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आवरण कथा: अनाज से गायब हुए पोषक तत्व, अब शरीर को पहुंचा रहे हैं नुकसान

पहली बार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों ने इन आधुनिक किस्मों के गेहूं और चावल के पोषण मूल्य को जांचा है

Shagun

जैसा आप खाते हैं, वैसे ही आप बनते हैं, या यूं कहें, जो उगाते हैं, वही खाते हैं। कल्पना कीजिए, पूरी आबादी ऐसी चीज खा रही हो जिसमें कम पोषण हो, जिसमें विटामिन और वे जरूरी तत्व नहीं हों जो विकास, बीमारियों से बचाने और स्वस्थ रहने के लिए जरूरी हैं। केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन काम करने वाले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के मृदा वैज्ञानिक सोवन देबनाथ के शब्दों में कहें तो, यही हमारा भविष्य है जिसकी तरफ हम बढ़ रहे हैं।

नवंबर 2023 में, देबनाथ के साथ-साथ आईसीएआर, पश्चिम बंगाल के बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय और तेलंगाना के राष्ट्रीय पोषण संस्थान के 11 दूसरे वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण शोध प्रकाशित किया। इसमें बताया गया कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्य सुरक्षा हासिल करने में तो मदद की, लेकिन पोषण सुरक्षा कमजोर कर दी।

यह पहला शोध है, जो बताता है कि ज्यादा उपज देने वाली फसलें बनाने के लिए किए गए प्रयासों ने चावल और गेहूं के पोषण मूल्यों को कम कर दिया है। ये दोनों भारत के मुख्य अनाज हैं। पौधों के आनुवंशिकी बनावट में इतना बदलाव किया गया है कि अब वे मिट्टी से अनाज तक पोषण पहुंचाने का अपना मुख्य काम नहीं कर पाते हैं।

2018 से 2020 के बीच, वैज्ञानिकों ने 1967 में हरित क्रांति के बाद के दशकों में जारी की गई “उत्कृष्ट” ऊंची पैदावार वाली चावल और गेहूं की किस्मों को उगाया। किस्में ऐसे पौधे हैं जिन्हें खास तरह से विकसित किया जाता है। चावल के लिए 16 और गेहूं के लिए 18 किस्मों को चुना गया।

देबनाथ कहते हैं, “1960 के दशक से लेकर अब तक चावल और गेहूं की लगभग 1,500 किस्में जारी की गई हैं। इनमें से उत्कृष्ट किस्मों को देश के विभिन्न संस्थानों के ब्रीडरों के साथ चर्चा के बाद चुना गया। ये किस्में लोकप्रिय थीं और इसलिए पूरे देश में एक या दो दशक तक बड़े पैमाने पर उगाई गईं। चावल के लिए हमने 2000 के दशक और गेहूं के लिए 2010 के दशक तक ही अध्ययन किया क्योंकि उसके बाद के दशक में ऐसी कोई किस्म नहीं मिली जिसे उत्कृष्ट कहा जा सके।”

इन किस्मों के बीज को जीन बैंकों से लिया गया था। फसल के अनाजों के पोषण स्तर के मूल्यांकन से पता चला कि चावल और गेहूं, जो भारत में लोगों की दैनिक ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत से अधिक पूरा करते हैं, पिछले 50 वर्षों में अपना 45 प्रतिशत तक पोषण मूल्य खो चुके हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसी रफ्तार से 2040 तक ये अनाज मानव उपभोग के लिए पर्याप्त पोषण देने में असमर्थ हो जाएंगे।

और ज्यादा चिंता की बात ये है कि पोषण कम होने के साथ-साथ अनाज में जहरीले तत्वों की मात्रा भी बढ़ गई है। पिछले 50 सालों में चावल में जिंक और आयरन जैसे जरूरी तत्वों की मात्रा 33 प्रतिशत और 27 प्रतिशत कम हो गई है, जबकि गेहूं में ये क्रमशः 30 प्रतिशत और 19 प्रतिशत घटी है। इसके उलट, चावल में जहरीले तत्व आर्सेनिक की मात्रा 1,493 प्रतिशत बढ़ गई है। दूसरे शब्दों में, हमारा मुख्य भोजन न सिर्फ कम पौष्टिक हुआ है, बल्कि सेहत के लिए हानिकारक भी हो रहा है।

वैज्ञानिकों ने चावल और गेहूं के पोषण मूल्यों में इस “ऐतिहासिक बदलाव” का स्वास्थ्य पर पड़े असर का भी आकलन किया है। वे चेताते हैं कि कम पोषण वाले अनाज देश में गैर-संक्रामक बीमारियों (एनसीडी) के बढ़ते बोझ और भी बदतर कर सकते हैं।

यह तो सब जानते हैं कि फॉस्फोरस, कैल्शियम, वैनेडियम और सिलिकॉन हड्डियों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाते हैं। जिंक इम्यूनिटी, प्रजनन और मस्तिष्क के विकास के लिए जरूरी होता है। आयरन खून बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।

साइंस जर्नल नेचर में प्रकाशित वैज्ञानिकों की रिपोर्ट कहती है कि इन जरूरी तत्वों की कमी से हड्डी, जोड़ों, मांसपेशियों के साथ-साथ तंत्रिका तंत्र और प्रजनन संबंधी बीमारियां बढ़ सकती हैं। यही नहीं, आर्सेनिक और क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व फेफड़ों के कैंसर, दमा, हृदय रोग और हड्डियों की कमजोरी का कारण बन सकते हैं।

वैज्ञानिक ये भी बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में पौष्टिकता से भरपूर ज्वार और बाजरा जैसे मोटे अनाजों का सेवन कम हो गया है। इन सब वजहों से भारत की आबादी पोषण असुरक्षा यानी पौष्टिकता की कमी का ज्यादा खतरा झेल रही है।

इस अध्ययन के नतीजे भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की एक रिपोर्ट से मेल खाते हैं, जिसमें बताया गया है कि 1990 से 2016 के बीच भारत में गैर-संक्रामक बीमारियों में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

अनुमानों के मुताबिक, दुनिया के उन 2 अरब लोगों में से एक तिहाई भारत में रहते हैं, जो सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से ग्रस्त हैं। हालांकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में 2015-16 और 2019-21 के बीच बच्चों के बौनेपन (सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का एक संकेतक) में गिरावट दिखाई गई है, लेकिन 5 साल से कम उम्र के बच्चों में यह दर अभी भी 35 प्रतिशत पर काफी अधिक है।

161 जिलों में, 5 साल से कम उम्र के 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे बौनेपन से ग्रस्त हैं। भारत में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी इतनी अधिक होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि मुख्य भोजन में पोषण कम होना इस समस्या का एक बड़ा कारण हो सकता है।

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