मून मिल्क दूध से बना एक गर्म पेय है जो रात को सोने से पहले लिया जाता है (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)
खान-पान

आहार संस्कृति: अश्वगंधा, पियो और जियो

तनावग्रस्त नसों को शांत करने के लिए अब नुस्खों का हिस्सा बनी आयुर्वेदिक औषधि अश्वगंधा

Vibha Varshney
  • अश्वगंधा एक प्राचीन आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है जिसकी जड़ें तनाव कम करने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और हार्मोन संतुलन में सहायक हैं।

  • भारत इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और वैश्विक बाजार तेजी से बढ़ रहा है।

  • नीमच मंडी में इसका व्यापार फल-फूल रहा है, जबकि आधुनिक शोध इसके पारंपरिक लाभों की पुष्टि कर रहे हैं।

इन दिनों बाजार में अश्वगंधा लोकप्रिय औषधीय पौधों में से एक है। इसकी लकड़ी जैसी क्रीम रंग की जड़ें आयुर्वेद में रसायन मानी जाती हैं यानी ऐसा पदार्थ जो बूढ़ा होने की प्रक्रिया को धीमा करता है। इसकी जड़ों में एडाप्टोजेनिक व इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण भी होते हैं, यानी यह तनाव को कम करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

वैसे इसकी जड़ों से आयुर्वेदिक औषधियां तो युगों से तैयार की जाती हैं। बहुत सी आयुर्वेदिक दवाइयां जैसे अश्वगंधादि चूर्ण, अश्वगंधा रसायन, अश्वगंधा घृत, अश्वगंधारिष्ट, अश्वगंधादि लेह और बला-अश्वगंधा-लक्षादी तेल में इसका इस्तेमाल होता है। खाने में इसकी मौजूदा लोकप्रियता मुख्यत: पेय पदार्थों में इसके इस्तेमाल से है, जैसे सुकून देने वाली चाय और मून मिल्क नामक मसालेदार पेय। मून मिल्क दूध से बना एक गर्म पेय है जो रात को सोने से पहले लिया जाता है। यह हार्मोन को संतुलित करता है, चिंता घटाता है, आराम बढ़ाता है और गहरी नींद में सहायक है। अश्वगंधा के अलावा इसमें हल्दी, दालचीनी, अदरक, जायफल, शहद, गुलाब की पंखुड़ियां, कैमोमाइल, लैवेंडर, शतावरी और ब्राह्मी जैसी जड़ी-बूटियां भी डाली जा सकती हैं। भारत में ही नहीं, विदेशों में भी यह बहुत लोकप्रिय है।

अश्वगंधा की इसी लोकप्रियता को समझने के लिए मध्य प्रदेश के नीमच औषधीय पौधा मंडी जाना काफी है। मंडी में एक बड़ा सा चबूतरा है जहां सिर्फ अश्वगंधा की जड़ों का कारोबार होता है। किसान सुबह-सुबह अपनी सूखी जड़ों के ढेर लेकर आते हैं और चबूतरे पर गुणवत्ता के अनुसार ढेर लगा देते हैं। मंडी में बड़ी मात्रा में आने के कारण कुछ किसानों को चबूतरे के नीचे भी जड़ों को रखना पड़ता है। भारी मात्रा के बावजूद व्यापारी इन्हें मिनटों में नीलामी से खरीद लेते हैं। कीमत गुणवत्ता और मांग पर निर्भर करती है। मोटी जड़ें महंगे और पतली जड़ें सस्ते दामों पर बिकती हैं। उदाहरण के लिए, 17 सितंबर 2025 को यह अधिकतम 34,000 रुपए प्रति क्विंटल बिकी। अश्वगंधा एक सूखा-रोधी खरपतवार है जो आसानी से उगता है। यह अच्छी कमाई का बढ़िया जरिया भी है।

आगर मालवा जिले के कालू राम पाटीदार पिछले 15 सालों से अपनी 2 बीघा जमीन पर अश्वगंधा उगा रहे हैं और बाकी 35 बीघा पर सब्जियां या कभी अनाज उगाते हैं। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के अधिकांश किसान यही करते हैं। वे नीमच मंडी में अपनी आठ क्विंटल जड़ों को लगभग 30,000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचने की उम्मीद कर रहे थे। उन्होंने मोटी जड़ें दिखाईं, जिन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिहाज से सर्वोत्तम माना जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि उनके गांव में सभी लोग इनका सेवन कभी न कभी कर ही लेते हैं।

मंडी के व्यापारी इन्हें भारत और बाहर के देशों में बेचते हैं। अश्वगंधा का कारोबार बड़ा है। मार्केट रिसर्च कंपनीडेटा ब्रिज के अनुसार, 2024 में वैश्विक अश्वगंधा बाजार का मूल्य 59.75 मिलियन अमेरिकी डॉलर था और 2032 तक इसके 143.87 मिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। यह 11.61 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। इसकी वजह मानसिक स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन के प्रति बढ़ती जागरुकता है।

भारत वैश्विक बाजार में अश्वगंधा की जड़ों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। यही कारण है कि जब 2020 में डेनिश टेक्निकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने गर्भपात कराने वाले प्रभाव, थायरॉयड और इम्यून सिस्टम पर उत्तेजक असर, सेक्स हार्मोन पर प्रभाव और लीवर पर इसके खतरे बताए तो भारत सरकार ने तुरंत विशेषज्ञ समिति गठित की। इस टीम ने पाया कि डेनमार्क के अध्ययन में कई कमियां थीं। उसमें संदिग्ध जर्नलों के शोध और जड़ों की बजाय पत्तियों पर आधारित अध्ययन शामिल थे। समिति ने सुझाव दिया कि इस औषधि का उपयोग आयुर्वेद के अनुसार ही होना चाहिए। वैसे भी सदियों से आयुर्वेद में इसके प्रयोग में यह सुरक्षित पाई गई है, लेकिन हर औषधीय पौधे की तरह इसका अति-उपयोग स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। क्योंकि इसका स्वाद कड़वा है, इसलिए ज्यादा खाना मुश्किल भी है।

