खान-पान

100 करोड़ अतिरिक्त लोगों का भर सकता है पेट, पशु चारे में करना होगा बदलाव

अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डाले बिना यह बदलाव 13 फीसदी अतिरिक्त लोगों की खाद्य जरूरतों को पूरा कर सकते हैं

Lalit Maurya

आल्टो विश्वविद्यालय द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि पशुओं के चारे में किया बदलाव करीब 100 करोड़ अतिरिक्त लोगों का पेट भर सकता है। आज जब दुनिया में लाखों लोग कुपोषण, भुखमरी और आकाल जैसे खतरे का सामना करने को मजबूर हैं, ऐसे में मवेशियों और मछलियों के लिए चारे का उत्पादन प्राकृतिक संसाधनों को सीमित कर रहा है, जिनका उपयोग खाद्य उत्पादन के लिए किया जा सकता है।

अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यही समझने का प्रयास किया है कि कैसे वैश्विक स्तर पर मछली और पशुओं के चारे में किया समायोजन खाद्य उत्पादन के साथ-साथ चारे की समस्या को भी हल कर सकता है। शोध से पता चला है कि पशुओं के आहार में किए साधारण बदलाव वैश्विक खाद्य आपूर्ति में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं।

जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित इस अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में बिना किसी वृद्धि और आहार में बड़े बदलाव किए बिना भी यह परिवर्तन 13 फीसदी अतिरिक्त लोगों की खाद्य जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।

वर्तमान में करीब एक तिहाई अनाज पशु आहार के रुप में उपयोग किया जा रहा है। इसी तरह पकड़ी गई करीब एक चौथाई मछलियों को इंसानी आहार के रुप में उपयोग नहीं किया जाता है।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने अध्ययन में इस बात की जांच की है कि क्या फसल अवशेषों और खाद्य उप-उत्पादों का उपयोग पशुओं के चारे और मछलियों को खिलाने के लिए किया जा सकता है, जिससे मानव उपयोग के लायक खाद्य उत्पादों और संसाधनों को मुक्त किया जा सके।

यह पहला मौका है जब शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर आहार और चारे के उपयोग का व्यापक विश्लेषण किया है। साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी समझने का प्रयास किया है कि वैश्विक स्तर पर खाद्य उप-उत्पादों और अवशेषों का कितना हिस्सा पहले ही चारे के रुप में उपयोग किया जा रहा है और कितना अभी बाकी है जिसे उपयोग किया जा सकता है।

चारे की जगह आहार के रूप में उपयोग किया जा सकता है 26 फीसदी अनाज

इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार आहार और चारे में किए बदलावों से अनाज उत्पादन का करीब 10 से 26 फीसदी हिस्सा चारे की जगह मानव उपभोग के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसी तरह करीब 1.7 करोड़ टन मछलियां को पशु आहार की जगह मानव उपभोग के लिए उपयोग किया जा सकता है।

देखा जाए तो यह समुद्रों से होने वाली कुल खाद्य आपूर्ति का करीब 11 फीसदी हिस्सा है। इस तरह इसकी वजह से खाद्य आपूर्ति में 6 से 13 फीसदी के बीच इजाफा हो सकता है जबकि प्रोटीन उपलब्धता में भी इससे 9 से 15 फीसदी के बीच वृद्धि होगी। हालांकि देखने में यह आंकड़ा बहुत बड़ा न लगता हो लेकिन यह करीब 100 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए काफी है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता विल्मा सैंडस्ट्रॉम का कहना है कि जितना आहार बर्बाद और कचरे में फेंका जा रहा है उसके यदि आधे हिस्से को बचा लिया जाए तो वो खाद्य आपूर्ति में 12 फीसदी का इजाफा कर सकता है। इसके साथ यदि चारे के रुप में फसलों के उप-उत्पादों जैसे छिलके आदि का उपयोग किया जाए तो यह दोनों मिलकर खाद्य उपलब्धता में एक-चौथाई वृद्धि कर सकते हैं।

हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी स्वीकार किया है कि इनमें से कुछ बदलावों को अपनाना आसान नहीं है, जैसे फसल अवशेष पशुओं को खिलाने से उनकी उत्पादकता में गिरावट आ सकती है, लेकिन अपने इस विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने उसकी भी गणना की है।

एक और समस्या यह यही कि पशुओं और मछलियों के लिए उपयोग किया जा रहा आहार, इंसानों के भोजन से अलग होता है। उदाहरण के लिए चारे के रूप में मक्के की एक अलग किस्म का उपयोग किया जाता है और कुछ अनाज निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं। इसी तरह मछलियों को आहार के रूप में दी जाने वाली मछलियां छोटी और हड्डी वाली होती हैं, जो उपभोक्ताओं में लोकप्रिय नहीं हैं। 

ऐसे में शोधकर्ताओं के अनुसार यदि इन बाधाओं को दूर कर लें तो इनसे काफी फायदा हो सकता है। हालांकि इन लाभों को प्राप्त करने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं में कुछ समायोजन करने की आवश्यकता होगी।

उदाहरण के लिए, हमें खाद्य प्रणाली को पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी, जिससे उप-उत्पादों से जुड़े उत्पादक और उद्योग, पशुधन और जलीय कृषि से जुड़े उन उत्पादकों को ढूंढ सके, जिन्हें इनकी आवश्यकता है। इसी तरह कुछ उप-उत्पादों को चारे के रूप में उपयोग करने से पहले प्रोसेस करने की जरुरत होगी।

इस बारे में शोधकर्ता मैटी कुमु का कहना है कि, “मुझे नहीं लगता कि ऐसा करने में कोई बड़ी परेशानी होगी। हम जो सुझाव दे रहे हैं वो पहले ही एक निश्चित पैमाने पर कुछ क्षेत्रों में उपयोग किए जा रहे हैं। इसलिए इसमें कुछ ऐसा नहीं है जिसे शुरुआत से विकसित करने की जरूरत है। हमें बस वर्तमान प्रणाली को समायोजित करने और उन प्रथाओं के पैमाने को बढ़ाने की जरूरत है।“