संतोष कुमार दिल्ली के संगम विहार इलाके में रहते हैं और प्राइवेट बस में ड्राइवर हैं। वर्ष 1995 में जब वह रोजगार के लिए अपने गांव छोड़कर दिल्ली आये तो और इलाकों के मुकाबले सस्ता होने के कारण अपने परिवार के लिए उन्होंने संगम विहार में आशियाना बसा लिया। संगम विहार तंग दक्षिणी दिल्ली में बसा तंग गलियों वाला इलाका है, जहां घुसते ही जहां तहां फैला कचरा और पानी से भरी बदबूदार नालियां आपका स्वागत करती हैं।
पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे इस इलाके का जलस्तर इतना नीचे है कि हैंडपंप बेकार हो चुके हैं, पीने के लिए सिर्फ पानी के टैंकरों का ही सहारा है वो भी गर्मी के साथ साथ और महंगे होते जा रहे हैं। पानी की किल्लत, गंदगी, बीमारी से बेहाल संतोष कुमार इसी आस में दिन काट रहे हैं कि शायद चुनावों में बड़े-बड़े वादे करने वाले राजनैतिक दल और प्रशासन शायद उनकी भी एक दिन सुध लेगा, यह स्थिति सिर्फ एक संतोष कुमार की नहीं है, बल्कि इन गन्दी बस्तियों में रहने वाले करोड़ों लोगों की यही कहानी है, जिन्हें स्मार्ट बनते इस देश में जहां स्मार्ट सिटी बनाने के सपने दिखाए जा रहे हैं। मुफ्त वाईफाई बांटा जा रहा है, वहां उन्हें बिजली, पीने का पानी, स्वच्छता, अस्पताल, पार्क, ट्रांसपोर्ट जैसी बुनियादी सुविधाओं से क्यों वंचित रखा जा रहा है, उन्हें आज तक यह समझ नहीं आया है कि अपने ही देश में उनके साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों है?
भारत में जहां हर छठा शहरी नागरिक स्लम बस्तियों में रहने के लिए मजबूर है। जो की इंसानों के रहने के लायक तो कतई भी नहीं है । यहां रहने वाला हर भारतीय शहरी नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर है। आंकड़े दर्शाते हैं कि जहां आंध्र प्रदेश में हर तीसरा शहरी परिवार इन मलिन बस्तियों में रहता है, वहीं ओडिशा में हर 10 घरों में से नौ में या तो जल निकासी की कोई सुविधा नहीं है या तो वो वहां जल निकासी के लिए खुली और बजबजाती नालियां हैं ।