पर्यावरण

अनुमान से कहीं अधिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं नैनो कण, नए अध्ययन में खुलासा

छले कुछ सालों के दौरान हमारे जीवन में नैनो-टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ा है, लेकिन इन से निकलने वाले सूक्ष्म कणों से होने वाले नुकसान का अब तक हमारे पास पुख्ता ब्यौरा नहीं है

Dayanidhi

पिछले दो दशकों में, नैनो-टेक्नोलॉजी ने ऐसे कई उत्पादों में सुधार किया है, जिनका उपयोग हम हर दिन माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक से लेकर सनस्क्रीन तक में करते हैं। टनों के हिसाब से नैनो-पार्टिकल्स वातावरण में फैल रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिक अभी भी इन बहुत छोटे नैनो कणों के लंबी अवधि तक पड़ने वाले प्रभावों के बारे में स्पष्ट नहीं हैं। नैनो-पार्टिकल्स - ऐसे कण हैं जो आकार में केवल कुछ सौ परमाणुओं के बराबर होते हैं।

अब एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि नैनोकणों का पर्यावरण पर पहले लगाए गए अनुमान के कहीं ज्यादा असर पड़ सकता है। शोध को केमिकल साइंस में प्रकाशित किया गया है, जो रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री की एक साथी पत्रिका है।

मिनेसोटा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में नेशनल साइंस फाउंडेशन सेंटर फॉर सस्टेनेबल नैनोटेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने कहा है कि पर्यावरण में पाए जाने वाले एक सामान्य बैक्टीरिया, जिसे  श्वेनेला वनडेंसिस एमअर-1 कहा जाता है और इससे बीमारियां नहीं होती हैं।

इस बैक्टीरिया में तेजी से प्रतिरोध (रेजिस्टेंस) पैदा कर इसका संपर्क नैनोकणों से किया जाता है और संपर्क कराए गए इन नैनोकणों का उपयोग लिथियम आयन बैटरी बनाने में, पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग होने वाली रिचार्जेबल बैटरी बनाने में किया जाता है। प्रतिरोध (रेजिस्टेंस) तब होता है जब किसी सामग्री में बैक्टीरिया अधिक मात्रा में जीवित रहते हैं, जिसका अर्थ है कि प्रतिरोध के दौरान बैक्टीरिया की आधारभूत संरचना में बदलाव होता है।

मिनेसोटा के केमिस्ट्री के एसोसिएट प्रोफेसर और यूनिवर्सिटीज कॉलेज ऑफ़ साइंस एंड इंजीनियरिंग में प्रमुख अध्ययनकर्ता, एरिन कार्लसन कहते हैं कि एस्बेस्टस या डीडीटी जैसे पदार्थों और  रसायनों का अच्छी तरह से परीक्षण नहीं किया गया है और इससे हमारे पर्यावरण में बड़ी समस्याएं पैदा हुई हैं।

उन्होंने कहा कि हम नहीं जानते हैं कि इनके परिणाम कितने गंभीर हैं, लेकिन यह अध्ययन एक चेतावनी देता है कि हमें इन सभी नई सामग्रियों से सावधान रहने की आवश्यकता है, और यदि इनमें नाटकीय रूप से बदलाव आ जाए तो फिर हमारे वातावरण पर इसके घातक प्रभाव पड़ सकते हैं।

कार्लसन ने कहा कि इस अध्ययन के परिणाम असामान्य हैं क्योंकि आमतौर पर जब हम जीवाणु प्रतिरोध के बारे में बात करते हैं तो यह एंटीबायोटिक दवाओं से बैक्टीरिया का इलाज करने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बैक्टीरिया प्रतिरोधी हो जाते हैं, क्योंकि हम उन्हें मारने की कोशिश कर रहे होते हैं। इस मामले में, लिथियम आयन बैटरी में इस्तेमाल होने वाले नैनोकणों को कभी बैक्टीरिया मारने के लिए नहीं बनाया गया था।

यह गैर-जीवाणुरोधी नैनोकणों की पहली रिपोर्ट है, जो बैक्टीरिया में प्रतिरोध पैदा करते हैं। इससे पहले, कई अध्ययनों में बैक्टीरिया को नैनोकणों की एक बड़ी मात्रा के संपर्क में लाया गया और देखा कि क्या बैक्टीरिया मर रहे है अथवा नहीं।

यह अध्ययन अलग तरह का है, क्योंकि इसमें यह देखा गया कि परीक्षण के समय बैक्टीरिया नैनोकणों के लगातार संपर्क में आने पर कई पीढ़ियों तक कैसे इसके अनुकूल हो सकते हैं, बैक्टीरिया स्पष्ट रूप से समय के साथ बिना मरे इन सामग्रियों में जीवित रहने में सक्षम थे।

मिनेसोटा के रसायन विज्ञान के स्नातक छात्र और अध्ययनकर्ता स्टेफनी मिशेल ने कहा कि भले ही एक नैनोपार्टिकल सूक्ष्म जीवों के लिए विषैला न हो, लेकिन यह फिर भी खतरनाक हो सकता है।  

यह शोध मनुष्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अन्य जीव इन रोगाणुओं को भोजन के रूप में खाते हैं और इससे खाद्य श्रृंखला में एक बड़ा प्रभाव हो सकता है या इन प्रतिरोधी बैक्टीरिया के अन्य प्रभाव हो सकते हैं जिनका हम अभी अनुमान भी नहीं लगा सकते हैं।

कार्लसन ने कहा कि शोधकर्ता पर्यावरण में अन्य जीवों पर मानव-निर्मित नैनोमैटिरियल्स के प्रभाव और इसके लंबे समय में पड़ने वाले प्रभावों को निर्धारित करने के लिए अध्ययन जारी रखेंगे।

नेशनल साइंस फाउंडेशन में इनोवेशन कार्यक्रम के लिए रासायनिक केंद्र के कार्यक्रम निदेशक मिशेल बुशी ने कहा कि यह शोध तकनीक और हमारे पर्यावरण को बनाए रखने हेतु रसायन विज्ञान के लिए एक प्राथमिकता है। यह शोध लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बताता है और कुछ नैनोकणों का असर हमारे आसपास रहने वाले जीवों पर होता है।