पर्यावरण

अरावली के किले पानी के पहरेदार

रणथंभौर और चित्तौड़गढ़ के किलों के अंदर जल संचय की उत्तम व्यवस्था के कारण ही यहां रहने वाले लोगों का जीवन संभव हो पाया

DTE Staff

राजस्थान की अरावली पर्वत शृंखला के सबसे बड़े आकर्षण इसमें बने किलेदार शहर और राजमहल हैं। अलवर की तरह कई किले शहरों के बीच स्थित पहाड़ी के ठीक ऊपर बने हैं। आंबेर और बूंदी में किला ऊंची पर्वत शृंखला पर है और महल नीचे बना है। कुंभलगढ़, चित्तौड़गढ़ और रणथंभौर में पूरी बस्ती किले के अंदर ही है। इन किलों के अंदर इतने लोगों का जीवन संभव हो पाया, क्योंकि यहां जल संचय की विस्तृत व्यवस्था थी। कई बार महीनों तक इन किलों की घेराबंदी रही। पर ऐसे अवसरों पर भी पानी की कमी होने के प्रमाण नहीं हैं।

चित्तौड़गढ़ और रणथंभौर किलों के निर्माताओं ने किले के अंदर स्थित पहाड़ी ढलानों का आगोर के रूप में बहुत ही कुशलता के साथ उपयोेग किया था। कुछ खाली जमीन को भी बरसाती पानी के संग्रह के लिए उपयोग में लाया गया। पीने के पानी के लिए तालाबों से नीचे के इलाके में कुंडियां और बावड़ियां बनाई गईं थीं। किलों के सबसे ऊंची जगहों पर स्थित ये कुएं और कुंडियां कभी सूखती नहीं थी। किला या महल और मकान बनाने के लिए पत्थरों की खुदाई इस हिसाब से की जाती थी कि इन गड्ढों को बाद में जलाशय के रूप में बदल दिया जाए। जलाशय शृंखलाओं में भी बने हैं जिनसे एक का पानी दूसरे में जाए।

चित्तौड़गढ़

चित्तौड़गढ़ किले में कितने लोग रहा करते थे इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है, पर मोटा अनुमान तो लगाया ही जा सकता है। इतिहासकारों के अनुसार, यहां एक बार एक साथ 13,000 औरतों ने जौहर किया था। युद्ध में गए अपने पति की मौत पर राजपूत औरतें खुद को आग में झोंक देती थीं, जिससे वे दुश्मनों के हाथ न लग सकें। एक अन्य युद्ध में 32,000 राजपूत मारे गए थे। इसलिए कम-से-कम 50,000 लोग तो यहां रहते ही होंगे। उनके घोड़े-हाथी भी होंगे।

चित्तौड़गढ़ पर 16वीं सदी तक गहलोत राजपूतों का मजबूत राज था। यह किला 152 मीटर ऊंची अंडाकार पहाड़ी के ऊपर बना है। चारों ओर एकदम तीखी ढलान के चलते इस किले तक किसी भी तरफ से पहुंचना मुश्किल है। इसी महत्व के चलते चित्तौड़ पर बार-बार हमले हुए। चित्तौड़गढ़ और कुंभलगढ़ पर कब्जे के बगैर कोई भी हमलावर मेवाड़ नहीं जीत सकता था, इसलिए भी हमले हुए। अपने इतिहास में इसने तीन काफी मुश्किल युद्ध देखे हैं।  

किले के अंदर जल संचय वाले कुल 84 प्रबंध थे। आज इनमें से अधिकांश खत्म हो गए हैं और जो मौजूद भी हैं उनके अवशेष मात्र खड़े हैं।

अभी तक 22 प्रमुख जल जल प्रबंध प्रवस्थाएं बची हैं जिनमें तालाब, कुंड, बावड़ियां और कुएं शामिल हैं।

