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ग्राउंड रिपोर्ट, सरकारी राशन का सच: बीमार बेटी और दामाद के राशन कार्ड के लिए भटक रही है वृद्धा

दामाद को कैंसर है और बेटी मानसिक रूप से बीमार, लेकिन उनके राशन कार्ड नहीं बन रहे हैं। राजस्थान के बाड़मेर से जमीनी तहकीकात

Himanshu Nitnaware

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीबों-जरूरतमंदों को रियायती दरों पर सरकार की ओर से राशन देने की हकीकत जानने डाउन टू अर्थ की टीम दिसंबर के पहले पखवाड़े में झारखंड के अलावा राजस्थान के कई इलाकों में भी गई। झारखंड की जमीनी रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें। पहली कड़ी - ग्राउंड रिपोर्ट, सरकारी राशन का सच: सात साल से कर रहे हैं राशन का इंतजार । दूसरी कड़ी- ग्राउंड रिपोर्ट, सरकारी राशन का सच: बेस्वाद चावल से पेट भर रहे हैं आदिवासी । तीसरी कड़ी - ग्राउंड रिपोर्ट, सरकारी राशन का सच: कार्ड न होने के कारण अनाज ही नहीं, इलाज से भी वंचित हैं लोग । पढ़े आगे-  

राजस्थान के बाड़मेर शहर के एक छोटे से इलाके में, 70 वर्षीय नोजीदेवी के पास केवल दो गाय और चार बछड़े हैं। हर दिन वह करीब 15 किलोमीटर पैदल चलकर आस-पास के इलाकों में दूध पहुंचाती हैं। कुछ साल पहले अपने पति के निधन के बाद एक अलग (परित्यक्त) घर में  रह रही नोजीदेवी परिवार में एकमात्र कमाने वाली सदस्य हैं। वह अपने दामाद और बेटी के साथ रहती हैं जो पूरी तरह से उन्हीं पर निर्भर हैं।

वह बताती है, “मेरी बेटी मानसिक रूप से विकलांग है और मेरे दामाद को कैंसर है। वे न तो कमा सकती हैं और न ही अपनी देखभाल कर सकती हैं।” उसकी दुर्दशा यहां समाप्त नहीं होती है। बरसों से नंगे पांव चलने और दूध ढोने की वजह से उसके पैर विकृत हो गए हैं। गायें भी बूढ़ी हो चली हैं। और मुश्किल से ही दूध देती हैं। वह इन गायों से महीने में 20,000 रुपये कमाती हैं, लेकिन 15,000 रुपये गायों को खिलाने और उनकी देखभाल पर खर्च कर देती हैं।

ऐसे में, जीवित रहने के लिए उसके पास एकमात्र अन्य सहायता सरकारी सार्वजनिक वितरण योजना (पीडीएस) के तहत मिलने वाला 40 किलो गेहूं है, जो कि उसे गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के रूप में वर्गीकृत व्यक्ति के रूप में मिलता है, लेकिन यह गेहूं 15 दिन से कम समय तक चलता है। वह कहती हैं, "एक आदमी के पास जितना होना चाहिए, हमारा पूरा परिवार उससे काम चलाता है।"

इसकी एक बड़ी वजह यह है कि उनके दामाद जोधाराम (45) और उनकी 40 वर्षीय बेटी मांगीदेवी का नाम पर राशन कार्ड नहीं बना है। जोधाराम कहते हैं, “हमने स्थानीय अधिकारियों को सूचित करने के लिए बार-बार प्रयास किया है कि हम बीपीएल कार्ड के लिए पात्र हैं, जबकि हमारे पास नीला राशन कार्ड है जो गरीबी रेखा से ऊपर का संकेत देता है। आवश्यक जांच रिपोर्ट और डॉक्टरों की पर्ची भी दिखाई, लेकिन सब व्यर्थ रहा।”

जोधाराम का कहना है कि 2001 में जब उनकी पत्नी मानसिक रूप से बीमार हो गईं तो परिवार की स्थिति बिगड़ने लगी। उन्होंने अपनी पत्नी की देखभाल के लिए दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना छोड़ दिया। हालात तब और बिगड़ गए, जब 2019 में जोधाराम को कार्सिनोमा मैक्सिला कैंसर का पता चला।

हाल के महीनों में जोधाराम ने अपने और अपनी पत्नी के लिए पेंशन योजना में नाम लिखवा है, जिससे उन्हें 3,000 रुपए आ रहे हैं। लेकिन यह पैसा पर्याप्त नहीं है। वह कहते हैं कि हमें सरकारी राशन की आवश्यकता है क्योंकि हम सारा पैसा अतिरिक्त राशन और किराने का सामान खरीदने में खर्च करते हैं। जबकि बीमारी, कपड़े खरीदने या पुराने क्षतिग्रस्त घर की मरम्मत के लिए पैसे नहीं हैं।

हरकत में आया प्रशासन

हालांकि डाउन टू अर्थ के अंग्रेजी पोर्टल में यह समाचार छपने के बाद राज्य सरकार हरकत में आई और जोधाराम को मदद की पेशकश की। अधिकारियों ने 16 और 17 दिसंबर, 2022 को परिवार का दौरा भी किया।

बाड़मेर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट सुरेंद्र पुरोहित ने डीटीई को बताया कि नोजीदेवी को 1,000 रुपये और 35 किलोग्राम गेहूं की पेंशन मिल रही है ।

उन्होंने कहा, "हमने उन्हें प्रधान मंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत पंजीकृत किया है, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आवास प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है।"

पुरोहित ने कहा कि नोजीदेवी रोजगार के लिए पात्र हैं और उन्हें इंदिरा गांधी शहरी रोजगार योजना से भी जोड़ा जा रहा है।

उन्होंने आगे कहा कि जिला प्रशासन ने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए एक लाख रुपये मूल्य के पट्टे पर जमीन का एक भूखंड देने का भी फैसला किया है।

उन्होंने आश्वासन दिया कि नोजीदेवी के 45 वर्षीय दामाद जोधाराम और 40 वर्षीय मानसिक रूप से बीमार बेटी मांगीदेवी, जो सार्वजनिक वितरण योजना (पीडीएस) से जुड़े हुए नहीं हैं, को एक सप्ताह के भीतर खाद्य आपूर्ति का हिस्सा मिलना शुरू हो जाएगा। अधिकारी ने कहा, "इस संबंध में उचित प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।"

जिला कलक्टर ने अपनी निधि से दो लाख रुपये की राशि भी स्वीकृत की है। जिससे नोजीदेवी के लिए एक पशु शेड बनाने के लिए पैसा खर्च किया जाएगा। शेष धन का उपयोग परिवार के लिए पानी की टंकी बनाने के लिए किया जाएगा।

अधिकारी ने कहा कि जोधाराम के कैंसर के इलाज के चिकित्सा खर्च के लिए चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना मुफ्त होगी और कोई खर्च नहीं लिया जाएगा।

इसके बाद जोधाराम ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में उम्मीद जताई कि प्रशासन के इस कदम से उनके जीवन स्तर में सुधार होगा।