पर्यावरण

सुप्रीम कोर्ट ने केरल को क्यों लगाई फटकार, कार्डेमम हिल रिजर्व से जुड़ा है मामला

Susan Chacko, Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) से जानकारी छिपाने पर केरल सरकार को फटकार लगाई है। 24 जुलाई, 2024 को अदालत ने कहा है कि सीईसी से जानकारी छिपाने से सुप्रीम कोर्ट की सहायता करने की उसकी क्षमता बाधित होती है।

शीर्ष अदालत का आगे कहना है कि जब सीईसी जांच करती है, तो हर अधिकारी उसकी सहायता करने के लिए बाध्य है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट केरल में मौजूद कार्डमम हिल रिजर्व के से जुड़े एक मामले में सुनवाई कर रहा था।

केरल द्वारा दायर हलफनामों में विरोधाभासी बयानों को देखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने केरल से इन विसंगतियों को दूर करने और अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है

वहीं केरल के वकील के मुताबिक चुनाव और व्यापक रिकॉर्ड को देखते हुए इस मामले में आगे कार्रवाई नहीं हो सकी है। ऐसे में उन्होंने हलफनामा दाखिल करने के लिए चार महीने का समय मांगा है। हालांकि 24 जुलाई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इतना लम्बा समय देने से इंकार कर दिया है और उन्हें आंकड़े एकत्र करने और कार्डामम हिल रिजर्व के सटीक क्षेत्र का निर्धारण करने के लिए केवल दो महीने का समय दिया है।

इस बीच, सीईसी भी अदालत की सहायता के लिए जांच कर रहा है। 18 जुलाई, 2024 को सीईसी के सचिव ने केरल से फाइल संख्या REV-R2/36/2023-REV की एक प्रति देने का अनुरोध किया था।

22 जुलाई, 2024 को भूमि राजस्व आयुक्त ए कोवसिगन और केरल के अतिरिक्त सचिव टी आर जयपाल ने सीईसी के सदस्य सचिव को सूचित किया है कि वे फाइल की प्रति उपलब्ध नहीं करा सकते, क्योंकि यह अभी भी केरल सरकार के पास विचाराधीन है।

सीईसी, को मूल रूप से सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित किया गया था। वहीं अदालत द्वारा पांच सितंबर, 2023 को जारी अधिसूचना के माध्यम से इसे वैधानिक मान्यता प्रदान की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीईसी टी एन गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामले की सुनवाई कर रही बेंच की सहायता कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा है।

ऐसे में 24 जुलाई, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि राजस्व आयुक्त ए कोवसिगन और केरल के अतिरिक्त सचिव टी आर जयपाल को नोटिस जारी कर उन्हें 21 अगस्त, 2024 को अदालत में पेश होने के लिए कहा है। साथ ही उनसे पूछा गया है कि अदालत की अवमानना करने के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।

सुखना झील वन्यजीव अभ्यारण्य के आसपास के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र को बढ़ाने पर विचार कर रही है पंजाब सरकार

पंजाब सरकार सुखना झील वन्यजीव अभ्यारण्य के आसपास के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र का विस्तार करने पर विचार कर रही है। 24 जुलाई 2024 को यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी गई है। पंजाब की ओर से पेश एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह का कहना है कि पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र को 100 मीटर के दायरे में सीमित करने का प्रस्ताव पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि पंजाब सरकार ईएसजेड के दायरे को बढ़ाने पर सक्रिय रूप से पुनर्विचार किया जा रहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 18 सितंबर, 2024 को होगी।

एमिकस क्यूरी का कहना है कि दो मार्च, 2020 को उच्च न्यायालय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सुखना झील वन्यजीव अभयारण्य की सीमा से कम से कम एक किलोमीटर के दायरे को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के रूप में घोषित करने का निर्देश दिया था। बता दें कि सुखना झील वन्यजीव अभ्यारण्य का कुछ हिस्सा पंजाब, जबकि कुछ हरियाणा में है।

रिज भूमि पर अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से मांगा जवाब

24 जुलाई, 2024 को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और वकील मनिका त्रिपाठी ने अतिक्रमण और रिज भूमि के डायवर्सन के मामले में भारत सरकार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) और डीडीए की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने उनका यह अनुरोध स्वीकार कर लिया है और इस मामले में अगली सुनवाई 21 अगस्त, 2024 को निर्धारित की है।

गौरतलब है कि नौ मई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा जारी एक रिपोर्ट पर गौर किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 24 मई, 1994 और 19 मार्च, 1996 की अधिसूचनाओं में कुल आरक्षित वन क्षेत्र 7,784 हेक्टेयर दर्शाया गया था। वहीं अंतिम अधिसूचना में महज 103.48 हेक्टेयर को ही इसमें शामिल किया गया है। वहीं इसके अतिरिक्त पांच फीसदी क्षेत्र अतिक्रमण के अधीन था। साथ ही वनों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए रिज भूमि का उपयोग बढ़ रहा था।