नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 27 मई को कहा कि जहां रेत खनन, स्टोन क्रशर, ईंट भट्टों और बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नियम बनाए गए हैं, वहीं प्लाईवुड उद्योगों के लिए ऐसा कोई दिशानिर्देश अब तक जारी नहीं किया गया है, जबकि ये उद्योग हवा और पानी दोनों को प्रदूषित करते हैं।
ट्रिब्यूनल ने कहा कि प्लाईवुड उद्योगों का प्रदूषण सूचकांक 78.3 है, जिससे यह ऑरेंज कैटेगरी में आते हैं। इसके बावजूद इनके लिए न तो रासायनिक सुरक्षा उपायों को लेकर कोई गाइडलाइन बनी है, न ही इनकी जगह तय करने या प्रदूषण की रोकथाम या नियंत्रण से जुड़े उपकरणों को लेकर कोई नियम बनाए गए हैं।
अदालत ने पाया है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएंडसीसी) तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने रेत खनन, स्टोन क्रशर, ईंट भट्टों, सामान्य जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार संयंत्रों के संबंध में दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। इनमें वायु एवं जल प्रदूषण को कैसे नियत्रित करा जाए इस सम्बन्ध में उपाय बताए गए हैं।
मंत्रालय को गाइडलाइन बनाने के दिए निर्देश
ऐसे में अदालत ने पर्यावरण मंत्रालय को छह महीने में प्लाईवुड उद्योगों के लिए दिशानिर्देश बनाने और कार्रवाई रिपोर्ट ट्रिब्यूनल के रजिस्ट्रार जनरल को सौंपने का आदेश दिया है। इसके साथ ही अदालत ने इस मामले में कई आदेश भी पारित किए हैं।
एनजीटी ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) को कई निर्देश दिए हैं। अदालत ने बोर्ड से छह फैक्ट्रियों के संचालन की स्वीकृति की समीक्षा करने को कहा है साथ ही यह भी देखने का निर्देश दिया है कि क्या वो नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 15 प्लाईवुड उद्योगों का निरीक्षण करने का निर्देश दिया है ताकि यह पुष्टि की जा सके कि क्या उद्योगों में रेजिन प्लांट है और वे कैप्टिव उद्देश्य के लिए रसायनों (फिनोल फॉर्मेल्डिहाइड या मेलामाइन फॉर्मेल्डिहाइड) का निर्माण कर रहे हैं या अंतिम उत्पाद के निर्माण के लिए इन केमिकल्स को बाहर से खरीद रहे हैं।
अगर किसी प्लाईवुड फैक्ट्री में रेजिन प्लांट है और वह खुद के इस्तेमाल के लिए रसायन बना रही है, तो उसकी अनुमति रद्द की जाए और जब तक उसे पर्यावरण मंजूरी (ईआईए अधिसूचना 2006 के प्रावधानों के तहत) न मिल जाए, तब तक रेसिन प्लांट को बंद किया जाए।
रसायनों की सुरक्षा और भंडारण की जांच
फैक्ट्रियों में फॉर्मेल्डिहाइड/गोंद जैसे रसायनों के सुरक्षित भंडारण और इस्तेमाल की भी जांच के आदेश दिए गए हैं।
एचएसपीसीबी को निर्देश दिया गया है कि वह प्लाईवुड फैक्ट्रियों की जांच करे ताकि यह पता चल सके कि क्या वे फॉर्मेल्डीहाइड और गोंद जैसे रसायनों के भंडारण और इस्तेमाल को लेकर जरूरी सावधानियां बरत रही हैं। जांच के आधार पर उचित कार्रवाई की जाए और रिपोर्ट जमा की जाए।
साथ ही, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह भी कहा गया है कि वह लकड़ी की राख के सुरक्षित निपटान के लिए एक मानक प्रक्रिया तैयार करे और लागू करे, ताकि प्लाईवुड फैक्ट्रियां पर्यावरण नियमों, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के निर्देशों और पर्यावरण मंजूरी/अनुमति शर्तों का पालन कर सकें।
एचएसपीसीबी को यह भी निर्देश दिया गया है कि वह यह जांच करे कि प्लाईवुड फैक्ट्रियां लकड़ी की राख को निचले इलाकों में फेंक रही हैं या नहीं, और क्या वे राख के भंडारण और परिवहन को लेकर सुप्रीम कोर्ट व एनजीटी द्वारा तय पर्यावरण नियमों का पालन कर रही हैं। प्लाईवुड फैक्ट्रियों से कहा गया है कि वे लकड़ी की राख के उत्पादन और निपटान का पूरा रिकॉर्ड रखें और राख का निपटान पर्यावरण नियमों के अनुसार करें। साथ ही, इस संबंध में हर तीन महीने में एचएसपीसीबी को पूरी जानकारी के साथ रिपोर्ट दें, जिसमें सभी जरूरी दस्तावेजों की प्रतियां शामिल होनी चाहिए।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया गया है कि वह 28 प्लाईवुड फैक्ट्रियों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए लगे उपकरणों की जांच करे और देखें कि ये उपकरण सही तरीके से काम कर रहे हैं या नहीं, खासकर फ्यूजिटिव एमिशन (अदृश्य प्रदूषण) को नियंत्रित करने के लिए। इसके बाद तीन महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट दाखिल करें।
