प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
पर्यावरण

एनजीटी ने टार बॉल्स से जुड़े मुद्दे पर पर्यावरण मंत्रालय से मांगी नए नियमों की जानकारी

मुद्दा समुद्र में कच्चे तेल के रिसाव के चलते टार बॉल्स के निर्माण से जुड़ा है

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 17 अक्टूबर, 2024 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) से अगली सुनवाई तक संबंधित दस्तावेजों के साथ तैयार किए जा रहे नए नियमों प्रस्तुत करने के लिए कहा है। मामला टार बॉल्स और संबंधित मुद्दों के प्रबंधन से जुड़ा है। इस मामले में अगली सुनवाई छह मई, 2025 को होनी है।

वहीं पर्यावरण मंत्रालय तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि नए नियमों को तैयार करने में कम से कम छह महीनों का समय लगेगा।

यह मुद्दा समुद्र में कच्चे तेल के रिसाव के चलते टार बॉल्स के निर्माण से जुड़ा है। यह समस्या खासतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र और गोवा के तटों पर के लिए कहीं ज्यादा विकट है।

इस दौरान अदालत का ध्यान संयुक्त समिति द्वारा सबमिट स्थिति रिपोर्ट की ओर आकर्षित किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अदालती आदेश पर गठित समिति ने एक तकनीकी उप-समिति का गठन किया है। यह उप-समिति सभी संबंधित हितधारकों को शामिल करके मुद्दों का आगे अध्ययन करेगी।

यह उप-समिति वैज्ञानिक तरीकों की मदद से टार बॉल्स के स्रोत का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करेगी। वे टार बॉल्स के प्रबंधन में मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय तेल प्रदूषण क्षतिपूर्ति निधि (आईओपीसी) का उपयोग करने पर भी विचार करेंगे, जिसमें भारत का महत्वपूर्ण योगदान है।

एक और मुद्दा जिस पर ध्यान देना है, वह यह जांचना है कि क्या अपतटीय तेल अन्वेषण, पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन करते हैं, खासकर तेल रिसाव प्रबंधन के संबंध में क्या वो नियमों को ध्यान में रख रहे हैं। इस जांच में भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी), पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी), प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, समुद्री बोर्ड और गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (सीजेडएमए) शामिल होंगें।

उत्तरी गोवा के नो डेवलपमेंट जोन में बनाई गई हैं विवादित संरचनाएं: जीसीजेडएमए

उत्तरी गोवा में बारदेज तालुका के नेरुल गांव के नो-डेवलपमेंट जोन (एनडीजेड) में शेड बनाने के लिए जिस सामग्री का इस्तेमाल किया गया है, उसकी अनुमति नहीं है। यह शेड मछली पकड़ने से जुड़ी गतिविधियों में शामिल लोगों द्वारा बनाए गए हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को यह जानकारी 18 अक्टूबर, 2024 को दी गई है।

गौरतलब है कि गोवा तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (जीसीजेडएमए) ने 17 अक्टूबर, 2024 को एक जवाबी हलफनामा दाखिल किया है। इसके मुताबिक यह विवादित संरचनाएं नेरुल गांव के नो डेवलपमेंट जोन में मौजूद हैं।

हालांकि अदालती आदेश में कहा गया है कि इसे तोड़े जाने पर रोक का अंतरिम आदेश अगली सुनवाई तक प्रभावी रहेगा। इस मामले में अंतिम सुनवाई 22 नवंबर, 2024 को होगी।