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कई बीमारियों में लाभदायक है ऊंटनी का दूध

ऊंटनी दूध के घटक पौष्टिक दृष्टिकोण से उत्कृष्ट हैं, क्योंकि इसमें एंटी-बैक्टीरिया और एंटी-वायरल पदार्थों का उच्च अनुपात उपस्थित होता है।

Sandhya jha

ऊंट प्रजाति मरुस्थलीय व शुष्क क्षेत्रों में पाया जाने वाला बहुपयोगी पशुधन है। ऊंटनी का दूध केवल पोषण की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, भारत व अन्य देशों में इसका उपयोग कई बीमारियों में बहुत लाभप्रद पाया गया है।

पिछले दो दशकों में ऊंटनी के दूध के औषधीय मूल्यों के कारण दूध उपयोग में वृद्धि और दिलचस्पी बढ़ती देखी गई है। इसलिए ऊंटनी दूध के जैव-सक्रिय घटकों से संभावित स्वास्थ्य लाभों का अध्ययन करने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित हुआ है। ऊंटनी का दूध पीलिया, यकृत, पेट अलसर और बवासीर इत्यादि बीमारियों में उपयोगी बताया जाता है। दूध में इन्सुलिन/इन्सुलिन की भांति प्रोटीन पाई जाती है जो  मधुमेह रोगियों के लिए बहुत ही लाभदायक है। ऊंटनी दूध को विभिन्न प्रकार के क्षय रोगियों में भी उपयोगी पाया गया है। द कैमल पार्टनरशिप परियोजना के माध्यम से  उरमूल ट्रस्ट और सेंटर फॉर पास्त्रुलिजम कच्छ गुजरात ने ऊंटनी दूध को एक आय-स्रोत के रूप में लाने के लिए कदम उठाया है।

 ऊंटनी दूध की वैश्विक मांग में वृद्धि के कारण, दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका में उष्ट्र पालन के प्रति दिलचस्पी बढ़ रही है। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने ऊंटनी के दूध से कई प्रकार के उत्पाद तैयार किए हैं, जिनमें विभिन्न स्वादयुक्त कुल्फी, सुगन्धित दूध, किण्वित दूध, पनीर, बर्फी, गुलाब जामुन, चॉकलेट, चाय एवं कॉफी शामिल है। ऊंटनी दूध से निर्मित अमूल चॉकलेट भी स्थानीय बाजारों में उपलब्ध हैं। 

वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित कर दिया गया है कि ऊंटनी दूध के घटक पौष्टिक दृष्टिकोण से उत्कृष्ट हैं, क्योंकि इसमें एंटी-बैक्टीरिया और एंटी-वायरल पदार्थों का उच्च अनुपात उपस्थित होता है। मधुमेह से लेकर कैंसर तक के विभिन्न विकारों वाले मरीजों में ऊंटनी दूध से प्राप्त लैक्टोफेरिन, इम्यूनोग्लोबुलिन, लाइसोजाईम, विटामिन बी, विटामिन सी जैसे तत्वों का अध्ययन उनके औषधीय गुणों के लिए किया गया है। ऊंटनी के दूध में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ एवं विटामिन ‘ई’ की मात्रा क्रमशः 10.1-30. 0 माइक्रोग्राम प्रतिशत, 13.2-26.0 माइक्रोग्राम प्रतिशत व 19.9-45.5 माइक्रोग्राम प्रतिशत तक पाई जाती है। विटामिन ‘सी’ की मात्रा 4.84-5.26 मिलीग्राम प्रतिशत तक होती है। ऊंटनी के दूध में नियासिन एवं विटामिन-ई की मात्रा गाय के दूध से काफी अधिक पाई जाती है। विटामिन-ई एक एंटी-ऑक्सीडेंट है, जो हमारे शरीर की मूलभूत जरूरतों को पूरा करता है। त्वचा से जुड़ी अनेक बीमारियों के इलाज में भी विटामिन-ई काफी मददगार होता है। विटामिन-ई की मदद से त्वचा पर पड़ने वाली झुरियों से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है और इससे त्वचा की प्रतिरोधात्मक क्षमता मजबूत होती है। त्वचा कैंसर में भी विटामिन-ई फायदेमंद बताया गया है। ऊंटनी दूध अल्फा-हाइड्रोक्सी अम्ल का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है, जिसे त्वचा विकारों एवं त्वचा गुणवता के समग्र सुधार के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र ने ऊेटनी दूध से चेहरे पर लगाने के लिए क्रीम भी बनाई है।

