खाद्यान्न संकट से जूझ रहे देश के लोगों को रियायती दरों पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए 1960 के दशक में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की शुरुआत हुई, जिसे 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) में बदल दिया गया। कोविड काल में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त राशन दिया जाने लगा। इस योजना को जनवरी 2023 से एनएफएसए में एकीकृत कर दिया गया है, लेकिन क्या देश के जरूरतमंदों को खाद्य सुरक्षा कानून का फायदा मिल रहा है? यही जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने दिसंबर के पहले पखवाड़े में देश के कुछ इलाकों में जाकर हकीकत जाननी चाही। इस कड़ी में अब तक आप झारखंड के दो इलाकों का हाल जान चुके हैं। इन्हें पढ़ने के लिए क्लिक करें। ग्राउंड रिपोर्ट, सरकारी राशन का सच: सात साल से कर रहे हैं राशन का इंतजार । ग्राउंड रिपोर्ट, सरकारी राशन का सच: बेस्वाद चावल से पेट भर रहे हैं आदिवासी । पढ़ें, अगली कड़ी-
झारखंड के पलामू जिले से निकल कर चतरा जिले की ओर बढ़ते हुए एक गांव पड़ता है, सतवहिनी। यह गांव सिद्की ग्राम पंचायत के अंदर आता है। गांव में अपने बच्चों के साथ खेल रहे उमेश कुमार दिवाली के मौके पर हरियाणा के सिरसा से लौटे हैं। वह सिरसा में सब्जी की रेहड़ी लगाते हैं। वहां अकेले रहते हैं। वह वापस सिरसा जाने की तैयारी कर रहे हैं।
वह बताते हैं कि यह सिलसिला कई साल से चल रहा है। गांव में इतना काम नहीं है कि अपने परिवार का पेट पाल सकें, इसलिए बच्चों से दूर कमाने जाते हैं। अगर कमाने नही जाएंगे तो यहां बच्चे भूखे मर जाएंगे। खेती के लिए इतनी जमीन नहीं है कि पूरे परिवार का पेट भर जाए।
अजय कहते हैं कि उनके पिता के नाम से राशन कार्ड है, जिसमें उनका नाम तो है, लेकिन उनकी पत्नी और बच्चों के नाम से अलग राशन कार्ड नहीं बन पाया। राशन कार्ड होता तो कम से कम बच्चों को इतनी चिंता नहीं रहती कि वे खाएंगे क्या? हर महीने अपनी बचत का एक हिस्सा गांव भेजना पड़ता है।
अजय की तरह सुधीर कुमार, संतोष कुमार और मिथिलेश कुमार के नाम से भी राशन कार्ड नहीं बना है। ये तीनों भाई हैं और शादीशुदा हैं। वे पांच भाई हैं। पिता बब्बू यादव के राशन कार्ड में पांचों भाई का नाम था, लेकिन दो भाइयों की जब शादी हुई तो उन्होंने अलग कार्ड बना दिया, परंतु तीन भाइयों की शादी के बाद उनका कार्ड नहीं बना। सुधीर कुमार की पत्नी और तीन बच्चे हैं। संतोष कुमार की पत्नी और दो बच्चे हैं और मिथिलेश कुमार की शादी कुछ समय पहले ही हुई है।
सुधीर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि जब वे लोग आवेदन करते हैं तो उन्हें बताया जाता है कि कोटा फुल होने के कारण कार्ड नहीं बन रहे हैं। इन तीनों भाइयों का हरा कार्ड भी नहीं बन रहा है।
प्रताप पुर में प्रज्ञा केंद्र (कॉमन सर्विस सेंटर) चलाने वाले अखिलेश कुमार कहते हैं कि उनके यहां रोजाना दर्जनों लोग राशन कार्ड के लिए ऑनलाइन आवेदन करने आते हैं। इनमें से कुछ लोगों के पुराने राशन कार्ड रद्द हो चुके हैं तो कई लोग नया राशन कार्ड बनाना चाहते हैं। लेकिन अधिकारियों का कहना है कि कोटा न होने के कारण राशन कार्ड नहीं बन सकता। हालांकि कुछ लोगों को झारखंड सरकार द्वारा जारी किए जाने वाला हरा राशन कार्ड मिल जाता है, लेकिन ज्यादातर लोगों को यह कार्ड भी जारी नहीं हो पाता।
आखिर कोटा है क्या?
