पर्यावरण

तीन साल बाद मौसम अपने सामान्य चक्र में लौटा

Varsha Singh

हिमालय की चोटियों को इस वर्ष सितंबर से ही बर्फ का लिहाफ ओढ़ने का सुख मिला। हिम शिखरों पर बर्फ किसी नेमत की तरह बरसी। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि कोई तीन बरस बाद मौसम अपने सामान्य चक्र में लौटा है। पश्चिमी विक्षोभ को इसके लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है। नवंबर में पूरा पहाड़ नरम-नरम ठंड का लुत्फ उठा रहा था, लेकिन दिसंबर में ठिठुरने पर मजबूर कर दिया। आमतौर पर माना जाता था कि पहाड़ों की रानी मसूरी में दिसंबर के आखिरी हफ्ते और जनवरी में बर्फबारी होती है। इस बार तो दिसंबर के दूसरे हफ्ते ने ही मसूरी, धनौल्टी, चकराता जैसे देहरादून के पहाड़ी हिस्सों पर भी बर्फ बरसा दी।

हिमाचल के लिए भी सर्दियों का ये मौसम कुछ राहत लेकर आया है। शिमला मौसम केंद्र के मुताबिक इस बार यहां किन्नौर, लाहौल-स्पीती, काजा, किलौंग, मनाली, रोहतांग में अच्छी बर्फबारी हुई है। यहां तक कि शिमला, कुल्लू और सोलन में बर्फ़ गिर गई। जबकि पिछले वर्ष इन क्षेत्रों में न के बारे में बर्फबारी हुई है। मानसून गुजरने के बाद 23 सितंबर को हिमाचल की ऊंची चोटियों पर अच्छी बर्फ़ गिरी। इसके बाद अक्टूबर, नवंबर में भी बर्फ गिरने से चोटियों पर अच्छी बर्फ जमा हो गई। हालांकि अक्टूबर की बर्फबारी ने सेब की फसल को नुकसान पहुंचाया। दिसंबर के पहले हफ्ते में भी यहां कई क्षेत्रों में बर्फ़ गिरी। शिमला मौसम केंद्र कहता है कि पिछले वर्ष दिसंबर तक हिमाचल में बर्फबारी नहीं हुई थी। जनवरी में बर्फ़ गिरने के कुछ इवेंट्स हुए, इसके बाद फिर लंबा अंतराल आ गया।

हालांकि अब मौसम विभाग एक बार फिर उसी लंबे अंतराल की आशंका जता रहा है। 12 से 14 दिसंबर तक की बर्फ़बारी के बाद से मौसम रुखा है। अब तक कहीं कोई बारिश नहीं हुई। अगले दस दिन तक आसमान में ऐसी कोई हरकत नहीं दिख रही, कोई पश्चिमी विक्षोभ नहीं बन रहा, जिससे बारिश या बर्फ़बारी के आसार बनते हों। हिमाचल मौसम विभाग के निदेशक मनमोहन सिंह कहते हैं कि दिसंबर की पहली बर्फबारी के बाद एक बार फिर एक लंबा ड्राई स्पैल आ गया है। हालांकि वे उम्मीद जताते हैं कि इस बार सर्दियों का मौसम सामान्य के आसपास बना रहेगा। जो पर्यावरण के लिहाज से अच्छा है।

शिमला मौसम केंद्र के हरविंदर दत्ता याद करते हैं कि 1990 के दशक तक तो दिसंबर के महीने में शिमला में भी अच्छी बर्फ गिरती थी। लेकिन उसके बाद बर्फबारी के लिहाज से मौसम धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है। इसीलिए गर्मियों में पानी की किल्लत और जंगल में आग लगने की घटनाओं में इजाफा हो रहा है।

भारतीय मौसम विभाग के मौसम विज्ञानी आनंद शर्मा बताते हैं कि पश्चिमी विक्षोभ सर्दियों के मौसम को प्रभावित करता है। पश्चिमी विक्षोभ की फ्रीक्वेंसी और इंटेसिटी पर सर्दियों का तापमान निर्भर करता है। वे बताते हैं कि इस वर्ष सितंबर महीने में पश्चिमी विक्षोभ की वजह से चक्रवात आया था, उस समय हिमालय की पहाड़ियों पर जबरदस्त बर्फ़बारी हुई थी। भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक इस बार सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर तक लगातार बर्फ़बारी हुई है। हर महीने बर्फबारी की घटनाएं दर्ज की गईं। मौजूदा मौसम के साथ-साथ आने वाले महीनों के लिए भी इसे अच्छा माना जा सकता है। शुरुआती महीनों में जो बर्फ़ गिरती है,वो जमती जाती है, और फिर देर से पिघलती है। स्थानीय भाषा में इसे लोहे के जैसा माना जाता है, जो जम जाता है और देर से पिघलता है। अप्रैल-मई में जब नदियों में पानी की जरूरत होती है तो ये बर्फ़ पिघल जाती है। लेकिन जो बर्फ़बारी देर से और थोड़े समय के लिए होती है, वो हलकी और भुरभुरी सी होती है, बर्फ़ जल्दी पिघल जाती है, जिससे गर्मियों में पानी की किल्लत के आसार हो जाते हैं। मौसम विज्ञानी आनंद शर्मा बताते हैं कि इस बार जो बर्फ़बारी हो रही है, बर्फ जमती जा रही है, आगे चलकर गर्मियों के मौसम में इसका फायदा मिलेगा। साथ ही इससे धुंध और कोहरे से भी निजात मिलती है।

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह कहते हैं कि मानसून के बाद अक्टूबर से दिसंबर अब तक का मौसम सामान्य के नज़दीक या न्यूनतम की ओर दर्ज किया गया है। हालांकि कुल बारिश अभी तक कम हुई है, लेकिन कृषि - बागवानी और हॉर्टीकल्चर की जरूरत के मुताबिक ठीक-ठाक बारिश हुई है। पिछले तीन वर्षों में सर्दियों का मौसम अपेक्षाकृत गर्म रिकॉर्ड किया गया था। उत्तराखंड में इस वर्ष जनवरी के तीसरे हफ्ते में जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी सामने आई थीं। इस लिहाज से अब तक का मौसम मेहरबान नजर आता है।