चुन्नी बाई सालवी को आखिरी बार मई में राशन मिला था। शगुन/सीएसई 
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घिस गई हाथ की लकीरें तो अधिकार से वंचित हुए लोग: बायोमेट्रिक की विफलता से सरकारी राशन मिलना हुआ बंद

लालफीताशाही के कारण लाखों लोगों के राशन के अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है

Shagun

जब राजस्थान के आसन गांव की निवासी चुन्नी बाई साल्वी अपने महीने का राशन लेने के लिए अपनी निकटतम राशन डिपो ( फेयर प्राइस शॉप) पर गईं तो डीलर ने उन्हें अनिवार्य इलेक्ट्रॉनिक नो योर कस्टमर (ई-केवाईसी) प्रक्रिया के बारे में बताया।

डिपो धारक ने बताया कि ई-केवाईसी पूरा किए बिना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत मिलने वाले 5 किलोग्राम गेहूं के अपने मासिक हक  से वंचित रहना होगा। साल्वी ने दूकानदार की बात मानी और इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (ई-पीओएस) मशीन के माध्यम से अपना ई-केवाईसी सत्यापन पूरा करने का भरसक प्रयास किया।

लेकिन मशीन उनके फिंगर प्रिंट लेने में विफल रही। 80 वर्षीय यह बुजुर्ग महिला ने कई बार प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। उस समय उन्होंने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा, लेकिन डीलर ने उन्हें बताया कि उसका राशन कार्ड तब तक के लिए हटा दिया गया है जब तक कि उसका ई-केवाईसी पूरा नहीं हो जाता।

 ध्यान रहे  कि केंद्रीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय ने देश भर के राशन डिपो धारकों को सभी 24 करोड़ घरेलू राशन कार्डों के लिए ई-केवाईसी सत्यापन करने का निर्देश जारी किया है।

इससे सरकार के लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के माध्यम से एनएफएसए के तहत खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार 80.6 करोड़ लोग शामिल हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि खाद्य असुरक्षा, भूख और कुपोषण के खिलाफ समाज के सबसे कमजोर वर्गों की रक्षा के लिए यह योजना शुरू की गई है।

एनएफएसए, कानूनी रूप से ग्रामीण आबादी के 75 प्रतिशत और शहरी आबादी के 50 प्रतिशत यानी देश की कुल आबादी का दो-तिहाई को सब्सिडी वाले खाद्यान्न का हकदार बनाता है।

ई-केवाईसी अभियान ऐसे समय में शुरू हुआ है, जब जनगणना में देरी के कारण पुराने आंकड़ों पर सरकार की निर्भरता के कारण लाखों लोग पहले ही खाद्य सुरक्षा से बाहर हो चुके हैं।

राजस्थान लाभार्थी पहचान के लिए ई-केवाईसी लागू करने वाले पहले राज्यों में से एक है। इस प्रक्रिया के लिए राशन कार्ड पर सूचीबद्ध प्रत्येक परिवार के सदस्य का व्यक्तिगत रूप से सत्यापन करना आवश्यक है।

व्यक्तियों को अपनी उंगलियों के निशान और आधार कार्ड का उपयोग करके अपनी पहचान प्रमाणित करनी होगी, जिसे उनके राशन कार्ड से जोड़ा जाना चाहिए।

 हालांकि यह प्रक्रिया कागज पर जितनी सरल लगती है, उतनी है नहीं, क्योंकि साल्वी जैसी बुजुर्ग महिलाओ के लिए (जिनके हाथ दशकों से कड़े शारीरिक श्रम के कारण घिस गए हैं) यह प्रक्रिया उसकी खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बन गई है।

उनके हाथों की लकीरें क्या घिसी, उसका राशन का अधिकार ही खत्म हो गया है। ध्यान रहे कि ऐसी महिलाओं द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत व्यापक निर्माण कार्य और खेतों में कृषि मजदूर के रूप में किए गए कामों के कारण वर्षों से उनकी उंगलियों के निशान घिस गए हैं।

उसके बेटे नाथूराम साल्वी ने उसके पीले हाथों की ओर इशारा करते हुए बताया कि जून से वह राशन डीलर से अपनी मां के लिए इस समस्या का हल खोजने की लगातार गुहार लगा रहा है लेकिन उसे केवल यही जवाब मिला है कि जब तक उसकी ई-केवाईसी पूरी नहीं हो जाती तब तक कुछ नहीं किया जा सकता।