दरअसल, जब 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) लागू हुआ था तो निर्णय लिया गया था कि देश के ग्रामीण क्षेत्र में रह रही 75 फीसदी आबादी और शहरों में रह रही 50 प्रतिशत आबादी को सब्सिडी वाले खाद्यान्न हासिल करने का अधिकार होगा। यानी कि इस अधिनियम के तहत लगभग दो-तिहाई आबादी (लगभग 67 प्रतिशत) के कवरेज की गारंटी दी गई। 2011 में कुल आबादी 121 करोड़ थी, इस तरह 81.3 करोड़ लोगों को कवर करने का कोटा निर्धारित किया गया था।
हालांकि केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए राज्यवार अलग-अलग कोटा निर्धारित किया था। झारखंड के लिए 2 करोड़ 64 लाख 25 हजार लोगों को एनएफएसए के तहत कवर किया जाना था। केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 2 करोड़ 64 लाख 12 हजार (99.95 प्रतिशत) कार्ड बन चुके हैं।
दिलचस्प बात यह है कि 2011 की आबादी के आधार पर यह कोटा सुनिश्चित किया गया है, जबकि उसके बाद आबादी में वृद्धि हो चुकी है, लेकिन कोटे को नहीं बढ़ाया गया है।
एक अनुमान है कि झारखंड में लगभग 20 लाख लोग एनएफएसए के दायरे से बाहर हैं। भोजन का अधिकार आंदोलन से जुड़े सिराज दत्ता ने डाउन टू अर्थ को बताया कि एनएफएसए से बाहर इन लोगों को राशन प्रणाली से जोड़ने के लिए झारखंड सरकार ने राज्य स्तर पर हरे राशन कार्ड देने का निर्णय लिया था। बड़ी संख्या में लोगों को हरे राशन कार्ड दिए भी गए हैं, लेकिन तीन-चार महीने से जिन लोगों के पास हरे राशन कार्ड थे, उन्हें राशन नहीं मिल रहा है।
स्थानीय मीडिया में प्रकाशित खबरों के मुताबिक हाल ही में विधानसभा में यह भी मुद्दा उठा था, तब झारखंड सरकार की ओर से जवाब दिया गया था कि भारतीय खाद्य निगम के साथ विवाद के चलते राशन की आपूर्ति बाधित है। इसे जल्द सुलझा दिया जाएगा।
नहीं मिल रहा आयुष्मान कार्ड का लाभ
जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं, उन्हें केंद्र सरकार के आयुष्मान स्वास्थ्य कार्ड भी नहीं मिल पा रहा है।
बोकरो जिले के बोकारो स्टील सिटी के वार्ड एक में रहने वाले अशोक कुमार दास के छह वर्षीय बेटे शुभम कुमार दास को कैंसर है, लेकिन राशन कार्ड न होने के कारण आयुष्मान कार्ड का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
आवेदन के बाद भी नया राशन कार्ड जारी न होने की शिकायत झारखंड राज्य खाद्य आयोग के पास पहुंची तो आयोग के सदस्य सचिव संजय कुमार ने खाद्य सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामलों के सचिव को पत्र लिख कर नया राशन कार्ड जारी करने की सिफारिश की है।
पलामू के युवा कार्यकर्ता सतीश कुमार शर्मा बताते हैं कि उनके पास कई ऐसे मामले आए, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, इसलिए उन्हें इलाज भी नहीं मिल पा रहा है।
वह बताते हैं कि हुसैनाबाद प्रखंड के बैराव गांव की संगीता देवी के बेटे प्रिंस का ऑपरेशन होना है, लेकिन राशन कार्ड में नाम न होने के कारण उन्हें इलाज नहीं मिल पा रहा है।
सतीश बताते हैं कि परिवार के पास आयुष्मान कार्ड है, लेकिन आइडी (पहचान) के तौर पर बच्चे का नाम राशन कार्ड में होना चाहिए, क्योंकि परिवार के लोग भूमिहीन हैं और उनके पास कोई अन्य पहचान पत्र नहीं है, इसलिए संगीता के बेटे का ऑपरेशन नहीं हो रहा है। राशन कार्ड में आवेदन किए हुए लगभग दो साल हो चुके हैं।
इसी तरह बोकारो जिले के बैरमो ब्लॉक के बोकारो थर्मल में रहने वाले सुरेंधर सोनी के नाम से राशन कार्ड नहीं होने के कारण उनका आयुष्मान कार्ड भी नहीं बन पा रहा है। सुरेंधर मुंह के कैंसर से पीड़ित हैं। उन्होंने भी राशन कार्ड के लिए आवेदन किया हुआ है, लेकिन अब तक राशन कार्ड नहीं बना है।
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