मंगड़ूराम मंडावी, अमन टोला गांव, अबूझमाड़, कांकेर 
पर्यावरण

आदिवासियों की संघर्ष गाथा: कब मिलेगा अपने ढंग से जीने का अधिकार?

पिछले सात-आठ दशकों से हम हर बाहरी लोगों से छले गए और अब इंतजार है कब इन बाहरियों से मुक्ति मिलेगी

Mangdooram Mandavi

हमारा शोषण सदियों से होता आया है और यह अब भी अनवरत रूप से जारी है लेकिन इस शोषण के बीच ही हमने अपनी संस्कृति और अपनी जानें बचाई हैं। हमें 25 साल पहले अपना राज्य मिला लेकिन मुझे तो आज तक समझ न आया कि नए राज्य मिलने से लाभ किसको हुआ। मुझे तो अब तक नहीं हुआ।

हम अब भी नदियों व नालों से पानी के स्रोत ढूढ़कर पानी पीते हैं। आज भी हम लालटेन या ढिबरी जलाते हैं। पुरखों ने बताया कि पहले हमारे ऊपर राजा-महाराजाओं को दबाव रहता था कि वे शिकार करने जंगल आ रहे हैं तो आदिवासियों के लिए जंगली जानवरों को ढ़ढ़ना काम होता था। इनके बाद ब्रिटिश आए। कमोबेश इनकी स्थिति भी राजे-रजवाड़ों की ही तरह थी। हमारा देश कब स्वतंत्र हुआ मुझे नहीं मालूम। हां यह मालूम पड़ा कि अब जंगल में वन विभाग के कर्मचारी आ गए हैं। ये पिछले शोषकों से सबसे अधिक खतरनाक साबित हुए। क्योंकि ये तो हमें अपनी ही जगह से खदेड़ने की कोशिश करते आ रहे हैं।

यदि हम अपने गांव का उदाहरण दूं तो मुझे याद है कि जब ये वन विभाग वाले आए तब ये अचानक हमारे घरों में आ धमके और हमें कहने लगे कि जंगल की कोई भी उपज न तो एकत्रित कर सकते हो न जंगल काट सकते हो। हमें समझ ही नहीं आया कि ये क्या बक रहे हैं।

मुझे अच्छे से याद है कि उन वन कर्मियेां ने हमारे गांवों के कई घरों में आग लगा दी। एक दिन ऐसा भी आया जब वे हमारे घर के सामने आ खड़े हुए और दिया सलाई दिखाकर हमें कहा कि तुम लोग यहां से भाग जाओ यह सरकार की जमीन है। हमारे नहीं हटने पर जोरजबरदस्ती से हमें अपने घरों से निकाल दिया और जब वे हमारे घर में आग लगाने ही वाले थे कि मेरी दादी जबरदस्ती हमारे घर के अंदर घुस गई और एलान कर दिया कि अब हमारा घर जलाओ, मैं इसी आग में जल मरुंगी। उसके ऐसा करते ही वन कर्मियों डर के भाग गए। हालांकि इसके पहले मेरे गांव दर्जनों गांव जला चुके थे।

इसके बाद अस्सी के दशक में कुछ रहनुमा (नक्सली) हमारे गांव के आसपास मंडराने लगे और हमें इन वन कर्मियों से बचाने का काम करने लगे। हमें समझ ही नहीं आया कि यह लोग हमें क्यों बचा रहे हैं। इनको तो हमने कभी नहीं देखा था। खैर बाद में पता चला कि ये हम आदिवासियों को अधिकार दिलाएंगे। हां अब हम दोनों तरफ से पिसने लगे। अब हमारे अबूझमाड़ की पहाड़ियों को खोदा जा रहा है और कहा गया कि हम जिस जमीन पर हैं, उसके नीचे बेशकीमती खनिज छिपा हुआ। ऐसे हालात में हम पिछले सात-आठ दशकों से जीते आए हैं।

मालूम नहीं कब हमें अपने ढंग से जीने का अधिकार मिलेगा।