राजस्थान के राजसमंद जिले के आसन गांव की गली में 70 वर्षीय भूरी बाई डालूराम अपना ई-केवाईसी (इलेक्ट्रॉनिक नो योर कस्टमर) करवाने और अपने पांच सदस्यीय परिवार के लिए 25 किलोग्राम मासिक खाद्यान्न लेने के लिए पिछले एक घंटे से कतार में खड़ीं थीं, लेकिन थकहार कर जब उनकी बारी आई तो उन्हें "मशीन" ने बताया कि उनका ई-केवाईसी पहले ही पूरा हो चुका है और उनका राशन यहां से पहले ही उठा लिया गया है। कहने का अर्थ यह है कि मशीन बता रही है कि उनका गेहूं पहले ही “भूरी बाई” नाम की लाभार्थी द्वारा लिया जा चुका है।
ऐसे उनके साथ अगस्त माह में हुआ था। अपने साधारण से कच्चे घर में बैठी भूरी बाई के चेहरे पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि उसके चेहरे की झुर्रियों में भविष्य को लेकर एक तनाव है। एक सरकारी मशीन की त्रुटि के कारण उनके परिवार को महीनों तक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अपने हक का हिस्सा नहीं मिला।
ध्यान रहे कि ई-केवाईसी प्रक्रिया के लिए राशन कार्ड पर सूचीबद्ध प्रत्येक परिवार के सदस्य का व्यक्तिगत रूप से सत्यापन करना आवश्यक है। व्यक्तियों को अपनी उंगलियों के निशान और आधार कार्ड का उपयोग करके अपनी पहचान प्रमाणित करनी होगी, जिसे उनके राशन कार्ड से जोड़ा जाना चाहिए।
राजस्थान, लाभार्थी पहचान के लिए ई-केवाईसी लागू करने वाले पहले राज्यों में से एक था।
राजसमंद के आसन गांव में अपने घर में निराशा में बैठी भूरी बाई डालूराम ने कहा कि जब से केवाईसी की बात शुरू हुई है, तब से मेरे परिवार को दाने-दाने के लिए मोहताज होना पड़ा है। हमें लगातार राशन से वंचित रहना पड़ा है। यहां ध्यान देने की जरूरत है कि इस प्रकार से राशन नहीं मिलने वाली अकेली भूरी बाई नहीं हैं, जिन्हें पिछले कुछ महीनों में गेहूं का हिस्सा नहीं मिला है।
लगभग तीन किलोमीटर दूर, भूरी बाई बलाई (जिनका पहला नाम भी यही है और जो हर महीने 5 किलो राशन की हकदार हैं) ने बताया कि अगस्त में ई-केवाईसी करवाने के बाद उन्हें 5 किलो के बजाय 25 किलो गेहूं मिलना शुरू हो गया, लेकिन यह सिर्फ दो महीने के लिए था। वर्तमान में वह अपने हक का 5 किलो गेहूं भी नहीं ले पा रही हैं। तो आखिर ऐसा क्या हुआ? एक ही नाम वाली ये महिलाएं खुद को डिजिटल झमेले में फंसा हुआ पाती हैं, जिसकी वजह से उन्हें महीनों से गेहूं नहीं मिल पा रहा है; यह सब नौकरशाही की गलती का नतीजा है।
अगस्त में ई-केवाईसी करवाने के बाद राशन डीलर की गलती के कारण उनका बायोमेट्रिक डेटा भूरी बाई डालूराम के आधार नंबर से जुड़ गया। नतीजतन उस महीने भूरी बाई बलाई ने गलत तरीके से भूरी बाई डालूराम के हिस्से का अनाज ले लिया।
इससे एक ऐसी भयावह समस्या पैदा हो गई जो भूरी बाई पहले राशन लेने दुकान पर गई, उसे राशन मिल गया और दूसरी को उस महीने का राशन नहीं मिला। दुकान के डीलर ने दोनों को 25 किलो राशन आपस में बांटने और “एडजस्ट” करने को कहा।