 चुन्नी बाई सालवी के बेटे नाथूराम ने दिखाया कि कैसे उम्र और बड़ी मात्रा में लगातार किए गए निर्माण कार्यों के कारण उनकी मां के हाथों की रेखाएं मिट सी गई हैं। ऐसे विपरीत हालात में भी नाथूराम (दिहाड़ी मजदूर हैं) अपने परिवार के पांच (स्वयं, पत्नी और तीन बच्चों) सदस्यों के परिवार के लिए एनएफएसए के तहत मिलने वाले 25 किलो गेहूं से काम चला रहे हैं। और साथ ही अब अपनी मां को राशन नहीं मिलने के कारण उनका का भी भरण-पोषण कर रहे हैं।

ई-केवाईसी प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के लिए एक दबाव जैसी स्थिति बनी हुई थी। हालांकि ऐसे मामलों में जहां फिंगरप्रिंट नहीं लिए जा सकते थे, डीलर व्यक्ति के आधार कार्ड से जुड़े मोबाइल नंबर पर वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) भेज सकता था। मई तक सालवी इसी तरह से अपना राशन प्राप्त कर रहीं थीं।

सरकार का दावा है कि ई-केवाईसी प्रक्रिया का उद्देश्य “सही लक्ष्य तक पहुंच” सुनिश्चित करना और नकली राशन कार्डों को खत्म करना है। लेकिन सालवी के लिए यह नया सरकारी तौरतरीका नहीं भाया और यह उनके लिए भारी साबित हो रहा है।

एक सरकारी बयान के अनुसार 20 नवंबर 2024 तक पीडीएस प्रणाली से 5.8 करोड़ करोड़ राशन कार्ड हटा दिए गए हैं। सरकार का दावा है कि ये “नकली” या “डुप्लीकेट” कार्ड थे। ऐसे हालात में साल्वी जैसे बड़ी संख्या लोग खुद को खाद्य सुरक्षा से बाहर पा रहे हैं।

ध्यान रहे कि जब प्रक्रिया शुरू की गई थी तब समय सीमा सितंबर 2024 तक के लिए निर्धारित की गई थी। बाद में इसे नवंबर 2024 तक बढ़ा दी गई और अब 31 दिसंबर तक है। कायदे से देखा जाए तो समय सीमा नहीं होनी चाहिए थी लेकिन राशन की दूकान के डीलरों ने पहले ही पीडीएस सूची से नाम हटाना शुरू कर दिया है। ऐसे में इसका प्रभाव लाखों पीडीएस परिवारों पर पड़ रहा है। विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में पेंशन वितरण और गैस सिलेंडर सब्सिडी जैसी अन्य कल्याणकारी योजनाओं को यह प्रक्रिया प्रभावित कर रही है।  इस मामले में सबसे अधिक बुजुर्ग नागरिक जिनके फिंगरप्रिंट का मिलान करना सबसे कठिन होता है, प्रभावित हुए हैं और ऊपर से यह वर्ग सबसे अधिक असहाय स्थिति में भी होता है।

राजस्थान के कालादेह भीम तालुका के धोती गांव की मेहना रामलाल का मामले को ही देखें तो जून 2024 से वह दो वक्त के भोजन के लिए अपने पड़ोसियों की दया पर निर्भर होना पड़ रहा है। रामलाल अपने ई-केवाईसी को पूरा करने के लिए एफपीएस करने में असमर्थ है, जिसके परिणामस्वरूप उसका राशन कार्ड हटा दिया गया है। पहले गांव का कोई व्यक्ति उसके लिए राशन ले जाता था, लेकिन ई-केवाईसी के सख्त नियमों के कारण अब यह संभव नहीं है।

ध्यान रहे कि रामलाल एक “अंत्योदय” लाभार्थी भी हैं, जिन्हें सबसे गरीब लोगों की श्रेणी में रखा गया है। और टीपीडीएस के तहत प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम की जगह प्रति माह 35 किलोग्राम राशन के हकदार हैं। जब डाउन टू अर्थ ने पिछले हफ्ते पड़ोसी के घर पर उनसे मुलाकात की तो रामलाल बहुत अधिक कमजोर और अस्वस्थ दिख रहीं थीं। पास में स्थित उनका अपना घर भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका था। इससे भी बदतर बात यह है कि सालाना बायोमेट्रिक सत्यापन न करवा पाने के कारण उनकी पेंशन भी बंद हो गई है।

जून से ही मेहना रामलाल भोजन के लिए अपने पड़ोसियों की दया पर निर्भर हैं। फोटो: शगुन / सी.एस.ई.

