खान-पान

आहार संस्कृति: कितना फायदेमंद है नीम का फूल और कैसे बनाएं नीम पचीड़ी

नीम के फूलों को छाया में सुखाकर साल भर खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है

Vibha Varshney

उत्तर भारत में शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां नीम का इस्तेमाल न किया गया हो, लेकिन आमतौर पर खाने में नीम का प्रयोग नहीं किया जाता। यह मुख्य रूप से चिकित्सीय उद्देश्य के लिए कच्ची पत्तियां चबाने या दातून से दांत साफ करने तक ही सीमित है। कभी-कभार त्वचा संबंधी रोगों के इलाज के लिए इसके तेल का इस्तेमाल भी किया जाता है। नीम के फूलों को खाया भी जा सकता है, यह मुझे पहली बार तब पता चला जब तमिलनाडु की एक अध्यापिका ने नीम के फूलों के गुच्छों से खेलते हुए देख कुछ फूलों की मांग की। तब मैंने इसके बारे में ज्यादा छानबीन की जरूरत महसूस नहीं की। बाद में जब कॉलेज में मैंने नीम के पेड़ के बारे में पढ़ा, तब वहां इसके सुगंधित फूलों का कोई जिक्र नहीं हुआ। कॉलेज में मैंने सिर्फ नीम (आजादीरेक्टा इंडिका) की बायोपायरेसी और इसके कीटनाशक गुणों के बारे में ही पढ़ा था। आजादीरेक्टा नीम के पेड़ का लैटिन नाम है जो आजाद और दरख्त शब्दों को मिलाकर बना है। ऐसे में इस “स्वतंत्र पेड़” के पेटेंट के लिए होने झगड़े विड़ंबनापूर्ण हैं।

यद्यपि भारत में 2,000 वर्ष से अधिक समय से नीम के पेड़ के विभिन्न हिस्सों का इस्तेमाल कीटनाशक और औषधि के रूप होता रहा है, तथापि वर्ष 1994 में अमेरिका के कृषि विभाग और बहुराष्ट्रीय कीटनाशक कंपनी डब्ल्यू आर ग्रेस एंड ने नीम के बीज को फंगसरोधी पदार्थ के रूप में इस्तेमाल करने का पेटेंट आवेदन दायर किया और इसे हासिल भी कर लिया। स्वाभाविक रूप से, दुनियाभर के पर्यावरणीय समूहों और अनुसंधानकर्ताओं ने इसका विरोध किया और वर्ष 2000 में यूरोपीय पेटेंट कार्यालय ने पेटेंट वापस ले लिया। उस समय नीम के पेड़ के विभिन्न हिस्सों का इस्तेमाल करने के संबंध में दुनियाभर के पेटेंट कार्यालयों में 90 आवेदन लंबित थे। यह पेड़ मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। परंपरागत रूप से इसके सभी हिस्सों का इस्तेमाल किया जाता है।

उदाहरण के लिए, इसके बीज के तेल का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन बनाने में, बीज का गूदा खाद के रूप में, नर्म टहनियां दांत साफ करने में, जड़ों का बुखार में, पत्तों का फेस पैक में और इसके गोंद को मोम में मिलाकर फटी एड़ियों को ठीक करने में इस्तेमाल किया जाता है। इसका मुख्य प्रयोग कृषि क्षेत्र में किया जाता है जहां अनाज के भंडार में इसे कीड़ों को मारने, भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने और कीटनाशक के रूप में किया जाता है। नीम युक्त यूरिया का रोजमर्रा की खेती में इस्तेमाल किया जाता है। वर्ष 1942 में सलीमुज्जमन सिद्धीकी ने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद में नीम के तेल से एंटीहेलमिंटिक, फंगसरोधी, बैक्टीरिया रोधी और एंटी वायरल घटकों- निमबिन, निमबिनिन और निमबिडिन को निकाला। तब से नीम से कई अन्य रसायन निकाले जा चुके हैं फिर भी इसके कच्चे तत्व सर्वाधिक उपयोगी साबित हुए हैं।



धार्मिक महत्व

यह पेड़ कई धार्मिक समारोह का हिस्सा है। ओडिशा में अप्रैल में मनाई जाने वाली महाविशुभा सक्रांति पर सभी को बेल और तुलसी के साथ-साथ नीम की पत्तियां भी चबानी होती हैं ताकि व्यक्ति पूरे वर्ष स्वस्थ रहे। इस पेड़ को देवी दुर्गा के स्वरूप तुल्य पूजनीय माना जाता है। बंगाल में नीम को देवी शीतला का पर्याय मानते हैं जिनमें बीमारी देने व उसका निवारण करने की शक्ति है। आमतौर पर इस पेड़ को सार्वजनिक स्थानों पर लगाया जाता है ताकि नीम से होकर गुजरने वाली हवा मनुष्यों और जीव-जंतुओं को संक्रमण से दूर रखे। इन सबके अलावा पत्तियों और फूलों का सबसे आश्चर्यजनक इस्तेमाल खाने में होता है। नीम की पत्तियों और फूलों को घी में तला जाता है, इसमें काली मिर्च, जीरा और चीनी मिलाई जाती है तथा हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्च और अप्रैल के बीच आने वाले मराठियों के नववर्ष गुड़ी पड़वा के दिन भगवान को इसका भोग लगाया जाता है।