भूरी बाई डालूराम कहती हैं, “अगस्त और सितंबर में हमारे परिवार को कोई राशन नहीं मिला, क्योंकि दूसरी भूरी बाई ने अपना अंगूठा लगाकर हमारा 25 किलो का हिस्सा ले लिया और डीलर ने हमें कुछ समय के लिए एडजस्ट करने और उससे 20 किलो मांगने को कहा।” उन्होंने आगे कहा कि जब भूरी बाई बलाई के परिवार के सदस्यों ने राशन मांगा तो उन्होंने राशन बांटने से इनकार कर दिया।
जब डालूराम परिवार ने लगातार शिकायत की तो डीलर को “गलती” का अहसास हुआ और उसने अक्टूबर से डालूराम परिवार को उनका 25 किलो गेहूं देना शुरू कर दिया। वे एक भूरी बाई के बायोमेट्रिक्स को दूसरे के आधार से अलग नहीं कर पाए, लेकिन उन्होंने डालूराम परिवार को उसका 25 किलो गेहूं देना शुरू कर दिया।
और एक “समाधान” के रूप में उन्होंने भूरी बाई बलाई के आवंटन को गांव के दूसरे परिवार के साथ जोड़ दिया। अब वह अपने राशन के लिए दूसरे परिवार पर निर्भर हैं। भूरी बाई बलाई ने कहा, “उस परिवार को दो व्यक्तियों के लिए केवल 10 किलो गेहूं मिलता है और वे मेरे लिए अतिरिक्त देने को तैयार नहीं हैं। मैं जिला आपूर्ति अधिकारी के पास गई और एक आवेदन दिया लेकिन कुछ भी नहीं बदला।”
भोजन के अधिकार अभियान से जुड़े एक स्वतंत्र शोधकर्ता और कार्यकर्ता राज शेखर ने बताया कि राशन कार्ड डीलरों को नाम हटाने के लिए दी गई ऐसी स्वायत्तता चिंताजनक है। भूरी बाई बलाई (जिनके पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है) के लिए उनका राशन खोना न केवल एक असुविधा थी बल्कि यह उनकी खाद्य सुरक्षा के लिए ही एक बड़ा खतरा है।
महीने में गेहूं न मिलने के कारण उसे भूखा रहने की नौबत आ जाती है। फिलहाल, वह 1,000 रुपए की अपनी मासिक पेंशन से भोजन खरीद रही है, जिसे वह अब तक अन्य घरेलू खर्चों पर खर्च कर रहीं थीं।
राशन से लेकर पेंशन तक हर चीज के लिए चल रही ई-केवाईसी और बायोमेट्रिक पहचान पर जोर भारत के गांवों में ऐसी भयानक समस्याएं पैदा कर रहा है, जिससे गंभीर चिंता पैदा हो रही है और बड़े पैमाने पर बायोमेट्रिक-आधारित पहचान प्रणाली में संभावित खामियों को उजागर किया जा रहा है।
राशन से लेकर पेंशन तक हर चीज के लिए चल रही ई-केवाईसी और बायोमेट्रिक पहचान पर जोर के चलते देश के ग्रामीण इलाकों में ऐसी समस्याएं पैदा हो रही है, जोकि एक गंभीर समस्या की ओर इंगित करता है। इस समय बड़े पैमाने पर बायोमेट्रिक-आधारित पहचान अभियान में कई तरह की खामियां उजागर हो रही हैं।
विशेषकर ग्रामीण इलाकों में जहां तकनीक तक लोगों की पहुंच सीमित होती है और पहचान संबंधी भ्रम की संभावना अधिक होती हैं। इस संबंध में सरकार का दावा है कि ई-केवाईसी प्रक्रिया का उद्देश्य “सही लक्ष्य तक पहुंचना” सुनिश्चित करना और फर्जी राशन कार्ड को खत्म करना है। भूरी बाई का मामला कोई अकेला मामला नहीं है और न ही यह सिर्फ राशन आवंटन तक सीमित है।