ई-केवाईसी प्रक्रिया की चुनौतियों से निपटने में लोगों की मदद करने वाले संगठन मजदूर किसान शक्ति संगठन के शंकर सिंह ने बताया कि तब से वे असहाय स्थिति में हैं। शुरुआत में एक व्यक्ति ने उन्हें अपने पास रखा और उनकी देखभाल की लेकिन उन्हें काम के लिए गांव छोड़ना पड़ा। उसके बाद से एक और परिवार ने उनकी मदद की है। जब सिंह को रामलाल की स्थिति के बारे में पता चला तो उन्होंने राजसमंद जिला आपूर्ति अधिकारी (डीएसओ) को पत्र लिखा। कई बार बातचीत के बाद आखिरकार 26 नवंबर को उनका राशन सप्लाई शुरू हो गया।

डीएसओ ओम पालीवाल ने डीटीई को बताया कि राशन डीलर को निर्देश दिया गया है कि वे हर महीने रामलाल का राशन सीधे उनके घर पहुंचाएं। पालीवाल ने बताया कि कल आईरिस स्कैन का उपयोग करके उसका केवाईसी पूरा किया गया है।। डीएसओ ने कहा कि अक्सर डीलरों को इस विकल्प के बारे में पता नहीं होता है। हमने सभी एफपीएस डीलरों को प्रशिक्षित किया है और लाभार्थियों को कठिनाइयों का सामना न करना पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से इस प्रक्रिया की निगरानी कर रहे हैं। हालांकि कई लोग जिनकी समस्याएं कभी सामने नहीं आती हैं, वे रामलाल की तरह भाग्यशाली नहीं हो सकते हैं, जब तक कि ऐसे मामलों में कोई निश्चित समाधान नहीं मिल जाता।

राजस्थान के राजसमंद जिले के भीम तहसील के बिछूदरा गांव में 85 वर्षीय नीम सिंह और उनकी 75 वर्षीय पत्नी हंजा बाई को अपने राशन कार्ड पर भी अब खतरा मंडरा है। क्योंकि उनके निकटतम एफपीएस पर बायोमेट्रिक डिवाइस ई-केवाईसी के लिए नीम के फिंगरप्रिंट का मिलान नहीं हो पाया।

हालांकि उन्हें 10 किलो गेहूं (प्रत्येक को 5 किलो) मिल रहा है, लेकिन डीलर ने उन्हें चेतावनी दी है कि सभी घरेलू सदस्यों को उनका हक मिलना जारी रखने के लिए अब ई-केवाईसी सत्यापन बहुत अधिक जरूरी है। इस संबंध में शंकर सिंह ने कहा कि जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर उन्हें खाद्य सुरक्षा के बारे में चिंता करने की जरूरत है। अगर सरकार बायोमेट्रिक सत्यापन पर जोर देती है तो वरिष्ठ नागरिकों और ऐसे अन्य लोगों के लिए वैकल्पिक तंत्र होना चाहिए जिनके बायोमेट्रिक्स पहचाने नहीं जा सकते।

लेकिन बायोमेट्रिक सत्यापन की चुनौतियां सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं हैं, यहां तक कि कठोर शारीरिक श्रम करने वाले युवा लोगों को भी इसी तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।

एक महिला उचित मूल्य की दुकान पर ई-पीओएस पर आपके फिंगरप्रिंट की पुष्टि कर रही है। फोटो: शगुन

कर्नाटक के बेलगाम जिले के 32 वर्षीय निर्माण कार्यों में लगे मजदूर प्रेमानंद कोलकर के फिंगरप्रिंट कभी भी राशन डिपो के डिवाइस द्वारा पहचाने नहीं गए। उनके चार लोगों के परिवार (उनकी पत्नी और दो बच्चे) को पहले टीपीडीएस के तहत 20 किलो चावल (प्रति व्यक्ति 5 किलो) दो महीने पहले तक मिल रहा था, जो उनके मोबाइल फोन पर भेजे गए ओटीपी के जरिए मिल रहा था।

हालांकि, सितंबर 2024 से जब से ईकेवाईसी अनिवार्य हुआ तब से केवल उनकी पत्नी और बच्चे ही बायोमेट्रिक प्रक्रिया को पूरा कर पाए हैं। प्रेमानंद के फिंगरप्रिंट फिर से अस्वीकार कर दिए गए तो परिवार का राशन आवंटन घटकर अब केवल 15 किलो रह गया जिसमें उनका हिस्सा शामिल नहीं था। ध्यान देने क बात है कि 12,000 रुपए प्रति माह कमाने वाले परिवार के लिए 20 किलो चावल उनकी खाद्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण सहारा था।

जारी...