भारत का पारिस्थितिक पदचिह्न तेजी से बढ़ रहा है। 1980 के दशक से ही देश की जैव विविधता में गिरावट जारी है। फोटो साभार: आईस्टॉक
पर्यावरण

क्यों मनाया जा रहा है अर्थ ओवरशूट डे, क्या छिपा है संदेश

Dayanidhi

पृथ्वी जितना फिर से पैदा कर सकती है, उससे ज्यादा हम उपभोग कर रहे हैं, इस अति उपभोग के कई प्रभाव हैं, जैसे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ना, जिसकी वजह से जलवायु में बदलाव होता है

धरती जो हमें जीने के लिए सभी जरूरी प्राकृतिक संसाधन प्रदान करती है जिसमें हवा, पानी, पेड़ आदि शामिल हैं, लेकिन हम इनका अत्यधिक उपभोग कर रहे हैं। हम उपभोग के मामले में लक्ष्य से बाहर चले गए हैं जिसे ओवरशूट भी कहा जाता है। इस साल आज, यानी एक अगस्त को अर्थ ओवरशूट डे मनाया जा रहा है, यह दिन विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में टिकाऊ तरीकों को अपनाने पर जोर डालता है।

पारिस्थितिक पदचिह्न तेजी से बढ़ रहा है। 1980 के दशक से ही देश की जैव विविधता में गिरावट जारी है।

वर्तमान में भारत को अपनी आबादी की मांग को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों की 2.6 गुना करने की जरूरत है, जिसके कारण जंगलों का नाश हो रहा है, जैव विविधता कम हो रही है और जलवायु में तेजी से बदलाव आ रहा है। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता, अंधाधुंध कृषि और तेजी से बढ़ता शहरीकरण इस सब के लिए जिम्मेवार हैं।

नीति आयोग की एक रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई है कि साल 2030 तक भारत की पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो सकती है, जिससे लाखों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी का खतरा पैदा हो सकता है।

1.4 अरब से ज्यादा की आबादी वाला भारत, जनसंख्या वृद्धि और बढ़ती खपत के कारण कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का

भारत सरकार का लक्ष्य 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करना है। सतत खेती को बढ़ावा देना और जल प्रबंधन में सुधार करना जरूरी है। जन जागरूकता भी महत्वपूर्ण है। लोग कचरे को कम करके, पानी का संरक्षण करके पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का समर्थन करके मदद कर सकते हैं।

अर्थ ओवरशूट डे हमें याद दिलाता है कि संसाधन सीमित हैं। भारत के लिए, यह एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए सतत प्रथाओं को अपनाने का समय आ गया है।

क्या है अर्थ ओवरशूट दिवस का इतिहास?

अर्थ ओवरशूट डे की एक दिलचस्प कहानी है जो हमें सचेत भी करती है। इसकी शुरुआत यूके में न्यू इकोनॉमिक्स फाउंडेशन के विचारक एंड्रयू सिम्स के द्वारा हुई।

उन्होंने इस अवधारणा को सामने रखा और 2006 में ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क ने फाउंडेशन के साथ मिलकर सबसे पहला अर्थ ओवरशूट डे अभियान शुरू किया। 2007 से, एक प्रमुख संरक्षण समूह, वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) भी इसमें शामिल हो गया।

यह दिन इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का इतना अधिक उपयोग किया है जितना कि हमारी धरती एक साल में पैदा नहीं कर सकती। इसकी गणना पृथ्वी की जैव क्षमता को उन संसाधनों के लिए लोगों की मांग से विभाजित करके, फिर 365 से गुणा करके की जाती है।

पिछले कुछ सालों में अर्थ ओवरशूट डे की तारीख आगे बढ़ती रही है। शुरुआती दिनों में, दिसंबर में, हाल ही में, यह अगस्त में पहुंच गया, जो पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों की हमारी मांग को दर्शाता है।

यह मुहिम केवल तारीखों के बदलने के बारे में नहीं है। यह इशारा देता है कि हमारा पारिस्थितिकी पदचिह्न बढ़ रहा है और हमारे ग्रह की जैव क्षमता इसके साथ तालमेल नहीं रख पा रही है।

दुनिया भर में हम घाटे में चल रहे हैं, पृथ्वी जितना फिर से पैदा कर सकती है, उससे ज्यादा हम उपभोग कर रहे हैं। इस अति उपभोग के कई प्रभाव हैं, जैसे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ना, जो जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है।

यह दिन हमें याद दिलाता है कि हर काम मायने रखता है और अधिक टिकाऊ विकल्प अपनाकर, हम साल के अंत में अर्थ ओवरशूट दिवस को आगे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं और ऐसा समय लाने का लक्ष्य बना सकते हैं जब हमारी मांगें धरती के द्वारा प्रदान की जा सकने वाली मांग से मेल खाएं।