यह दिन लड़कियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और समग्र कल्याण के अधिकारों की वकालत करता है, एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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खाद्य शिक्षा पाठ्यक्रम में हो शामिल, देशों से पोषण की निगरानी बढ़ाने की सिफारिश : यूनेस्को

93 देशों में से भी केवल 65 फीसदी देशों में स्कूल कैफेटेरिया, फूड शॉप और वेंडिंग मशीन में बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों पर नियंत्रण किया

Vivek Mishra

स्कूली भोजन आज दुनियाभर में एक बड़ी जरूरत और मांग है। हालांकि, दुनिया के कई हिस्सों में स्कूली भोजन उपलब्ध तो हो रहा है लेकिन उसके पोषण मूल्य पर पर्याप्त ध्यान या निगरानी नहीं की जा रही। इसकी वजह से न सिर्फ बच्चों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का शिकार होना पड़ रहा है बल्कि उनके समग्र विकास में भी रुकावट आ रही है। फिलहाल यूनेस्को ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए यह सिफारिश की है कि न सिर्फ स्कूली भोजन में ताजे और स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बल्कि स्कूली पाठ्यक्रम में खाद्य शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए।

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अजूले ने कहा है, "पिछले कुछ वर्षों में किए गए निवेशों के कारण दुनिया भर के लगभगआधे प्राथमिक विद्यालय के छात्र अब स्कूली भोजन प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन अब हमें यह देखना होगा कि उनकी थाली में क्या है। संतुलित आहार और स्वस्थ खाने की आदतें बच्चों को लंबी उम्र तक स्वस्थ रखने में सहायक होंगी। यह स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।"

वर्ष 2024 में विश्वभर के लगभग एक चौथाई छात्र स्कूली भोजन से लाभान्वित हुए, जबकि प्राथमिक स्तर पर यह आंकड़ा 47 फीसदी तक पहुंचा। यूनेस्को के 2023 के एक अध्ययन के अनुसार यह पहल न केवल बच्चों में कुपोषण को कम करने में मदद करती है बल्कि सीखने की प्रक्रिया को भी समर्थन देती है। स्कूली भोजन के कारण नामांकन दर में 9 फीसदी और उपस्थिति दर में 8 फीसदी की वृद्धि देखी गई, साथ ही छात्रों के सीखने के परिणामों में भी सुधार हुआ है।

फ्रांस द्वारा 27 और 28 मार्च 2025 को आयोजित न्यूट्रिशन फॉर ग्रोथ कार्यक्रम के मौके पर यूनेस्को ने ‘एजुकेशन एंड न्यूट्रिशन: लर्न टू ईट वेल’ नामक एक रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट रिसर्च कंसोर्टियम फॉर स्कूल हेल्थ एंड न्यूट्रीशन के सहयोग से तैयार की गई है।

निगरानी न होना एक बड़ी चिंता

यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में वैश्विक स्तर पर लगभग 27 फीसदी स्कूली भोजन पोषण विशेषज्ञों की सलाह के बिना तैयार किए गए थे। वहीं, 187 देशों में से केवल 93 देशों में स्कूली भोजन को लेकर किसी तरह के कानून, मानक या दिशानिर्देश थे। जबकि इन 93 देशों में से भी केवल 65 फीसदी देशों में स्कूल कैफेटेरिया, फूड शॉप और वेंडिंग मशीन में बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों पर नियंत्रण था। यह दर्शाता है कि कई देशों में अभी भी पोषण गुणवत्ता पर समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

यूनेस्को का कहना है कि विद्यालयों में परोसे जाने वाले भोजन की सामग्री पर मानकों की कमी और इसकी निगरानी न होना एक गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए, विशेष रूप से जब 1990 के बाद से अधिकांश देशों में स्कूली बच्चों में मोटापे की दर दोगुनी हो गई है और विश्वभर में खाद्य असुरक्षा लगातार बढ़ रही है।

सितंबर 2024 से यूनेस्को के खाद्य शिक्षा हेतु यूनेस्को के गुडविल एंबेस्डर शेफ डेनियल हुम ने कहा कि 'विद्यालय वह स्थान होना चाहिए जहां स्वस्थ आदतों को विकसित किया जाए, न कि उन्हें कमजोर किया जाए। स्थानीय रूप से उत्पादित ताजे स्कूली भोजन का सेवन, जिसे जागरूक पोषण विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया हो, बच्चे की शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। यह एक व्यावहारिक पाठ है, जो बच्चों के भोजन के प्रति दृष्टिकोण को आकार देगा और उन्हें भविष्य में अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए सही खाद्य चयन करने के लिए सशक्त बनाएगा।'

यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट में भारत समेत कई देशों की सकारात्मक पहलों का भी उल्लेख किया है। मसलन ब्राजील में राष्ट्रीय स्कूल भोजन कार्यक्रम में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया गया है।इसके अलावा चीन में ग्रामीण स्कूलों में सब्जियों, दूध और अंडे शामिल करने से बच्चों का पोषण स्तर बढ़ा और उपस्थिति दर में सुधार हुआ है। वहीं, नाइजीरिया में 2014 में शुरू किए गए होम-ग्रो स्कूल फीडिंग प्रोग्राम के तहत सभी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में मुफ्त संतुलित भोजन उपलब्ध कराया गया, जिससे नामांकन दर 20 फीसदी तक बढ़ा। और भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्कूली भोजन में आयरन से भरपूर फोर्टिफाइड ऑर्गेनिक बाजरा शामिल करने से किशोरों की एकाग्रता और स्मरण शक्ति में सुधार देखा गया।

यूनेस्को ने सभी देशों से आग्रह किया है कि वे स्कूली भोजन में ताजे और स्थानीय उत्पादों का अधिकाधिक उपयोग करें और चीनी व अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की मात्रा को सीमित करें। पोषणयुक्त भोजन प्रदान किया जा सके।