किले के अंदर स्थित सभी तालाबों का अपना-अपना प्राकृतिक आगोर है। कुंड और बावड़ी तालाब के नीचे की जमीन में बने थे जिससे उसके रिसाव को संचित कर सकें। कुंड में भूजल आ भी सकता है और नहीं भी, पर बावड़ियां इसी पर टिकी थीं। कुंड में चारों तरफ से सीढ़ियां बनी थीं, पर बावड़ी में सिर्फ एक तरफ से। चित्तौड़गढ़ के निर्माताओं ने सिर्फ बरसाती पानी को ही संचित करने की व्यवस्था नहीं की, उन्होंने जमीन के अंदर होने वाले रिसाव को भी संचित कर लिया। इसके लिए सूर्य कंुड काला नाडा के नीचे बना है, खतन बावड़ी फतेहजी का तालाब के नीचे बनी है और भीमताल कुंड सुकाडिया तालाब के नीचे बना है। इस प्रकार अगर एक तालाब सूख भी जाए तो उससे रिसा पानी कुंडों और बावड़ियों में आता रह सकता था। हाथी कंुड फतेहजी का तालाब के रिसाव से पानी लेता था और उसके रिसाव का पानी ही गुरूमुख झरने में जाता था। कुकडेश्वर कंुड में महादेवरा कंुड के रिसाव से पानी आता था और खुद उसे रत्नेश्वर कुंड के रिसाव का आसरा था। यह कुंड राठाडिया कुंड से पानी पाता था।

चित्तौड़गढ़ किले का कुल क्षेत्रफल करीब 500 हेक्टेयर का है। जलाशयों की औसत गहराई करीब 2 मीटर है। किले के अंदर वाले सारे जलाशयों का कुल क्षेत्रफल करीब 200 हेक्टेयर होगा। इनमें करीब 4 अरब लीटर पानी रह सकता था। इस इलाके में सालाना औसत 700 मिमी‐बरसात होती है और अगर 400 हेक्टेयर पर पड़े कुल बरसाती पानी को जमा कर लें तो करीब 3 अरब लीटर पानी जमा होगा। अगर यहां 30,000 लोग रहते हों और हर आदमी रोज औसतन 20 लीटर पानी खर्च करे तो सिर्फ 20 करोड़ लीटर पानी ही खर्च कर पाएगा। इन आंकड़ों से पता चलता है कि किले के निर्माताओं ने कितनी मुश्किल से मुश्किल स्थिति की कल्पना करके उससे निबटने की तैयारी कर रखी थी। जानवरों की जरूरतें पूरी करके भी 50,000 लोग यहां के भंडार के पानी के चार वर्षों तक काम चला सकते थे।



लेकिन आधुनिक जीवन शैली उससे एकदम भिन्न है जहां आज भी करीब 3,000 लोग रहते हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग “फेड” यहां रोज 67,500 लीटर पानी की आपूर्ति करता है। नीचे खुदे कुओं और नलकूपों से यह पानी आता है। 17.5 हॉर्सपावर का पंप रोज 16 घंटे चलकर यह पानी ऊपर पहुंचाता है। किले के नीचे बसा आधुनिक चित्तौड़गढ़ शहर पिछले कुछ वर्षों से पानी का अकाल झेल रहा है। अगर ठीक से प्रबंध हो तो किले के अंदर रहने वालों की पानी की जरूरतें वहीं के जल प्रबंधों से पूरी हो सकती है। पर “फेड” के इंजीनियर उस पानी को, जिसे राजे-महाराजे और फौजें सदियों से पीती आई थीं, अच्छी क्वालिटी का नहीं मानते। पर इसे विडंबना ही कहेंगे कि आज भी जब पानी का संकट होता है तो किले के अंदर के जल प्रबंधों से ही पानी लेकर नीचे शहर के लोगों को भी दिया जाता है।

रणथंभौर

कभी पांच हजार लोग उस रणथंभौर किले के अंदर रहा करते थे, जो अब प्रसिद्ध रणथंभौर राष्ट्रीय अभ्यारण्य में आ गया है। इतने लोगों के लिए पानी का प्रबंध किले के अंदर ही था। जब युद्ध न भी हो रहे हों तो भी नीचे से इतने लोगों की जरूरतों के लायक पानी किले तक ले आना भारी मुश्किल काम था।
रणथंभौर में पांच बड़ी जल संचय व्यवस्थाएं हैं-जंगली तालाब, सुकसागर तालाब, कालासागर, पद्यला तालाब और रानी हौद। एक बारहमासी झरना भी था जिसे गुप्त गंगा कहा जाता है। सभी तालाबों के अपने अपने प्राकृतिक आगोर हैं। सबसे बड़ा है जंगली तालाब। इसका बांध इस तरह बना है कि यह दो घाटियों से बहकर आने वाले पानी के रास्ते को रोकता है।

तालाब के एक कोने पर कुआं बना है जहां से पीने का पानी लिया जा सकता है। रानी हौद महल के पास स्थित है और शायद इसी का पानी महल में प्रयोग होता था। इसका आगोर काफी बड़ा है और कुछ नालियां इससे जुड़ी हैं, जो इसके तेजी से भरने का प्रबंध करती थीं। रानी हौद से भी एक बड़ा कुआं लगा हुआ है। महल के बाहर एक बड़ा तालाब है। संभवतः रानी हौद से पानी लेकर इसे भरा जाता था और यहां से महल की जरूरत के अनुसार पानी लिया जाता था।