यह पूजा के बाद बांटे जाने वाले प्रसाद का हिस्सा होता है। दक्षिण भारतीय नववर्ष के दौरान पचीड़ी बनाई जाती है जो नीम के पत्तों की कड़वाहट, इमली की खटास और गुड़ की मिठास का मिश्रण होती है। परंपरागत हिंदू वर्ष के पहले दिन परोसी जाने वाली पचीड़ी को आगे आने वाले वर्ष की पूर्व सूचना कहा जाता है जो खट्टे, मीठे या कड़वे अनुभव से भरपूर हो सकता है। यद्यपि अधिकांश व्यंजन मार्च और अप्रैल में मिलने वाली ताजी पत्तियों पर आधारित होते हैं, तथापि फूलों को छाया में सुखाकर सालभर प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि मैं यह नहीं कह सकती कि नवंबर और दिसंबर में बनने वाले खाने में औषधीय प्रभाव होगा कि नहीं, फिर भी दिवाली के बाद अक्टूबर में शुरू होने वाले त्योहारों में इसके फूलों से बनने वाले रसम (रस) का स्वाद अद्भुत होता है। नीम के फूल से बनी रसम से शरीर में ठंडक रहती है, बुखार नहीं आता और पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

नीम के मुलायम सफेद फूल कड़वे नहीं होते और उन्हंे ताजा तोड़कर, तल कर या पाउडर बनाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। इन्हें कई व्यंजनों में इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे सुगंधित चावल, पचीड़ी, रसम और दाल। अक्सर इन्हें भून कर खाने के ऊपर बुरक दिया जाता है। छाया में सुखाए गए नीम के फूलों के पाउडर में अनसैचुरेटेड फैटी एसिड जैसे लीनोलेनिक, लीनोलीक और ऑलिक प्रचुर मात्रा में होता है। इनमें प्रोटीन भी भरपूर होता है। खाने में इसके इस्तेमाल के औषधीय लाभ भी होते हैं। नीम के फूलों से भूख न लगने, उबकाई आने, डकार आने और पेट में कीड़े होने जैसी बीमारियां दूर हो सकती हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, नीम की पत्तियां आंखों के लिए गुणकारी हैं और ये त्वचा संबंधी बीमारियों तथा सिरदर्द के इलाज में भी लाभदायक हैं। इनके शीतल प्रभाव के कारण इनका इस्तेमाल गंध चिकित्सा (अरोमाथैरेपी) में भी किया जाता है। हालांकि नीम की पत्तियां कड़वी होती हैं, फिर भी पूर्वी और दक्षिण भारत में यह खानपान का अहम हिस्सा है। नीम बैंगन में नीम की तली हुई पत्तियां मिलाई जाती हैं। इससे उत्तर प्रदेश की मेरी रसोई में बना साधारण सा बैंगन का भर्ता एक नया और स्वादिष्ट रूप ले लेता है। बैंगन की मिठास को नीम की पत्तियों की कड़वाहट ज्यादा स्वादिष्ट कर देती हैं। नीम के गुणकारी होने के बाद बावजूद उत्तर भारत में भोजन के रूप में इसका इस्तेमाल कम हो रहा है। इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला, यहां के खाने में मुगलों का अधिक प्रभाव रहा जिसके कारण लोग जैव विविधता से पूर्ण खाने को भूल गए और दूसरा, गंगा के किनारे होने के कारण यहां की मिट्टी बहुत उपजाऊ है और कृषि के लिए उपयुक्त है। इस कारण जैव विविधता वाले भोजन को छोड़कर खेतों से प्राप्त भोजन का ज्यादा इस्तेमाल होता है।

नीम पचीड़ी

सामग्री
- नीम के सूखे फूल – एक बड़ा चम्मच
- सरसों के बीज– एक चम्मच
- लाल मिर्च  - 1
- वनस्पति तेल - 2 बड़े चम्मच
- इमली का रस– स्वादानुसार
- गुड़- स्वादानुसार

विधि: कढ़ाई में तेल गर्म करें। इसमें सरसों के बीज, लाल मिर्च और नीम के फूल डालें। इसमें इमली का गाढ़ा रस और गुड़ का चूरा डालें तथा दो मिनट पकाएं। लो तैयार हो गई नीम पचीड़ी।

पुस्तक

नीम: इंडियाज मिरैकुलस हीलिंग प्लांट
लेखक: एलन नोर्टन  
प्रकाशक: सिमोन एंड सस्टर   
पृष्ठ: 96 | मूल्य: R199
यह पुस्तक नीम के औषधीय गुणों को विस्तार से बताती है। पारंपरिक और आधुनिक शोधों के बीच संबंध को रेखांकित करने के साथ ही दुनियाभर में नीम के पेड़ के विभिन्न हिस्सों के उपयोग के बारे में भी बताती है। किताब में नीम का इस्तेमाल बीमारियों से निपटने में किस तरह से किया जाता है, यह भी बताया गया है। किताब बताती है कि नीम किस तरह से मरुस्थलीकरण के प्रभाव को पलटने में सहायक है तथा यह कैसे जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान के नकारात्मक प्रभाव को कम कर सकता है। पुस्तक में नीम से बनने वाले व्यंजनों की विधियों को भी शामिल किया गया है।