28 अप्रैल से 9 मई तक स्विट्जरलैंड के जिनेवा में हुई बैठक में यूवी-328 नामक औद्योगिक रसायन के उपयोग को एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्रों में अनुमति दी गई (फोटो सौजन्य: आईआईएसडी) 
खान-पान

रासायनिक छूट: स्टॉकहोम कन्वेंशन की विश्वसनीयता पर उठे ये सवाल

स्टॉकहोम कन्वेंशन में देशों द्वारा प्रतिबंधित रसायनों पर छूट की लालसा चिंतित करती है और कन्वेंशन पर ही प्रश्न चिह्न लगाती है

Rohini Krishnamurthy

हर दो साल में भारत समेत करीब 200 देश स्टॉकहोम कन्वेंशन के कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप) में शिरकत करते हैं, जिसका उद्देश्य हानिकारक और दीर्घकालिक रसायनों को समाप्त या कम करना है। हालांकि हाल ही में 28 अप्रैल से 9 मई तक स्विट्जरलैंड के जिनेवा में हुई बैठक में पार्टियों ने यूवी-328 नामक औद्योगिक रसायन के उपयोग को एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्रों में अनुमति दे दी। वर्ष 2023 में पार्टियों ने इसे प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया था, हालांकि मोटर परिवहन, यंत्र उपकरण, औद्योगिक मशीनें, चिकित्सा और फोटोग्राफी जैसे पांच क्षेत्रों में सीमित उपयोग की अनुमति दी गई थी।

यूवी-328 का उत्पादन 1970 के दशक से हो रहा है। यह पेंट और प्लास्टिक में पराबैंगनी किरणों से बचाव के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, ताकि सतहें धूप में रंग उड़ने और क्षय से बच सकें। यह यकृत के लिए विषैला हो सकता है और हार्मोन को प्रभावित करता है। इसके एक और क्षेत्र में उपयोग की अनुमति देने से उस अहम संधि की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं, जो 2004 में प्रभाव में आई थी।

स्टॉकहोम कन्वेंशन एक वैश्विक संधि है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पर्सिसटेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स (पीओपी) से बचाने के लिए बनाई गई है। यूपी-328 जैसे पीओपी में चार प्रमुख गुण होते हैं। ये पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं, वैश्विक यात्रा से व्यापक रूप में फैलते हैं, वसा ऊतकों में जमा हो जाते हैं और विषैले होते हैं। यूवी-328 के इन गुणों का प्रमाण 2000 के दशक में मिला, जब यह रसायन पर्यावरण और जीवों में पाया गया, यहां तक कि आर्कटिक महासागर जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी जहां इसका उत्पादन या उपयोग नहीं होता। इन चिंताओं के बावजूद इसका उत्पादन बढ़ा और 2021 में इसे आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के मौजूदा रसायन डेटाबेस के अनुसार, उच्च उत्पादन वाली श्रेणी (>1000 टन/वर्ष) में शामिल किया गया। इन्हीं कारणों से 2020 में स्विट्जरलैंड ने यूवी-328 को कन्वेंशन के अनुच्छेद ए में शामिल करने का प्रस्ताव दिया।

इस कन्वेंशन में तीन अनुच्छेद ए,बी और सी शामिल हैं। अनुच्छेद ए में वे रसायन शामिल होते हैं जिन्हें समाप्त करना होता है। अनुच्छेद बी में वे रसायन आते हैं जिनके उत्पादन और उपयोग पर सीमित प्रतिबंध होता है। अनुच्छेद सी में वे रसायन शामिल होते हैं जिनके अनपेक्षित उत्पादन को कम करना होता है।

वॉशिंगटन स्थित गैर-लाभकारी संगठन सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायरमेंटल लॉ की एनवायरमेंट हेल्थ प्रोग्राम की वरिष्ठ वकील ग्यूलिया कार्लिनी डाउन टू अर्थ से कहती हैं, “पार्टियों ने प्रतिबंध को लागू करना शुरू किया और फिर एक देश (इथियोपिया) ने यूवी-328 के लिए नई छूटों का प्रस्ताव रखा। यह कन्वेंशन की विश्वसनीयता और लिए गए निर्णयों पर सवाल खड़ा करता है।” वह आगे कहती हैं कि यह निर्णय अभूतपूर्व है।