पद्यला तालाब का बांध बहुत ऊंचा है और वहां से पानी तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हैं। इसका आगोर काफी बड़ा है और दो घाटियों में पसरा है। बांध के दाहिनी तरफ एक कुआं बना है। सुकसागर के तीन बांध पत्थर के हैं। इसका मुख्य बांध रिसावदार है, जिससे पानी रिसता है और तालाब अक्सर सूख जाता है। कालासागर किले के एकदम पूरब में स्थित है और एक संकरी घाटी को बांधने से इसमें पानी आता है। संभवतः इसी तालाब से इससे लगे अन्नागारों और भंडारों को पानी जाता था।

रणथंभौर किले में व्यवहार के लिए तालाबों से लगे कुओं से ही पानी लिया जाता था। इनका पानी बेहतर माना जाता था। जल प्रबंध पूरे किले में बिखरे हैं, सो किसी को भी पानी के लिए ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ता था।

रणथंभौर में पानी के भंडारों के ऊपर ऐसे फाटक बने थे जिनको खोलने से आगे बढ़ती हमलावर सेना डूब सकती थी। युद्ध के समय दुश्मन की सेना पर किले के ऊपर से गर्म पानी फेंका जाता था। ‘फोर्ट्स आॅफ राजस्थान‘ के लेखक आर‐एल‐ मिश्र के अनुसार, “किले के अंदर पांच बड़े तालाब थे, जिन्हें हरदम भरकर रखा जाता था। दुश्मन सेना जैसे ही नौलखा दरवाजे पर आती थी, इन तालाबों का फाटक खोल देने पर पानी के प्रवाह में बह जाती थी।”

महल और जल
 

देश के कई हिस्सों में राजाओं-महाराजाओं ने जल महल के निर्माण करवाए। इसके तीन उद्देश्य थे। पहला, भूमि मार्ग से आने वाले शत्रुओं के हमले से बचाव, दूसरा महल के सौंदर्य में वृद्धि और तीसरा, क्षेत्र की जल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जल संग्रहण की व्यवस्था।
राजस्थान में जयपुर-आमेर मार्ग पर मानसागर झील के मध्य जल महल का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया था। इस महल के निर्माण से पहले जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति के लिए गर्भावती नदी पर बांध बनवाकर मानसागर झील का निर्माण करवाया था। इसका निर्माण वर्ष 1799 में हुआ था। तपते रेगिस्तान के बीच बसे इस महल में गरमी नहीं लगती, क्योंकि इसके कई तल पानी के अंदर बनाए गए हैं।
राजस्थान के ही भरतपुर जिले में डीग पैलेस भी इस श्रेणी में एक खास महल के तौर पर जाना जाता है। इसका निर्माण जाट राजा बदन सिंह के पुत्र राजा सूरजमल ने 1956-63 में करवाया। इस महल के बाहर बनी खाई, किले की खाई और किले के साथ बनाए गए कई पोखरों के साथ शहर का नियोजन इस तरह से किया गया कि इससे भूमिगत जलभरों में पानी जाता था और काफी सारे कुओं से मीठा पानी निकलता था।
गुजरात के जामनगर में स्थित लखोटा फोर्ट को ऐसे स्थान के तौर पर जाना जाता है जहां युद्ध के लिए हथियारों का संग्रहण किया जाता था। इस महल का निर्माण वर्ष 1540 में जाम रावल नामक व्यक्ति ने की थी जिसका संबंध वहां के शाही परिवार से था। उस समय इस क्षेत्र को ननवागढ़ के नाम से जाना जाता था। बाद में इस शहर का नाम जाम रावल के नाम पर जामनगर रखा गया। 19वीं शताब्दी में क्षेत्र के राजा जाम साहेब ने महल के चारों ओर रणजीत सागर नाम की एक झील खुदवाई ताकि वहां के निवासियों की पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में रुद्रसागर  झील के बीचोंबीच स्थित नीर महल का निर्माण वर्ष 1930 में तत्कालीन राजा बीर बिक्रम किशोर देबबर्मन ने करवाया था। यह झील 5.3 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली है और आसपास के क्षेत्र की जल आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। यहां हर साल जल महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
- चैतन्य चंदन