यमुना नगर के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर को भी कहा गया है कि वे जांच करें कि क्या ये सभी 28 फैक्ट्रियां पर्याप्त पेड़-पौधे लगा रही हैं। वे एक महीने के अंदर पेड़-पौधों की संख्या, क्षेत्र, जगह और किस्मों की कमी बताने वाली रिपोर्ट बनाएं और साथ में सुझाव दें कि ये फैक्ट्रियां वृक्षारोपण में कमी को दूर करने के लिए क्या कदम उठाएं और इसके लिए कितना बजट चाहिए।
एचएसपीसीबी से अदालत ने कहा है कि जिन फैक्ट्रियों को पहले से संचालन की अनुमति दी गई है, उनके अनुमति पत्रों की समीक्षा की जाए और जहां पेड़-पौधे लगाने या ग्रीन बेल्ट बनाने की शर्त नहीं है, वहां यह शर्त भी शामिल की जाए। साथ ही, यमुना नगर के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर की सलाह के अनुसार सभी प्लाईवुड फैक्ट्रियों को पर्याप्त पेड़-पौधे लगाने या ग्रीन बेल्ट बनाने के निर्देश दिए जाएं।
इसके साथ ही नए उद्योगों के संचालन की मंजूरी तभी दी जाए जब वे वृक्षारोपण की शर्तें पूरी करें।
इन सभी 28 प्लाईवुड फैक्ट्रियों के मालिकों (जो सभी मामलों में प्रतिवादी बनाए गए हैं) को निर्देश दिया गया है कि वे आने वाले मानसून में यमुना नगर के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर की सिफारिशों के अनुसार फैक्ट्रियों की सीमा और गांव की सड़कों के किनारे आवश्यक चौड़ाई में पेड़ लगाएं और ग्रीन बेल्ट तैयार करें। यह काम कितना पूरा हो चुका है इसकी रिपोर्ट चार महीने के भीतर दाखिल करनी होगी।
क्या है पूरा मामला
अदालत ने बोरवेल और भूजल के सैंपल लेकर उनकी निर्धारित मानकों के अनुसार जांच करने को कहा है। इसके तहत सिर्फ घरेलू अपशिष्ट के लिए ही नहीं, बल्कि औद्योगिक अपशिष्ट की भी जांच की जानी चाहिए। साथ ही प्रदूषण बोर्ड से कहा गया है कि इस जांच रिपोर्ट के आधार पर कानूनी कार्रवाई की जाए और इस सम्बन्ध में रिपोर्ट अदालत में दाखिल की जानी चाहिए।
इसके साथ सभी प्लाईवुड फैक्ट्री मालिकों को यह निर्देश दिया गया है कि वे बोरवेल पर फ्लो मीटर लगाएं, भूजल की खपत का रिकॉर्ड रखें और इसकी रिपोर्ट जमा करें।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया गया है कि हरियाणा की प्लाईवुड फैक्ट्रियों से जुड़ी सभी जरूरी जानकारी और उनकी अनुपालन स्थिति अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने के साथ तीन महीने में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। पर्यावरण मंत्रालय से भी कहा गया है कि वह इस मुद्दे की जांच करे, प्लाईवुड उद्योगों के लिए जरूरी दिशा-निर्देश बनाए और कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करे।
गौरतलब है कि यह मामला यमुनानगर के गांव दमला निवासी सुमित सैनी की पत्र याचिका पर आधारित है, जो उन्होंने 14 मई, 2022 को एनजीटी को भेजी थी।
उन्होंने अदालत को जानकारी दी है कि दमला गांव में करीब 25 प्लाईवुड फैक्ट्रियां और जिले भर में 1,000 से अधिक फैक्ट्रियां चल रही हैं। गांव में 5 ईंट भट्टे भी चालू हैं।
याचिका के साथ कुछ तस्वीरें भी लगाई गईं, जिनमें हवा में प्रदूषण और हर घर की छत पर जमी काली राख साफ दिख रही है। इससे ग्रामीणों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।
आरोप है कि ज्यादातर फैक्ट्रियों में प्रदूषण को नियंत्रित करने के कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। गांव के पीने के पानी में खारापन बढ़ रहा है। याचिकाकर्ता ने आशंका जताई कि कुछ फैक्ट्रियां जमीन में बोरवेल बनाकर उसमें गंदा पानी डाल रही हैं, जिसे भूजल की गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है।