अन्य विशेषज्ञों की भी ऐसी ही चिंताएं हैं। इंटरनेशनल पॉल्यूटेंट्स एलिमिनेशन नेटवर्क (आईपीईएन) की वैज्ञानिक और तकनीकी सलाहकार थेरेस कार्लसन बताती हैं कि यह निर्णय देशों और उद्योगों के लिए सूचीबद्ध रसायनों को स्थायी रूप से प्रतिबंधित न मानने का संकेत दे सकता है।

वैज्ञानिक निगरानी की कमी

2025 के जिनेवा कॉप में तीन नए पीओपी को अनुच्छेद ए में जोड़ा गया। इनमें लॉन्ग-चेन परफ्लोरोकार्बोक्सिलिक एसिड्स (एलसी-पीएफसीए) क्लोरपाइरीफोस, उनके लवण और पूर्ववर्ती यौगिक और मीडियम-चेन क्लोरीनेटेड पैराफिंस (एमसीसीपी) शामिल हैं। यह एक अच्छा कदम प्रतीत होता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन रसायनों के उपयोग को लेकर दी गई छूटों पर पर्याप्त वैज्ञानिक समीक्षा नहीं की गई।

उदाहरण के लिए क्लोरपाइरीफोस ऐसा कीटनाशक है जो न्यूरो-विकास संबंधी समस्याओं से जुड़ा है। इसे 2025 में कुछ सीमित छूटों के साथ प्रतिबंधित किया जाना था, लेकिन भारत समेत कई देशों ने खाद्य सुरक्षा का हवाला देते हुए और छूटों की मांग की।

इसी तरह, एमसीसीपी को इस वर्ष प्रतिबंधित किया जाना था, लेकिन प्रतिबंध को तभी मंजूरी मिली जब मौजूदा छूटों की लंबी सूची को और बड़ा कर दिया गया। एमसीसीपी का उपयोग प्लास्टिक को लचीला और टिकाऊ बनाने के लिए किया जाता है, जैसे पीवीसी उत्पादों, पेंट, सीलेंट और रबर में। ये रसायन यकृत, गुर्दे और थायरॉयड ग्रंथि को प्रभावित कर सकते हैं। वहीं, एलसी-पीएफसीए “फॉरएवर केमिकल्स” कहे जाते हैं और कैंसर से जुड़े हैं। इसे अनुच्छेद ए में जोड़ा गया, लेकिन प्रतिबंध के प्रभाव को कम करने के लिए उसमें बदलाव किए गए।

हाल के वर्षों में अनुच्छेद ए में नए रसायनों को जोड़े जाने की संख्या घट गई है, जबकि छूटों और उनके लिए तय की गई समयसीमा में वृद्धि हुई है। आईपीईएन के 2023 के विश्लेषण के अनुसार, 2001 से 2011 तक 18 रसायनों या रसायनों के वर्गों को अनुच्छेद ए में जोड़ा गया था। लेकिन 2012 से 2022 के बीच केवल आठ ही जोड़े गए। विश्लेषण यह भी दिखाता है कि दूसरी अवधि में छूटें अधिक दी गईं।

एक और समस्या यह है कि स्टॉकहोम कन्वेंशन के अंतर्गत वैश्विक प्रतिबंध तभी लागू होता है, जब देश उसे स्वीकार करते हैं। 28 मार्च 2006 को भारत ने घोषणा की कि अनुच्छेद ए, बी या सी में किसी भी संशोधन को तभी लागू माना जाएगा जब वह उसका औपचारिक अनुमोदन, अंगीकरण या स्वीकृति देगा। भारत समेत लगभग 20 देशों ने ऐसी ही घोषणा की है। उदाहरण के लिए, भारत ने अब तक अनुच्छेद ए के तहत अधिकांश पीओपी को औपचारिक रूप से न तो अंगीकृत किया है, न ही स्वीकृत या स्वीकार किया है। केवल 2021 में भारत ने पहले सात रसायनों को समाप्त करने का कदम उठाया, जबकि उस समय तक अनुच्छेद ए में कुल 33 रसायन सूचीबद्ध थे।