ऊंटनी दूध में लोहा, जस्ता एवं तांबा की मात्रा 0.88-1. 12 मिलीग्राम प्रतिशत, 1.19-2.02 मिलीग्राम प्रतिशत व 0.40-0.48 मिलीग्राम प्रतिशत के लगभग पाई जाती है, जो गाय के दूध की तुलना में काफी अधिक है।

ऊंटनी का दूध गाय, भैंस, भेड़, आदि के दूध की तुलना में अधिक पौष्टिक है, क्योंकि इसमें वसा या लैक्टोज की मात्रा कम  होती है। वसा की मात्रा 1.95-2.99 प्रतिशत होती है एवं ऊंटनी के दूध में लघु श्रृंखला वसीय अम्ल (सी 4-सी 12) तुलनात्मक रूप से कम एवं असंतृप्त अम्ल (सी 14-सी 18) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। ऊंटनी दूध नियमित पीने से प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है, क्योंकि इसमें कई प्रकार के रक्षात्मक प्रोटीन लाइसोजाईम, लैक्टोफेरिन, लैक्टोपरऑक्सीडेज, इम्यूनोग्लोबुलिन जी, इम्यूनोग्लोबुलिनए एवं पैप्टीडोग्लाइकान पहचान प्रोटीन पाए जाते हैं। लाइसोजाईम, लैक्टोफेरिन, लैक्टोपरऑक्सीडेज एवं पैप्टीडोग्लाइकान पहचान प्रोटीन की मात्रा क्रमशः 0.65 मिलीग्राम प्रतिशत, 2.5 मिलीग्राम प्रति मिलीलीटर, 2.23 यूनिट प्रति मिलिलीटर एवं 10.7 मिलीग्राम प्रतिशत पाई गई है।

यह देखा गया है कि जिन लोगों को गाय दूध पीने से एलर्जी होती है, उनको ऊंटनी दूध से एलर्जी नहीं होती है क्योंकि ऊंटनी दूध में एलर्जी कारक प्रोटीन की मात्रा नगण्य होती है। अनुसन्धान से पता चला है कि ऊंटनी दूध में मस्तु प्रोटीन्स की मात्रा गाय दूध की तुलना में काफी अधिक होती है। दूध में मस्तु प्रोटीन्स की प्रचुरता कैंसर, मधुमेह एवं हृदय रोग अवरोधी मानी जाती है।

ऊंटनी दूध में मुख्य रूप से दो सक्रिय तत्व लैक्टोफेरिन और इम्यूनोग्लोबुलिन होते हैं। ऊंटनी दूध से प्राप्त लैक्टोफेरिन पर हुए अध्ययनों से पता चलता है कि इसमें एंटी-बैक्टीरिया, एंटी-फंगल, एंटी-वायरल,एंटी-इंफ्लैमेटरी, एंटी-ऑक्सीडेंट एवं एंटी-ट्यूमर इत्यादि गुण हैं। ऊंटनी दूध में इंसुलिन जैसी खास प्रकार की प्रोटीन पाई गयी है, जिस पर पेट में पाचन एंजाइमोंका असर कम होता है एवं मधुमेह रोगियों में उपयोगी पाई गई है।

ऊंटनी दूध में इम्यूनोग्लोबुलिन भी चिकित्सीय रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इम्यूनोग्लोबुलिन में केवल दो भारी श्रृंखलाएं उपस्थित होती हैं, एवं हल्की श्रृंखलाएं अनुपस्थित होती हैं, जिनका विभिन्न प्रकार के मरीजों के लिए प्रतिरक्षा चिकित्सा में उपयोग किया जा सकता है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि ऊंटनी दूध में अति महत्वपूर्ण जैव-सक्रिय घटकों की उपस्थिति होने के कारण इसका उपयोग करके स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तथापि इन तथ्यों की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए और अनुसन्धान अध्ययनों की अत्यन्त आवश्यकता है।