पर्यावरण

खत्म हो रहे हैं घास के मैदान, जैव विविधता में अहम योगदान देती है हवा

Dayanidhi

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया कि, पिछले 30 वर्षों में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश में 57 प्रतिशत घास के मैदान समाप्त हो गए हैं। घास के मैदान, जो 1985 में 418 वर्ग किमी थे, 2015 तक घटकर 178 वर्ग किमी रह गए हैं। वहीं यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के अनुसार भारत में  इस समय 960 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर है। यदि धरती के बंजर में तब्दील होने की रफ्तार नहीं थमीं, तो 2050 तक दुनिया की करीब 70 करोड़ आबादी पलायन के लिए मजबूर होगी। इन सब को देखते हुए भूमि को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ घास के मैदानों की बहाली की जानी चाहिए, ताकि भूमि सुधार के साथ-साथ जैव विविधता का भी विकास हो।

घास के मैदान पृथ्वी पर सबसे लुप्तप्राय लेकिन बहुत कम संरक्षित पारिस्थितिकी तंत्र हैं। इस महत्वपूर्ण, लेकिन अत्याधिक खराब होती पारिस्थितिकी तंत्र को ठीक करने के लिए घास के मैदानों की पुन: बहाली महत्वपूर्ण है। हालांकि, घास के मैदानों को बहाल करना, वहां पहले से रह रही प्रजातियों को कमजोर करना तथा समयानुसार उनकी विविधता को खोने जैसा है। मिसौरी विश्वविद्यालय के एक नए अध्ययन में पाया गया कि दूध वाले (मिल्कवीड्स) और अन्य पौधे, जिनमें हवा के द्वारा बीज एक जगह से दूसरी जगह ले जाए जाते है। ये स्रोत पारिस्थितिकी प्रणालियों में पौधों की विविधता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह अध्ययन एप्लाइड इकोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

घास के मैदानों के कई फायदे हैं। ये पशुधन के लिए भोजन, वन्य जीवन के लिए आवास, बाढ़ या अन्य करणों से होने वाले मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं, परागण की प्रक्रिया में सहायक होते हैं और दुनिया के बहुत सारे कार्बन को अवशोषित करते हैं। ये लाभ मुख्य रूप से विभिन्न घास और फूलों वाले पौधों से प्राप्त होते हैं जिनमें घास के मैदान भी शामिल हैं।बायोलॉजी साइंसेज के ग्रासलैंड इकोलॉजिस्ट, लॉरेन सुलिवन कहते है "जब हम उस विविधता को खो देते हैं, तो हम उन लाभों को खोने का ख़तरा उठाते हैं।" उन्होंने बताया कि "हमने पाया कि हवा का प्रभाव, विशेष रूप से हवा से बिखरे हुए पौधों की प्रजातियां, घास के मैदानों में जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है।" 

हवा के प्रभाव से प्रजातियों के एक निवास से दूसरे में जाना प्राकृतिक है। यह अवधारणा आम तौर पर समुद्री आवासों से जुड़ी हुई है, जहां आस-पास की मछलियों को बेहतर बनाने के लिए संरक्षित क्षेत्रों की मछलियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। मछली के विपरीत, पौधे अपने बीज को स्थानांतरित करने के लिए, हवा और जानवरों की तरह बाहरी चीजों पर भरोसा करते हैं। जहां बीज ओर भूमि भी यह निर्धारित करते है कि वे वहां उग पाएंगे या नहीं।

सुलिवन कहते है कि "क्योंकि पौधे का उगना न केवल उसके बीज के उत्पादन पर निर्भर करता है, बल्कि जहां बीज गिर रहा है वह भी महत्वपूर्ण है। हम इससे यह जानना चाहते हैं कि घास के मैदानों में जैव विविधता को बढ़ाने के लिए स्पिलओवर का इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं।"

ऐसा करने के लिए, सुलिवन और उनके सहयोगियों ने उत्तर-पूर्व मिनेसोटा में पहले बचे हुए घास के मैदानों के साथ पुन: बहाल किए गए घास के मैदानों का अध्ययन किया। घास के मैदानों को विविधता के विभिन्न स्तरों के साथ बहाल किया गया था। स्पिलओवर को मापने के लिए, उन्होंने पहले बचे हुए घास के मैदानों पर प्रत्येक पोधे की प्रजातियों को सूचीबद्ध किया और फिर पुन: घास के मैदान को 400 फीट की दूरी पर बहाल किया गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि पुन: बहाल किए गए घास के मैदानों में कम विविधता वाली प्रजातियां पाई गई। उन्होंने हवाओं के द्वारा बिखेरी गई प्रजातियां जानवरों या अन्य की तुलना में अधिक पाई। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि पहले से बचे हुए घास के मैदानों में स्पिलओवर एक महत्वपूर्ण कारक है जो पुन: बहाल घास के मैदानों में जैव विविधता को बढ़ाता है।

घास के मैदानों के पारिस्थितिक तंत्र के मामले में, हमने पाया कि हवा का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि कौन, किस प्रजाति का बीज है और वह किस जगह पर हैं। अध्ययनकर्ता, केटी पी. स्पेरी कहते है यदि आपके पास हवा की तरह संचार तंत्र हैं जिससे आप एक जगह से दूसरी जगह जा सकते है, तो स्पिलओवर की अधिक संभावना होती हैं, यदि कोई प्रजाति कम विविधता वाले वातावरण में उतर जाए तो प्रजाति की स्थापित होने की संभावना अधिक होती हैं।"