पान के पत्तों और मसालों से तैयार पान रसम फोटो: विकास चौधरी / सीएसई
खान-पान

आहार संस्कृति: पान की शान

जैसे-जैसे अमीरों के बीच पान की लोकप्रियता एक फैशन स्टेटमेंट की तरह बढ़ रही है, उसका चिकित्सीय गुण लोग भूलने लगे हैं। अब उसे याद करने का समय आ गया है

Vibha Varshney

एक समय था जब दिल के आकार वाले पान के पत्ते हमारे रोजमर्रा के भोजन में शामिल थे। लोग इसका बीड़ा पनवाड़ी से लेते थे और बहुत से लोग पत्ते घर लाकर भी रखते थे और सुपारी, चूने, लौंग, इलायची, सौंफ, केसर, नारियल और गुलकंद के साथ बड़े चाव से खाते थे। पाचन तंत्र को बेहतर बनाए रखने और सांसों में ताजगी लाने के लिए लोग अक्सर भोजन के बाद इसका सेवन करते थे।

पान का सेवन हमारी जीवनशैली का हिस्सा था और इसे तहजीब से खाना एक कला मानी जाती थी। असभ्य और फूहड़ लोगों के लिए इसी को देखते हुए “बंदर को दिया पान, लगा रोटी सा चबान” कहावत ने जन्म लिया।

पान भारत में कई स्वास्थ्य परंपराओं का हिस्सा रहा है क्योंकि इसमें दर्द निवारक और ठंडक देने वाले गुण होते हैं। उत्तर प्रदेश में नई मां को स्वास्थ्य लाभ के लिए लगभग 15 दिनों तक एक पत्ता घी में भूनकरऔर बादाम पर लपेटकर खिलाया जाता था। वह नहाने के पानी में भी पान का अर्क मिलाती थी। खांसी और सांस लेने में तकलीफ से राहत पाने के लिए सरसों के तेल में भिगोए गए गर्म पत्ते को छाती पर लगाया जाता है। कब्ज से राहत पाने के लिए गर्म पत्तों को पेट पर भी लगाया जाता है। चरक और सुश्रुत संहिता में इस पत्ते का उल्लेख मिलता है, जहां इसे पाचन ठीक रखने, खांसी दूर करने और मुंह को सुगंधित बनाने के लिए मसालों के साथ लेने की सलाह दी गई थी।

हालांकि ये स्वास्थ्य लाभ अब भुला दिए गए हैं। समकालीन भारत में पान को ज्यादातर लाल थूक से पटी दीवारों से जोड़ा जाता है जो तम्बाकू चबाने वालों की देन हैं। ये लोग अपने नशीले पदार्थ को लपेटने और स्वाद के लिए पान का उपयोग करते हैं। परंपरागत रूप से पान के पत्ते को चबाया और निगला जाता था, लेकिन जब इसे तम्बाकू के साथ इस्तेमाल किया जाता है, तो लार को थूकना पड़ता है। पान के उपयोग में यह बदलाव शायद 16वीं शताब्दी के आसपास शुरू हुआ होगा, जब पुर्तगाली हमलावर देश में तंबाकू लेकर आए।

नए-नए स्वाद और खाने के प्रयोग की चाहत रखने वाले युवा पान के पत्ते को चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी और मिर्च के साथ भी मिलाते हैं। ऐसे भी उदाहरण हैं, जहां पान को निगलने से पहले आग लगाई जाती है और आगे के इस शोले को मुंह में रख दिया जाता है। पान के स्वाद को आइसक्रीम, पारंपरिक मिठाइयों जैसे पेठा और बर्फी में भी शामिल किया गया है।

गुणकारी पत्ते

इसकी पत्तियों के वैसे तो कई स्वास्थ्य लाभ हैं लेकिन सबसे प्रासंगिक इनका रोगाणुरोधी गुण है। 2010 से 2020 तक प्रकाशित लेखों की समीक्षा से पता चला है कि पान के पत्तों का अर्क, एसेंसियल ऑयल और आइसोलेट्स सूक्ष्मजीवों के विकास को रोक सकते हैं। साथ ही एस्चेरिसिया कोलाई व स्यूडोमोनास एरुगिनोसा सहित विभिन्न ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया और स्टैफिलोकोकस ऑरियस और कैंडिडा एल्बिकेंस जैसे ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया के साथ-साथ रोग पैदा करने वाले कवक को मार सकते हैं। यह समीक्षा अप्रैल 2021 में जर्नल मॉलिक्यूल्स में प्रकाशित हुई थी।

