पर्यावरण

अदालत के आदेश के बावजूद बिल्डर से आठ साल से एक करोड़ रुपए पर्यावरणीय क्षति नहीं वसूल पाई सीपीसीबी

एनजीटी ने सीपीसीबी ने पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति भरने के लिए लिखे कई पत्र, लेकिन बिल्डर की तरफ से नहीं आया कोई जवाब

Vivek Mishra

पर्यावरणीय क्षति के बाद जुर्माना भरने की प्रणाली अब भी मंद और लचर बनी हुई है। पर्यावरण की क्षति करने वाले न सिर्फ अदालतों के आदेशों की अवमानना करते हैं बल्कि भारत में पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण की सर्वोच्च वैधानिक संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) जुर्माने को वसूलने में विफल साबित हो रही है।

ताजा मामला उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के मैसर्स प्रतीक बिल्डटेक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का है। अवैध तरीके से भूजल की निकासी को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने संबंधित बिल्डर पर आठ साल पहले एक करोड़ रुपए की पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति राशि एक महीने के भीतर सीपीसीबी को जमा करने का आदेश दिया था। हालांकि, आजतक यह राशि न ही सीपीसीबी को जमा की गई और न ही बिल्डर की तरफ से सीपीसीबी के पत्रों का कोई जवाब दिया।

यह जानना जरूरी है कि सीपीसीबी पहले भी अदालतों के आदेशों के अनुरूप बड़ी कंपनियों से भी पर्यावरणीय जुर्माने नहीं वसूल सकी है। डाउन टू अर्थ ने इसकी खोजबीन की थी, रिपोर्ट यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

दरअसल एनजीटी की प्रधान पीठ ने 27 नवंबर, 2025 को एक्जिक्यूशन एप्लिकेशन संख्या 81/2025 पर सुनवाई की। इसमें याचक हरिंदर सिंह की तरफ से एनजीटी से मांग की गई कि वह ट्रिब्यूनल के 30 नवंबर 2018 के आदेश को लागू कराए।

30 नवंबर, 2018 को ही एनजीटी ने संबंधित बिल्डर पर एक करोड़ का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया था। आवेदन ने बताया कि सीपीसीबी द्वारा कई बार पत्र भेजे जाने (जिसमें 15 जून 2022 का पत्र और 25 जून 2025 के आरटीआई उत्तर शामिल हैं) के बावजूद परियोजना प्रवर्तक ने अब तक निर्धारित राशि जमा नहीं की है।

इस याचिका के बाद अब फिर से ट्रिब्यूनल ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और निर्देश दिया कि वे अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पूर्व शपथ-पत्र के साथ अपना जवाब दाखिल करें।

ट्रिब्यूनल ने आवेदक को भी सभी प्रतिवादियों को नोटिस की सेवा सुनिश्चित करने और उसका अधिसेवा शपथ-पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है।

एनजीटी ने प्रतीक बिल्डटेक को गाजियाबाद में प्रतीक ग्रैंड सिटी परियोजना में भूजल के अवैध निष्कर्षण के लिए सभी बोरवेल को स्थायी रूप से नष्ट करने का भी निर्देश दिया था, जो केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) के दिशानिर्देशों का उल्लंघन था।

मामले की अगली सुनवाई 20 फरवरी 2026 को निर्धारित की गई है।