एक नए अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ है कि अगर सिंचाई साधनों का इस्तेमाल सही ढंग से किया जाए तो उप-सहारा अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और लगभग 80 करोड़ अतिरिक्त लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है।
यह अध्ययन पर्यावरण विज्ञान, नीति और प्रबंधन के प्रोफेसर पाओलो डी'ऑर्डिको और लोरेंजो रोजा ने किया है। जो अध्ययन साइंस एडवांसेस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
दुनिया में उपलब्ध कुल पानी का 90 फीसदी इस्तेमाल खेतीबाड़ी में होता है। प्रोफेसर पाओलो डी'ऑर्डिको और लोरेंजो रोजा ने एक व्यापक अध्ययन में वैश्विक कृषि भूमि पर पानी की कमी के बारे में पता लगाया है और विभिन्न भौगोलिक कारकों का आकलन किया है। साथ ही, इन आंकड़ों को उच्च रिज़ॉल्यूशन नक्शे के माध्यम से पेश किया है।
डी'ऑर्डिको और रोजा ने विश्लेषण कर प्राकृतिक और सामाजिक बाधाओं के बीच अंतर स्पष्ट किया है, जबकि कुछ कमी प्राकृतिक वातावरण में ताजे पानी की अपर्याप्त उपलब्धता से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि पानी की कमी को अक्षय जल संसाधनों अर्थात प्राकृतिक रूप से उपलब्ध जल संसाधनों से पूरा किया जा सकता है। लेकिन धन के अभाव और संस्थागत क्षमता की कमी के कारण पानी का उपयोग करने की लोगों की क्षमता सीमित हो जाती है।
डेटा इंटेंसिव कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करते हुए, डी'ऑर्डिको और रोजा ने वर्तमान में फसलों को दिए गए पानी की मात्रा के बारे में पता लगाया है। अध्ययनकर्ताओं ने इन फसलों को पर्याप्त पानी के साथ सामान्य परिस्थितियों में उपजाने के लिए आवश्यक पानी की मात्रा निर्धारित किया है। फिर हाइड्रोलॉजिकल मॉडल का उपयोग करते हुए पानी की उपलब्धता की तुलना मांग से की गई, ताकि दुनिया के पानी की कमी वाले उन क्षेत्रों का निर्धारण किया जा सके तथा वहां पानी उपलब्ध कराया जा सके।
अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि 14 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि पर सिंचाई करने के लिए स्थानीय तौर पर पानी उपलब्ध है। हालांकि, सामाजिक-आर्थिक कारणों से इस कृषि भूमि के लिए वर्तमान में सिंचाई का बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं है। अध्ययनकर्ता कहते हैं कि इस तरह के सिंचाई विस्तार से बदलते जलवायु में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।