ग्रामीण भारतीयों को इन खामियों के कारण राशन व पेंशन दोनों नहीं मिल रहा। एक साल से अधिक समय हो गया है कि पहचान में गड़बड़ी के कारण पानी खेमा राम को उनकी जिंदगी की गाड़ी चलाने वाली 1,150 रुपए मासिक सामाजिक सुरक्षा पेंशन से वंचित रहना पड़ा है। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि आधार के बायोमेट्रिक सिस्टम से जुड़ी कई त्रुटियों के कारण उनकी पेंशन गलत तरीके से डायवर्ट की गई थी।
2023 में उनकी पेंशन अचानक आनी बंद हो गई। वह पूछताछ के लिए ब्लॉक और पंचायत कार्यालय गईं। वह कहती हैं कि उन्होंने मेरे कागजात देखे और जब उन्होंने ऑनलाइन पोर्टल पर विवरण की जांच की तो उन्होंने पाया कि मेरे आधार नंबर के सामने कोई और नाम और फोटो था। जब उसने फोटो देखी तो वह यह देखकर हैरान रह गई कि यह उसके 62 वर्षीय पड़ोसी पानी बढ़ा राम का था।
पिछले महीने डाउन टू अर्थ ने दोनों पानी से उनके गांव ओडा में मुलाकात की और भ्रम की कहानी सामने आई। इसकी शुरुआत तब हुई जब तीन महिलाएं जिनका नाम पानी था, लेकिन अलग-अलग उपनाम थे।
पानी बढ़ा राम, पानी खेमा राम और पानी मधु राम। स्थानीय ई-मित्र कियोस्क पर अपने बायोमेट्रिक सत्यापन प्रक्रिया के दौरान गलतियों का शिकार हो गईं, लेकिन तीनों में से पानी खेमा राम के लिए परिणाम गंभीर रहे।
2023 में 60 वर्षीय विधवा पानी खेमा राम ने अपने रिकॉर्ड को अपडेट करने और अपने बायोमेट्रिक विवरणों को सत्यापित करने के लिए ई-मित्र केंद्र पर गई,ई, जो राज्य सरकार की पेंशन योजना के तहत पेंशन प्राप्त करने के लिए वर्ष में एक बार आवश्यक है।
ग्रामीण राजस्थान की कई अन्य विधवाओं की तरह ही पानी खेमा राम भी अपने जीवनयापन के लिए सरकार की विधवा पेंशन पर निर्भर थीं। एक मजदूर के रूप में वह राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत काम करके मात्र 250 रुपए प्रति माह कमाती थीं, लेकिन उनकी पेंशन से उनकी आय में वृद्धि होनी चाहिए थी और उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी होनी चाहिए थीं।
लेकिन बायोमेट्रिक सत्यापन प्रक्रिया के दौरान एक गंभीर गलती हुई। जब पानी खेमा राम ने सत्यापन के लिए अपना अंगूठा लगाया तो उनका आधार नंबर गलती से पानी बढ़ा राम के बैंक खाते के विवरण से जुड़ गया।
डोमिनोज इफेक्ट की तरह जब पानी बढ़ा राम उसी केंद्र पर अपना बायोमेट्रिक सत्यापन पूरा करने गईं तो पानी मधु राम की केवाईसी जानकारी सिस्टम में गलती से अपडेट हो गई, जिसके परिणामस्वरूप पानी मधु राम को पानी बढ़ा राम के लिए निर्धारित पेंशन भुगतान मिलना शुरू हो गया।
डाउन टू अर्थ ने पाया कि सिर्फ एक ब्लॉक में गलत सीडिंग और पहचान बेमेल के लगभग 280 मामले थे।