इंडोनेशिया के शोधकर्ताओं ने यह भी संकेत दिया कि पौधे का उपयोग नए एंटीबायोटिक्स तैयार करने में किया जा सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि एंटीबायोटिक्स (स्ट्रेप्टोमाइसिन, क्लोरैम्फेनिकॉल और जेंटामाइसिन) के साथ पान के पत्तों के अर्क और एसेंसियल ऑयल का उपयोग करने से उनके जीवाणुरोधी गुण बढ़ जाते हैं।

पान (पाइपर बीटल) एक सदाबहार बेल है जो दक्षिण पूर्व एशिया में पाई जाती है, लेकिन भारत इसका उद्गम केंद्र नहीं है। इसका पेपर (काली मिर्च) परिवार से ताल्लुक है। इस पौधे के फूल और बीज देखना दुर्लभ है क्योंकि खेती में इस्तेमाल ज्यादातर बेलें नर होती हैं। इन बेलों के पत्ते तेजी से बढ़ते हैं जिससे पत्तों का उत्पादन अच्छा होता है।

“बीटल” शब्द का पहली बार इस्तेमाल पुर्तगालियों ने 16वीं शताब्दी में किया था, जो संभवतः मलय शब्द “वेटिला” पर आधारित है जिसका अर्थ होता है पत्ती । दुनियाभर में बीटल की 90 से अधिक किस्में पाई जाती हैं जिनमें से 45 भारत में हैं।

अब तक चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री ने पान की चार किस्मों को मान्यता दी है। इनमें बिहार का मघई पान, उत्तर प्रदेश के महोबा जिले और मध्य प्रदेश के छतरपुर में उगने वाला देसावरी पान, तमिलनाडु का औथूर पान और वाराणसी का बनारसी पान शामिल है। इस पौधे को कन्नड़ में ताम्बूला, मलयालम में वेट्टिला, मणिपुरी में क्वा, मराठी में नागवेला और तमिल में वेट्टिलाई कहा जाता है।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के अनुसार, प्रमुख पान उगाने वाले देश श्रीलंका, भारत, थाईलैंड और बांग्लादेश हैं। पत्ती के आकार, करारेपन और स्वाद के आधार पर पान की बेल को कसीली और गैर-कसीली किस्मों में वर्गीकृत किया जाता है। भारत में यह पौधा 10 राज्यों में उगाया जाता है और इसकी दो दर्जन से अधिक किस्में लोकप्रिय हैं। देश ने 2022-23 में दुनिया को 3,440.08 मीट्रिक टन पान के पत्तों का निर्यात किया है, जिसकी कीमत 49.68 करोड़ रुपए या 6.21 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।

हाल के वर्षों में पान की खेती धीरे-धीरे मुश्किल होती जा रही है और किसान दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। इस कारण हम इस गुणकारी पौधे से वंचित हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन और इसके कारण होने वाला अप्रत्याशित मौसम इसके लिए जिम्मेदार है।

महोबा में पिछले कुछ सालों से अत्यधिक ठंड और पाले के कारण फसल नष्ट हो रही है। अकेले महोबा जिले में ही पान का रकबा पिछले 20 वर्षों में 90 प्रतिशत से अधिक कम हो गया है।

व्यंजन : पान रसम

सामग्री

  • पान के पत्ते : 2

  • टमाटर : 1

  • अरहर दाल : 1 चम्मच

  • सौंफ : आधा चम्मच

  • धनिया साबूत : आधा चम्मच

  • जीरा : आधा चम्मच

  • इमली का रस : 1 बड़ा चम्मच

  • काली मिर्च : आधा चम्मच

  • लाल मिर्च साबूत : 1

  • सरसों : आधा चम्मच

  • घी : 1 चम्मच

  • गुड़ : 1 चम्मच

  • नमक : स्वादानुसार

विधि: सौंफ, धनिया, काली मिर्च और जीरे को भूनकर मोटा पीस लें। अब दाल को उबालें और उसमें पान का पत्ता व टमाटर डाल दें। मसाले, दाल, पान, टमाटर का मिश्रण, इमली का रस, नमक और गुड़ मिक्सी में चला दें। अब एक पैन में मिश्रण को उबालें। एक चम्मच में घी, सरसों, करी पत्ता और मिर्च का तड़का बनाकर रसम में मिला लें और इसका स्वाद लें।

कहां मिलेगा

इस किताब में लेखक ने दलित समुदाय के भोजन के इतिहास को दर्ज किया है। यह किताब तेल, घी, दूध से मुक्त उस भोजन के बारे में है जो सवर्णों के शब्दकोष में नहीं है।