खान-पान

आवरण कथा: क्या हरित क्रांति ने भारत की पोषण सुरक्षा को कमजोर किया, कौन से खनिज की मात्रा हुई कम

Shagun

पहली बार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों ने इन आधुनिक किस्मों के गेहूं और चावल के पोषण मूल्य को जांचा है। इसके परिणाम बेहद चौंकाने वाले हैं। इस अध्ययन के आधार पर डाउन टू अर्थ, हिंदी पत्रिका की फरवरी 2024 अंक की आवरण कथा तैयार की गई। इसे किस्तवार यहां प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा: अनाज से गायब हुए पोषक तत्व, अब शरीर को पहुंचा रहे हैं नुकसान । आग पढ़ें अगली कड़ी -


हरित क्रांति ने खेती-बाड़ी के तरीके बदले, लेकिन इन तरीकों को लेकर आलोचना भी होती है कि उनका पर्यावरण और खाद्य व्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है। लेकिन ये चर्चा ज्यादातर जमीन बंजर होने, पानी दूषित होने, पानी के स्रोतों के खत्म होने और एक ही तरह की फसल लगाने तक ही सिमट कर रह जाती है।

अब पहली बार, साइंटिफिक रिपोर्ट्स का एक अध्ययन इस बात पर फोकस कर रहा है कि कैसे हरित क्रांति ने भारत की पोषण सुरक्षा को कमजोर किया है।

देबनाथ कहते हैं कि 2023 का अध्ययन 2021 के एक और अध्ययन का ही विस्तार है, जो उन्होंने बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुछ अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किया था। उस अध्ययन में ये जानने की कोशिश की गई थी कि अनाज आधारित खान-पान वाले लोगों में जिंक और आयरन की कमी क्यों होती है।

उन्होंने हरित क्रांति के बाद के दशकों में जारी की गई ऊंची पैदावार वाली चावल और गेहूं की किस्मों के साथ प्रयोग किए और पाया कि उनमें जिंक और आयरन की मात्रा कम होती जा रही है।

इस कमी के दो कारण हो सकते हैं। पहला, मिट्टी में पोषण की कमी और दूसरा, ऐसे अनाज जो पोषण को अच्छे से ग्रहण नहीं कर पाते। दुनियाभर के वैज्ञानिक मानते हैं कि आधुनिक अनाज में जिंक और आयरन कम पाए जाते हैं, लेकिन इस बात के पक्के सबूत नहीं हैं कि मिट्टी में पोषण की कमी इन अनाजों में पोषण कम कर देती है।

वह कहते हैं कि उनके अध्ययन में पाया गया कि जब कम ऊंचाई वाली ऊंची पैदावार वाली फसलें लाई गईं, तो अनाज में मिनरल की मात्रा कम हो गई। इस बात से पता चलता है कि नए किस्म के चावल और गेहूं मिट्टी में मौजूद जिंक और आयरन को अच्छे से ग्रहण नहीं कर पाते भले ही मिट्टी में ये तत्व प्रचुर मात्रा में मौजूद हों।



2021 के अध्ययन ने इशारा दिया था कि पिछले ब्रीडिंग प्रोग्राम के दौरान अनजाने में फसलों में पोषक तत्वों के संतुलित अवशोषण और वितरण के लिए प्राकृतिक रूप से मौजूद प्रणालियों को नुकसान पहुंचा होगा। इस नवीनतम अध्ययन का उद्देश्य इस समस्या की व्यापकता और अस्तित्व की पुष्टि करना था।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनाज में पोषक तत्वों की सांद्रता और मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के बीच कोई संबंध नहीं है, फसलों को पोषक तत्वों से भरपूर प्रयोगात्मक मिट्टी पर उगाया गया। वैज्ञानिकों ने विश्लेषण किया और पाया कि नई किस्मों में चार महत्वपूर्ण तत्वों - कैल्शियम, जिंक, आयरन, कॉपर की मात्रा परंपरागत किस्मों की तुलना में कम थी। उदाहरण के लिए, 1960 के दशक में जारी चावल की किस्मों में इन तत्वों की मात्रा क्रमशः 337 मिलीग्राम, 19.9 मिलीग्राम और 33.6 मिग्रा प्रति किलोग्राम थी।

2000 और 2010 के दशक में आई किस्मों में यह क्रमशः 186.3 मिग्रा (45 प्रतिशत कमी), 13.4 मिग्रा (33 प्रतिशत कमी) और 23.5 मिग्रा (30 प्रतिशत कमी) तक गिर गई। गेहूं के मामले में भी यही कहानी है। समय के साथ, केवल लिथियम और वैनेडियम को छोड़कर, चावल और गेहूं दोनों में अन्य सभी लाभदायक तत्वों, सिलिकॉन, निकल, सिल्वर और गैलियम की मात्रा नई किस्मों में कम हो गई है। इसका सीधा सा मतलब ये है कि पौधे मिट्टी से पोषक तत्व लेने की अपनी क्षमता खो चुके हैं।

बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के मृदा वैज्ञानिक और अध्ययन के सह-लेखक बिस्वपति मंडल बताते हैं कि जब देश ने अधिक पैदावार वाली फसलों को तैयार करना शुरू किया, तो इससे उन जीनों का चयन नहीं हुआ जो अनाज में पोषक तत्वों को बढ़ाते हैं। अधिक पैदावार पर इतना ध्यान देने से भोजन के पोषण मूल्य, खासकर उसमें मौजूद खनिज तत्वों की कुल मात्रा, जिसे आयोनोम कहा जाता है, की उपेक्षा हो गई।

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