-कुसुम योजना लागू की जा रही है।

योजना के तहत तीन घटक हैं-

  • घटक-अ : 10,000 मेगावाट सौर संयंत्र

  • घटक-ब: 14 लाख ऑफ-ग्रिड सौर पंप

  • घटक-स: 35 लाख ग्रिड-कनेक्टेड पंपों का सौरकरण

उत्तर प्रदेश में अब तक 66,558 सौर पंप लगाए जा चुके हैं। आंवला लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 2,218 सौर पंप और 345 ग्रिड-कनेक्टेड पंप सौर ऊर्जा से जोड़े गए हैं। किसानों को 30 फीसदी तक केंद्रीय वित्तीय सहायता दी जा रही है, जिससे सिंचाई लागत कम हुई है और आय में वृद्धि हुई है।

मिशन सक्षम आंगनवाड़ी एवं पोषण 2.0: बच्चों के पोषण को मजबूत करने की पहल

भारत सरकार महिलाओं और बच्चों के पोषण एवं स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए मिशन सक्षम आंगनवाड़ी एवं पोषण 2.0 का संचालन कर रही है। यह योजना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत लागू की जा रही है। इस संबंध में राज्यसभा में जानकारी देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने बताया कि सरकार ने इस मिशन के लिए बीते वर्षों में बड़े स्तर पर बजट आवंटन और खर्च किया है।

आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में इस योजना के लिए 17,252.31 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया, जिसमें से 15,784.39 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इसी तरह 2021-22 में 19,999.55 करोड़ रुपये, 2022-23 में 20,263.07 करोड़ रुपये और 2023-24 में 22,022.99 करोड़ रुपये का बजट रखा गया। 2024-25 में लगभग 21,014 करोड़ रुपये का व्यय हुआ, जबकि 2025-26 में नवंबर 2025 तक 11,683.02 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।

इस मिशन के तहत देशभर में आंगनवाड़ी केंद्रों को सक्षम आंगनबाड़ी केंद्रों में बदला जा रहा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में हजारों आंगनवाड़ी केंद्रों का उन्नयन किया गया है। इससे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को बेहतर पोषण, स्वास्थ्य सेवाएं और प्रारंभिक शिक्षा मिल रही है।

पोषण की स्थिति पर नजर रखने के लिए पोषण ट्रैकर का उपयोग किया जा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़े बताते हैं कि बच्चों में कुपोषण के मामलों में लगातार सुधार हुआ है। एनएफएचएस-5 (2019-21) में स्टंटिंग की दर 35.5 फीसदी थी, जो अक्टूबर 2025 में घटकर 33.54 फीसदी रह गई है। वेस्टिंग की दर भी 19.3 फीसदी से घटकर 5.03 फीसदी हो गई है।

कुल मिलाकर, मिशन सक्षम आंगनवाड़ी एवं पोषण 2.0 देश में बच्चों के पोषण स्तर को सुधारने और स्वस्थ भविष्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

पशुधन गणना: देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़

सदन में उठाए गए के सवाल के जवाब में आज, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में मंत्री श्री राजीव रंजन सिंह (ललन सिंह) ने राज्य सभा में कहा कि भारत में पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण आधार है। मंत्रालय द्वारा देश में पशुओं की संख्या जानने के लिए नियमित रूप से पशुधन गणना कराई जाती है। उन्होंने कहा 20वीं पशुधन गणना के अनुसार देश में गाय, भैंस, भेड़ और बकरियों की संख्या बहुत बड़ी है।

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 19.35 करोड़ गायें, 10.98 करोड़ भैंसें, 7.42 करोड़ भेड़ें और 14.88 करोड़ बकरियां हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में पशुधन की संख्या सबसे अधिक है। अकेले उत्तर प्रदेश में 1.90 करोड़ गायें और 3.30 करोड़ भैंसें दर्ज की गई हैं।

मंत्री ने बताया कि पशुपालन राज्य का विषय है, इसलिए पशुओं के लिए चारा सब्सिडी जैसी योजनाएं राज्य सरकारें चलाती हैं। हालांकि केंद्र सरकार राष्ट्रीय पशुधन मिशन और पशुपालन अवसंरचना विकास निधि के माध्यम से राज्यों के प्रयासों को सहयोग देती है। इन योजनाओं का उद्देश्य पशुओं के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध कराना और दुग्ध उत्पादन बढ़ाना है।

पशुधन गणना से प्राप्त आंकड़े नीतियां बनाने, किसानों की आय बढ़ाने और पशुधन से जुड़े कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद करते हैं। इससे ग्रामीण रोजगार, दुग्ध उत्पादन और कृषि आधारित उद्योगों को भी मजबूती मिलती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की समस्या और समाधान

ग्रामीण भारत में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की समस्या लंबे समय से चिंता का विषय रही है। इस संबंध में शिक्षा मंत्रालय, स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा राज्यसभा में जानकारी दी गई। शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने आज, राज्य सभा में बताया कि सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए कई योजनाएं चला रही है।

उन्होंने कहा बच्चों के स्कूल छोड़ने के मुख्य कारणों में गरीबी, पलायन, घरेलू जिम्मेदारियां, स्वास्थ्य समस्याएं और पढ़ाई में रुचि की कमी शामिल हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए समग्र शिक्षा अभियान लागू किया जा रहा है, जो प्री-स्कूल से लेकर कक्षा 12 तक शिक्षा को कवर करता है।

आंकड़ों के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 2022-23 में 7.8 फीसदी थी, जो 2024-25 में घटकर 0.3 फीसदी रह गई। माध्यमिक स्तर पर यह दर 16.4 फीसदी से घटकर 11.5 फीसदी हो गई है।

सरकार ने समग्र शिक्षा के तहत 2022-23 में 44,493.94 करोड़ रुपये, 2023-24 में 45,647.55 करोड़ रुपये और 2024-25 में 47,475.67 करोड़ रुपये का केंद्रीय बजट आवंटित किया। इसके साथ ही पीएम पोषण योजना के तहत बच्चों को पौष्टिक भोजन दिया जा रहा है, जिसके लिए 2025-26 में 12,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

चौधरी ने बताया कि इसके अलावा, विद्या समीक्षा केंद्र (वीएसके) और अपार छात्र आईडी जैसी डिजिटल पहल के जरिए ड्रॉपआउट पर नजर रखी जा रही है। इन प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की स्कूल में उपस्थिति और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है।