भले ही दुनिया भर में हम विकास का दम्भ भरते रहें पर सच यह है कि अभी भी दुनिया में स्वस्थ आहार 310 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है। आंकड़ों की मानें तो 2019 की तुलना में इस आंकड़ें में 11.2 करोड़ का इजाफा हुआ है। यह जानकारी विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ में सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार स्थिति यह है कि 2021 में करीब 82.8 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार थे। यह आंकड़ा कितना विशाल है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह भारत की करीब 59 फीसदी आबादी के बराबर है। वहीं इस दौरान 230 करोड़ लोग वो थे जिन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हुई थी। जिसका मतलब है कि दुनिया की 29.3 फीसदी आबादी के पास अभी भी पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है और वो इसके लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। गौरतलब है कि इस आंकड़े में भी महामारी के बाद से 35 करोड़ का इजाफा हुआ है।
देखा जाए तो यह कहीं न कहीं बढ़ती महंगाई, महामारी और यूक्रेन, सीरिया जैसे देशों में होता संघर्ष का नतीजा है। देखा जाए तो 2019-20 में महामारी से उपजे आर्थिक संकट से दुनिया अभी तक नहीं उबर पाई है। वहीं दूसरी तरफ जलवायु में आता बदलाव इस समस्या को कहीं ज्यादा गंभीर बना रहा है।
आंकड़े बताते हैं कि 2015 के बाद से दुनिया में भुखमरी का शिकार लोगों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है, बल्कि समय के साथ यह आंकड़ा और समस्या समस्याएं कहीं ज्यादा गंभीर होती जा रही हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार जहां 2019 में विश्व की 8 फीसदी आबादी भुखमरी का शिकार थी, वो 2020 में बढ़कर 9.3 फीसदी जबकि 2021 में 0.5 फीसदी की वृद्धि के साथ 9.8 फीसदी तक पहुंच गई है।
56 फीसदी बच्चों को नहीं नसीब होता अपनी मां का दूध
यदि महिलाओं और बच्चों की बात करें तो इस मामले में उनकी स्थिति कहीं ज्यादा खराब है। पता चला है कि जहां 2021 में करीब 32 फीसदी महिलाएं गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षा से जूझ रही थी वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा 27.6 फीसदी था। मतलब कि उनके बीच 4 फीसदी का अंतर था।
बच्चों की बात करें तो दुनिया में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 4.5 करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार थे। कुपोषण एक ऐसी घातक स्थिति है जिससे बच्चों में मृत्यु का जोखिम 12 गुना तक बढ़ जाता है।
वहीं इसी आयु वर्ग के 14.9 करोड़ बच्चों के आहार में पोषक तत्वों की इतनी कमी है कि जिसकी वजह से उनका विकास पूरी तरह नहीं हो पाया है। बढ़ता मोटापा भी एक तेजी से उभरती हुई समस्या है। पता चला है कि 2021 में इस आयु वर्ग के 3.9 करोड़ बच्चों का वजन सामान्य से कहीं ज्यादा था।
पिछले कुछ वर्षों में कुपोषण से निपटने के लिए स्तनपान पर जोर दिया जा रहा है, उसके बावजूद अभी भी दुनिया भर में 56 फीसदी बच्चों को छह माह की आयु तक उनकी मां का दूध नहीं मिल पा रहा है। चिंता की बात है कि अभी भी तीन में से शिशुओं को अपनी मां का दूध नहीं मिल रहा है जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत जरुरी है।
रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में वैश्विक स्तर पर व्याप्त असमानता भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। आंकड़ों के मुताबिक जहां अफ्रीका की 20 फीसदी (27.8 करोड़) से ज्यादा आबादी कुपोषण का शिकार है वहीं उत्तरी अमेरिका और यूरोप में यह आंकड़ा ढाई फीसदी से भी कम है।
वहीं दक्षिण अमेरिका और कैरिबियन देशों को देखें तो वहां की 8.6 फीसदी (5.7 करोड़) आबादी कुपोषण की मार झेल रही है, जबकि ओशिनिया में 5.8 फीसदी (25 लाख) और एशिया की करीब 9.1 फीसदी (42.5 करोड़) आबादी कुपोषण से ग्रस्त है।
भारत में भी कोई खास अच्छी नहीं है स्थिति
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भी स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है वहां की 16.3 फीसदी आबादी भुखमरी का शिकार है। इतना ही नहीं भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 17.3 के बच्चे बहुत ज्यादा पतले हैं। वहीं इसी आयु वर्ग के 30.9 फीसदी बच्चों की ऊंचाई अन्य की तुलना में कम है। इसके साथ करीब 3.9 फीसदी बच्चे मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं।
स्थिति यह है कि देश में 15 से 49 वर्ष की आयु की 53 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2012 में पांच माह की आयु के 46.4 फीसदी शिशुओं को मां का दूध मिलता था अब 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 58 फीसदी पर पहुंच गया है। हालांकि अभी भी देश में 42 फीसदी शिशु ऐसे हैं जिन्हें यह पोषण नहीं मिल पा रहा है।
भले ही 2030 के एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के तहत इस दशक के अंत भुखमरी, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन आंकड़ों को देखकर लगता नहीं है कि यह लक्ष्य हासिल हो पाएगा।
रिपोर्ट के मुताबिक भी आर्थिक सुधारों के बावजूद 2030 में दुनिया भर के 67 करोड़ लोग भुखमरी की समस्या से ग्रस्त होंगे, जोकि वैश्विक आबादी का करीब 8 फीसदी है। अनुमान है कि भविष्य में जहां दुनिया के अन्य देशों में स्थिति में सुधार आएगा वहीं अफ्रीका में स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है। ऐसे में यह जरुरी है कि इस समस्या पर गंभीरता से लिया जाए।