खान-पान

आहार संस्कृति: पूस महीने में बगिया जरूर खाते हैं मिथिलावासी

ठंड के महीने में नये चावल, नये गुड़ और तीसी के साथ बना यह आहार शरीर को गर्म रखता है और पौष्टिकता से भरपूर होता है

Pushya Mitra

इन दिनों पूस का महीना चल रहा है और मिथिला के क्षेत्र में हर घर में लोग नये चावल, तीसी और नये गुड़ से बने पौष्टिक और स्वादिष्ट व्यंजन बगिया का लुत्फ उठा रहे हैं। वे इसे खाते ही नहीं हैं, बल्कि छोटे बच्चों के गाल की भी इससे सिकाई करते हैं, ताकि ठंड के दिनों में बच्चों के गाल फटे नहीं। यह एक तरह से कोल्ड क्रीम का भी काम करता है।

ऐसे बनता है बगिया

बगिया मुख्यतः नये चावल, तीसी और नये गुड़ से बनता है। नये चावल को पीस कर उसे गरम पानी से गूंथ लिया जाता है, फिर उसमें चित्र में बताये आकार के मुताबिक नये गुड़ और तीसी के पाउडर को मिला कर भर दिया जाता है। जरूरत के हिसाब से इसमें नारियल, मूंगफली आदि डाला जा सकता है। बगिया चावल की तरह ही उबले हुए पानी में पकाया जाता है। जब पानी उबलने लगता है तो इसमें बगिया को डाल दिया जाता है। पहले वह बर्तन के निचले हिस्से में चला जाता है, जब वह सिद्ध हो जाता है तो ऊपर आकर तैरने लगता है। फिर उसे बाहर निकाल कर ठंडे पानी में डाल दिया जाता है। फिर तुरंत बाहर निकाल लिया जाता है।

बगिया कई प्रकार के होते हैं

पारंपरिक तीसी और गुड़ के बगिया के अलावा दाल और आलू मटर भी उसमें भरा जाता है, ताकि नमकीन बगिया का लुत्फ लिया जा सके। दूध में भी बगिया पकाया जाता है। दूध में पके बगिया को दूध से बाहर नहीं निकाला जाता है। अमूमन ग्रामीण इलाकों में चना और खेसारी के साग के साथ बगिया खाया जाता है।

पौष्टिक और गुणों से भरपूर होता है

हिंदी और मैथिली की प्रसिद्ध लेखिका पद्मश्री उषा किरण खान कहती हैं कि ठंड के महीने में नये चावल, नये गुड़ और तीसी के साथ बना यह आहार शरीर को गर्म रखता है और पौष्टिकता से भरपूर होता है। वह कहती हैं कि इसके अलावा इस बगिया से नये बच्चे का पुसौठ भी किया जाता है। पुसौठ यानी गर्म बगिया की चिकनाई को बच्चे के गाल पर मलना। इससे ठंड के दिनों में उनका गाल नहीं फटता. नये बच्चे का पुसौठ करना मिथिला में एक रस्म बन चुका है।

भक्खा भी मशहूर है मिथिला का

भक्खा इडली और बगिया के बीच की भोजन साम्रगी है। यह इडली की तरह स्पंजी होता है और उसके अंदर गुड़ डाला जाता है। ग्रामीण इलाकों में गरीब महिलाएं इसे बनाकर बेचती हैं। खास तौर पर खरीफ की खलिहानी के मौसम में खेतिहर मजदूरों के बीच यह काफी लोकप्रिय होता है।