उत्तराखंड में आज, 16 जुलाई को हरेला मनाया जा रहा हैं, जो मानसून और पवित्र श्रावण मास के आगमन का प्रतीक है। राज्य की कृषि और पारिस्थितिकी विरासत का यह त्यौहार, पर्यावरण संरक्षण और सतत प्रथाओं के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को सशक्त बनाता है।
इस त्यौहार की नौ दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं, परिवार साफ मिट्टी का इस्तेमाल करके सात प्रकार के अनाज जिसमें धान, मक्का, तिल, उड़द, सरसों, जई, भट्ट के बीज को मिट्टी के गमलों या रिंगाल या पहाड़ी बांस की टोकरियों में बो दिए जाते हैं।
दसवें दिन, प्रचुरता और उर्वरता का प्रतीक अंकुरित साग की कटाई की जाती है, देवताओं को अर्पित किया जाता है और आशीर्वाद के रूप में परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है। इस दिन खीर, पुवा, पूरी, रायता, छोले और अन्य व्यंजन उत्सव के रूप में तैयार किए जाते हैं।
त्यौहार के दिन इस हरियाली को आपस में बांटते हुए स्थानीय लोग कुमाऊंनी भाषा में निम्नलिखित पंक्तियों के जरिए आशीर्वाद देते हैं
"लाग हरयाव, लाग दशे, लाग बगवाव।
जी रये जागी रया, यो दिन यो बार भेंटने रया।
दुब जस फैल जाए, बेरी जस फली जाया।
हिमाल में ह्युं छन तक, गंगा ज्यूं में पाणी छन तक,
यो दिन और यो मास भेंटने रया।
अगाश जस उच्च है जे, धरती जस चकोव है जे।
स्याव जसि बुद्धि है जो,स्यू जस तराण है जो।
जी राये जागी रया। यो दिन यो बार भेंटने रया।"
यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। माना जाता है कि हरियाली आने वाली फसल के स्वास्थ्य की ओर इशारा करती है। इस दिन लगाई गई टहनियां भी अच्छी तरह उगती हैं, जिसे ग्रामीण प्रकृति की कृपा का एक दिव्य संकेत मानते हैं।
इस त्यौहार में धार्मिक अनुष्ठान, पौधारोपण और सामुदायिक समारोह होते हैं जहां लोग बड़ों से आशीर्वाद हासिल करते हैं। घरों में भगवान शिव के परिवार की मिट्टी की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं और लोग उत्सव के दौरान लोकगीत गाते हैं।
इस साल का उत्सव "पेड़ लगाएं" और "हरेला मनाएं, धरती मां का ऋण चुकाएं" जैसी पहलों के माध्यम से पर्यावरण जागरूकता पर आधारित है। आज उत्तराखंड के सार्वजनिक पार्कों, नदी तटों, जंगलों, स्कूल परिसरों, सरकारी कार्यालयों और आवासीय क्षेत्रों में पौधे लगाए जाने की भी खबर है।
पहाड़ी इलाकों में मुख्य रूप से हिंदू समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला हरेला पर्व, मानव और प्रकृति के बीच गहरे बंधन का प्रतीक है। कृषि, धार्मिक और पारिस्थितिकी विषयों के मिश्रण के साथ, इस त्यौहार का महत्व सालों से बढ़ता जा रहा है, एक सांस्कृतिक परंपरा और एक सार्वजनिक पर्यावरण आंदोलन दोनों के रूप में।
जैसे-जैसे राज्य भर में उत्सव मनाया जा रहा है, हरेला 2025 उत्तराखंड की उस भूमि के रूप में पहचान की पुष्टि करता है जहां आध्यात्मिकता और स्थिरता साथ-साथ चलते हैं। हरेला का पर्व मात्र पर्यावरण के संतुलन के लिए ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य से जुड़े तमाम चीजों का भी प्रतीक है। इसमें ऋतु द्रव्यों के साथ भोजन औषधी को भी शामिल किया जाता है।
हरेले के त्यौहार में न केवल सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाया जाता है बल्कि यह उत्तराखंड में टिकाऊ कृषि पद्धतियों को भी सामने लाता है। जैसे-जैसे यह त्यौहार आगे बढ़ता है, यह प्रकृति के प्रति स्थानीय लोगों की श्रद्धा और उसके आशीर्वाद को सुदृढ़ करता है।