ओडा गांव के अंतर्गत आने वाले देवगढ़ ब्लॉक के अधिकारी गोविंद लाल रेगर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि एक साल में सामने आए 280 मामलों में से करीब 180 मामलों में सुधार किए गए हैं। विडंबना यह है कि यह गलती लापरवाही का नतीजा थी और स्थानीय स्तर पर की गई थी, लेकिन सुधार गांव या ब्लॉक स्तर पर नहीं किए जा सकते।
इन सुधारों को जयपुर में राज्य सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा मंजूरी दी जानी चाहिए। रेगर ने कहा कि शुरू में विभाग ने सुधार किए लेकिन अप्रैल 2024 में हमें एक आदेश मिला कि अब कोई सुधार नहीं किया जाएगा और ऐसे सभी खातों को बंद करना होगा और पेंशन वितरण को फिर से शुरू करने के लिए नए सिरे से बायोमेट्रिक्स सत्यापन करना होगा।
इसका मतलब यह है कि पानी खेमा राम को अपनी पेंशन पाने में सक्षम होने के लिए पानी बढ़ा राम और पानी मधु राम दोनों को अपने पेंशन खाते बंद करने और अपने बायोमेट्रिक्स नए सिरे से देने के लिए सहमत होना होगा।
रेगर ने कहा कि इस प्रक्रिया में सिर्फ एक दिन लगेगा और मैंने तीनों पानियों से कई बार अनुरोध किया है,, लेकिन जो दो लोग अपनी पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें भी पेंशन खोने का डर है इसलिए उन्होंने इस प्रक्रिया के लिए सहमति नहीं दी है।
उन्होंने पिछले एक साल में समाज कल्याण विभाग को ऐसे मामलों में आसान समाधान खोजने के लिए 15-16 पत्र लिखे हैं। हालांकि, अंत में पनी खेमा राम (जिनकी पेंशन पनी बढ़ा राम को दे दी गई थी) को बिना किसी वित्तीय सहायता के छोड़ दिया गया है। स्थानीय ब्लॉक कार्यालय और पंचायत कार्यालय में बार-बार शिकायत करने के बावजूद पनी खेमा राम इस मुद्दे को हल करने में असमर्थ रहे हैं और उनकी पेंशन निलंबित है।
यह भुगतान उनके जीवन के लिए बहुत जरूरी था, जिससे उन्हें भोजन, दवाइयां और अन्य जरूरी चीजों जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में मदद मिली। निराशा से कांपती आवाज में पनी खेमा राम ने कहा कि मुझे नहीं पता कि अब क्या करना है, मैं पंचायत कार्यालय जाता हूं, मैं ब्लॉक कार्यालय जाता हूं, मैं फॉर्म भरता हूं, लेकिन कुछ नहीं होता। मैं एक साल से ज्यादा समय से अपनी पेंशन के बिना हूं।
इस प्रकार के मामले देश के ग्रामीण इलाकों में सत्यापन के लिए आधार और बायोमेट्रिक्स के उपयोग से जुड़ी तमाम त्रुटियों की बढ़ती संख्या का एक प्रतीक है। एक ओर जहां सरकार कहती है की डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करने का उद्देश्य सरकारी कल्याण कार्यक्रमों को कारगर बनाना है।
लेकिन सरकार के इस डिजिटल रिकार्ड की खामियों के कारण समाज के सबसे कमजोर वर्ग आज भ्रम और दुनियाभर की कठिनाइयों से जूझ रहा है। इस संबंध में मजदूर किसान शक्ति संगठन (ई-केवाईसी प्रक्रिया की चुनौतियों से निपटने में यह संगठन ग्रामीणों की मदद करता है) के कार्यकर्ता कालू राम साल्वी ने कहा कि समस्या यह है कि समान नाम वाले कई लोग हैं और सिस्टम हमेशा उनकी पहचान की बारीकियों को नहीं पकड़ पाता है।