इस औषधीय पौधे को अंग्रेजी में इंडियन जिनसेंग या इंडियन विंटर चेरी और लैटिन में विथानिया सोम्नीफेरा कहा जाता है। इसकी गंध घोड़े जैसी होती है, इसी कारण इसका नाम हिंदी में अश्वगंधा पड़ा।

औषधीय गुण

अश्वगंधा की जड़ों का चूर्ण परंपरागत रूप से गठिया के दर्द, जोड़ों के सूजन, नसों की बीमारियों और मिर्गी के इलाज में किया जाता है। यह हार्मोन को भी नियंत्रित करता है और प्रायः अनियमित मासिक धर्म तथा रजोनिवृत्ति के दौरान महिलाओं को दिया जाता है। इसे शरीर की शुद्धि और अन्य बीमारियों में भी दिया जाता है, लेकिन यह पुरुषों की वीर्यवर्धक क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

अब आधुनिक शोध इन पारंपरिक उपयोगों की पुष्टि कर रहे हैं। अध्ययनों से पता चला है कि अश्वगंधा में तनाव-नाशक, सूजनरोधी, जीवाणुरोधी, कैंसररोधी, मधुमेहरोधी, मोटापा घटाने वाले, हृदय-संरक्षक और हाइपोलिपिडेमिक गुण हैं। यह अल्जाइमर, पार्किन्सन, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, अवसाद, बायपोलर डिसऑर्डर, अनिद्रा और चिंता विकार जैसी मानसिक व तंत्रिका संबंधी बीमारियों में भी लाभकारी है।

उदाहरण के लिए, पोलैंड के शोधकर्ताओं ने 2010-2023 के बीच प्रकाशित अध्ययनों की समीक्षा की और पाया कि यह जड़ी-बूटी अंतःस्रावी तंत्र के कार्य को बेहतर करती है, जैसे थायरॉयड की स्रावी क्षमता बढ़ाना, अधिवृक्क ग्रंथि की क्रियाशीलता सामान्य करना, कॉर्टिसोल का स्तर घटाना और पुरुषों में ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन व फॉलिकल-स्टिम्युलेटिंग हार्मोन का स्तर बढ़ाना। यह अध्ययन नवंबर 2023 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर साइंसेज में प्रकाशित हुआ। इसी तरह नवंबर 2022 में फाइटोथेरेपी रिसर्च में प्रकाशित एक समीक्षा अध्ययन में पाया गया कि अश्वगंधा सप्लीमेंट ने प्लेसिबो की तुलना में तनाव और चिंता को काफी हद तक घटाया।

यह पौधा विथानिया वंश और सोलेनेसी कुल से संबंधित है। यही कुल आलू और टमाटर का भी है। विथानिया वंश की लगभग 23 प्रजातियां हैं, जिनमें से विथानिया सोम्नीफेरा और विथानिया कोएगुलंस भारत में मिलती हैं और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। अब यह लघु वनोपज की तरह एकत्र करने के बजाय कृषि के माध्यम से उगाई जाती है, जिसमें स्थानीय बीज या उच्च-उपज वाली प्रजातियां इस्तेमाल की जाती हैं। सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ ने एनएमआईटीएलआई-118, एनएमआईटीएलआई-108, सीमैप-चेतक, पोस्ता, सीमैप-प्रताप, सिम-पुष्टि और रक्षक जैसी किस्में जारी की हैं। बाजार में जवाहर असगंध-20 और जवाहर असगंध-134 जैसी किस्में भी उपलब्ध हैं।

व्यंजन - मून मिल्क

सामग्री

  • फुल क्रीम दूध: 1 कप

  • अश्वगंधा पाउडर: 1/2 छोटा चम्मच

  • दालचीनी पाउडर: 1/2 छोटा चम्मच

  • अदरक पाउडर: 1/4 छोटा चम्मच

  • जायफल पाउडर: एक चुटकी

  • शहद: 1 बड़ा चम्मच

विधि: दूध को धीमी आंच पर गरम करें और उसमें अश्वगंधा, दालचीनी, अदरक और जायफल पाउडर डालकर फेंटें। इसे पांच मिनट तक हल्की आंच पर पकाएं। फिर शहद डालें और कप में डालकर पिएं।

अश्वगंधा चावल

सामग्री

  • चावल: 1 कप

  • अश्वगंधा पाउडर: 1 छोटा चम्मच

  • जीरा: 1/2 छोटा चम्मच

  • घी: 1 बड़ा चम्मच

  • नमक स्वादानुसार

विधि: चावल को नमक डालकर पका लें और अलग रख दें। एक पैन में घी, अश्वगंधा पाउडर और जीरा डालकर तड़का तैयार करें। इसमें पके हुए चावल डालकर अच्छे से मिला लें। दाल के साथ परोसें।

हुसैन की यह किताब भारतीय मसालों और उनके सही इस्तेमाल का खाका पेश करती है। किताब में लेखक यह जानने की कोशिश करता है कि कैसे एक व्यंजन कई मसालों के मिश्रण से तैयार किया जा सकता है, जो अलग-अलग स्वाद देते हैं। मसाला मिश्रणों के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए वह इनके इतिहास, पौराणिक कथाओं और सांस्कृतिक महत्व की व्यापक खोज करते हैं।