“योंगचाक का व्यापार बेहद उम्दा है। इसके एक पेड़ से एक मौसम में करीब डेढ़ लाख रुपए की आमदनी हो सकती है। अगर एक परिवार के पास कुछ पेड़ हैं तो उसे कोई दूसरा काम करने की जरूरत नहीं है।” यह कहना है दिल्ली के लुकएक्टईस्ट किचन की संस्थापक जीना सोरोखाइबाम का। जीना का रेस्तरां मणिपुरी व्यंजन के लिए जाना जाता है। मणिपुर में योंगचाक (पारकिया रॉक्सबर्गी) की चार से पांच फलियां 100 रुपए में मिलती हैं और एक पेड़ एक मौसम में 15,000 फलियां तक देता है। अजीबोगरीब दुर्गंध के कारण इसे कड़वी फलियां, टेड़ी गुच्छेदार फलियां और बदबूदार फलियां भी कहा जाता है। योंगचाक अर्द्ध जंगली प्रजाति की फलियां हैं जो घर के आसपास उग आती है। अब तक इसकी संगठित खेती ने आकार नहीं लिया है। इसके फूल भी विभिन्न व्यंजनों का हिस्सा हैं लेकिन इसकी फलियां सबसे ज्यादा चर्चित और बड़े पैमाने पर खाई जाती हैं।
जीना बताती हैं कि योंगचाक की फलियां अक्टूबर से मार्च के बीच मिलती हैं। इस समय फलियां के अंदर बीज पनपते हैं और मुलायम फलियां सलाद या शिंग्जू के रूप में कच्ची खा सकने योग्य होती हैं। मार्च तक फलियां पूरी तरह विकसित हो जाती हैं और उनके अंदर बीज काले पड़ जाते हैं। इसके बाद फलियां को तोड़कर सुखा लिया जाता है और उन्हें पूरे साल खाया जाता है।
योंगचाक की फलियां देखने में गुलमोहर की फलियों जैसी लगती हैं। यह मणिपुर के अलावा सभी उत्तर पूर्वी राज्यों में मिलती है। देश के अन्य राज्यों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। हिंदी में इसे सपोटा, कन्नड़ में शिवलिंगड़ामारा, मराठी में उनकंपिंचिंग, और असमी में खरियल कहा जाता है। छीलकर योंगचाक की फलियां खाना बेहद थका देने वाला काम है। योंग खोट यानी खुरचनी की मदद से यह काम किया जाता है। इससे मोटा छिलका हटा दिया जाता है, जिसके बाद अंदर का मुलायम और हरा हिस्सा दिखने लगता है। यह सेम जैसी चौड़ी फली की तरह नजर आती है लेकिन इसका रंग सेम से हल्का होता है। योंग खोट न होने पर जीभ साफ करने वाली पत्ती या धातु की बोतल का ढक्कन इसे छीलने में उपयोग किया जाता है। योंगचाक का सख्त दिखने वाला हिस्सा चाकू की मदद से छीला जाता है। इसे दूसरी सब्जियों में िमलाकर पकाया जाता है। योंगचाक को आमतौर पर उबाला नहीं जाता क्योंकि ऐसा करने से वह अपना स्वाद खो देती है। इसके बजाय गर्म पानी में कुछ मिनटों के लिए इसका मुलायम हिस्सा डाल दिया जाता है।
पोषण से भरपूर
ये फलियां बेहद पोषक होती हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च द्वारा 2016 में प्रकाशित अध्ययन ट्री बीन पार्किया रॉक्सबर्गी: ए पोटेंशियल मल्टीपरपज ट्री लेग्यूम ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया में बताया गया है कि इसके पेड़ के फूल, फलियां और बीज प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल एवं विटामिन के उम्दा स्रोत हैं। यह एसकोर्बिक एसिड का भी अच्छा स्रोत है। यह भी कहा जाता है कि पेट के विकार और पेट दर्द ठीक करने में यह मददगार है। फरवरी 2018 में जर्नल जेनेटिक रिसोर्सेस एंड क्रॉप एवोल्यूशन में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि पार्किया टिमोरियाना प्रजाति की फलियां जो रॉक्सबर्गी से संबंधित हैं, उत्तर पूर्वी राज्यों एवं दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में स्वादिष्ट भोजन मानी जाती हैं। अध्ययन के मुताबिक, इसकी पोषक फलियां विभिन्न मिट्टी और ऊंचाई पर उगाई जा सकती है। अगर इस पर ध्यान दिया जाए तो यह प्रोटीन का वैकल्पिक स्रोत बन सकती है। पी टिमोरियाना में एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल, एंटीबायोटिक, एंटी प्रोलिफेरेटिव एवं कीटनाशक वाले गुण पाए जाते हैं। फलियों के छिलके ब्राउन डाई बनाने में प्रयोग की जाती है।
जीना बताती हैं कि मणिपुर के लोग योंगचाक फलियों को बेहद चाव से खाते हैं। सभी जातियों और समुदाय के लोगों के बीच इसकी गहरी पैठ है। पहले इंफाल में इसके बहुत पेड़ थे, लेकिन आज यह मुख्य रूप से पहाड़ियों में ही मिलती है। वह कहती हैं, “मणिपुर में दहेज की परंपरा नहीं है लेकिन अमीर परिवार अपनी बेटियों को शादी में योंगचाक उपहार स्वरूप देते हैं। पेड़ बड़ा होने के बाद बेटियों को आमदनी प्राप्त होती है। आमतौर पर पांच से छह साल में इसका पेड़ बड़ा हो जाता है।”
व्यंजन इरोंबासामग्री
विधि: योंगचाक की फलियों को हरा गूदा दिखाई देने तक छील लें। अब इसे काट लें और इसमें कटा हुआ आलू, फलियां, मिर्च पाउडर और नमक मिला लें। इसे प्रेशर कुकर में दो सीटी आने तक पकाएं। पकने के बाद इसे ठंडा होने दें। अब प्याज और हरी प्याज को फ्राई करें। अब इसे पकी हुई सब्जी में मिला दें। लो तैयार हो गया इरोंबा। इसमें फरमेंटेड मछली भी मिलाई जा सकती है। बस फरमेंटेड मछली को अलग बर्तन में पकाना होगा। |